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अपनी माँ का वो सामान, जो उन्हें हद से ज्यादा अज़ीज़ था, उसको बेचने पर मजबूर कर दिया। सिर्फ दिखावे के लिए!
“क्या हुआ? हमारी बिटिया का मूड थोड़ा ठीक नहीं लग रहा है, सब सही है ना?”, महेश जी ने अपनी बीवी, रजनी से पूछा! जो अभी-अभी शापिंग से लौटीं थी।
“अरे! कुछ नहीं। आप परेशान ना हों, वो थोड़ा थक गई है। इसलिए चुप है।”
शादी में कुछ ही दिन बचे थे। इसलिए सारा काम जल्दी-जल्दी निबटा रहे थे। रजनी जी के साथ आज पंखुड़ी भी शापिंग पर गई थी। वहाँ उसे एक सूट पसंद आ गया। उसने अपनी माँ से कहा कि वो उसे दिला दें। मगर सूट की कीमत उनके बजट से बाहर था। उन्होंने बहुत प्यार से उसे समझाया कि कितने सारे कपड़े इधर से और उधर से भी तो होंगे। हो सकता है कि इससे भी खूबसूरत हों। मगर पंखुड़ी बार-बार उसको लेने की जिद करने लगी। रजनी जी ने अपना बैग चेक किया फिर बोली, “हम एक कपड़े पर ही इतना पैसा नहीं खर्च कर सकते, बेटा! अभी भी बहुत सारी चीजों को खरीदना है।
मगर जब मनपसंद कपड़ों की बात आती है, तो कहाँ दिल मानता है। पंखुड़ी का मुँह उतर गया। उसे लग रहा था, माँ पता नहीं, कब से उसके लिए सामान इकट्ठा कर रहीं हैं। जब पापा की सैलरी आती, कुछ पैसे बचाकर, उसके लिए कोई सामान ले आतीं और बड़े वाले संदूक में रखने लगतीं तो, वो कहती, “माँ इसको तो निकाल देतीं आप, घर में भी जरूरत होती है।” मगर माँ मुस्कुरा कर उसके सर पर हल्का सा थपथपा कर संदूक बंद कर देती।
महेश जी की सरकारी नौकरी थी, मगर उन्होंने कभी ऊपरी पैसा नहीं लिया। वैसे इसमें भी उनकी बीवी का बड़ा रोल था। उन्होंने कभी भी उनसे बेवजह कोई फरमाइश नहीं की। जितनी सैलरी, उसी में घर चलाती, उनका कहना था, हराम की कमाई में बरकत नहीं होती।
बेटी के अंदर बहुत ख्वाहिशें थीं। वो माँ से जिद तो नहीं कर रही थी, मगर उसका बहुत दिल करता। जैसे उसकी दोस्त की शादी में उसके घर वालों ने भर-भर कर सामान दिया था। उसे भी वैसे ही मिले। ताकि वो ससुराल वालों और अपने दोस्तों के सामने सर उठा कर चल सके। उसकी दोस्त की शादी में उसने कितने मंहगे-मंहगे सूट, साड़ी, लंहगा और गहने खरीदे थे। देखने वाले देखते रह गए थे। वो तो सोच भी नहीं सकती। काश! माँ वो हरा वाला खूबसूरत सूट और कुछ गहने मेरे हिसाब से खरीदने दें! वो खामोशी से लेटकर सोच रही थी, तभी माँ आकर, उसके पास बैठ गईं।
“मेरी बेटी नाराज है मुझसे!”, उन्होंने प्यार से उसके बालों को सहलाते हुए कहा।
“नहीं तो!” वो जल्दी से उठकर बैठ गई।
“माँ हूँ तुम्हारी! मुझे सब पता होता है, तुम कब नाराज होती हो, कब उदास होती हो, मगर मेरी बच्ची! मैं नहीं चाहती थी कि तुम्हारे पापा से मैं बोलूं की वो कर्ज लें फिर सारी उम्र उसको चुकाते रहें।”
वो अब भी कुछ नहीं बोली!
“अच्छा सुनो! मैंने कुछ सोचा है।” उन्होंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा, “मेरे पास मेरी शादी के जेवर हैं। जो मेरे मम्मी-पापा ने दिये थे। उसे मैं शाम को बेच दूंगी। फिर तुमको जो लेना होगा, अपनी पसंद से ले लेना। वैसे भी वो फालतू ही पड़े हैं। पापा को ना बताना! उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा। शाम को तुम्हारी बुआ जी को बुलाया है उन्हीं के साथ जाऊँगी। दो लोग रहेगें, तो ठीक रहेगा!
वो एकदम खुश हो गई। अब तो मैं वो मंहगा वाला सूट भी लूंगी! कितना खूबसूरत था। और अपनी पसंद के हिसाब से दो अंगूठी! और क्या लेना है? वो अपने हिसाब लगाने लगी। उसके चेहरे पर आई, अंजाने में इस मुस्कान ने मम्मी को समझा दिया कि वो कुछ सोच रही है। इसलिए वो वहाँ से उठ गई।
उनके जाते ही पंखुड़ी ने अपनी सबसे अच्छी दोस्त, नेहा को फोन लगाया और बहुत खुशी से, चहकती आवाज में बताया कि वो क्या-क्या लेने वाली है!
नेहा कुछ नहीं बोली, तो पंखुड़ी ने कहा क्या हुआ? मैंने तुमको कुछ बताया है और तुम कुछ बोल ही नहीं रही हो!
क्या बोलूं? तुमने ये भी तो बता दिया कि पैसे कहाँ से आ रहे हैं, इसलिए मेरी बोलती बंद हो गई।
हाँ तो क्या हुआ? मम्मी अपनी मर्ज़ी से उसे बेच रही हैं। मैंने थोड़ी ही कहा था। तुमको मेरे घर के बारे में एक-एक बात पता, इसलिए ये भी बता दिया! अच्छा सुनो! शाम को आना!
नहीं यार! तुमको शायद पता नहीं वो जो हमारी दोस्त है निधि, जिसकी शादी में उसके घर वालों ने जाने कितने लाख का सामान और कैश दिया था, वो वापस अपने मायके आ गई।
मगर क्यों? वो बहुत हैरान हुई! उसकी शादी को तो, वो कभी नहीं भूल सकती! उसी को देखकर ही तो, उसने कितने ख्वाब सज़ा डाले थे, कि सारा नहीं, मगर कुछ तो उसकी तरह उसका भी दहेज हो!
पता नहीं, उसने खुद से कुछ नहीं बताया। बस सुनने में आ रहा है कि वो हमेशा अपने आप से अपनी जेठानी, अपनी सास को, ननद को कमतर समझने लगी थी। कोई काम-वाम नहीं करती थी। मायके जाने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। अगर कोई कुछ कहता, तो फौरन अपने साथ लाए, कैश के बारे में सवाल जवाब शुरू कर देती। वो लोग बहुत अच्छे हैं। कभी कोई दहेज मांगा ही नहीं था।
अब उसके ससुराल वालों ने उसको वापस भेज दिया है और जो भर कर दहेज ले गई थी बोले, “हम तो इस्तेमाल ही नहीं करते, तुम्हारे ही रूम में था सब वापस ले जाओ। रही कैश की बात, वो तो तुम्हारे पापा ने तुम्हारे ही एकाउंट में डाले थे, तो हमें कैसे पता होगा! हमने कभी दहेज नहीं मांगा था। हमारी बड़ी बहू कोई दहेज नहीं लाई थी, मगर वो ही हमारे लिए परफेक्ट है। हम तो अपनी बेटी को भी ऐसे घर नहीं ब्याहेंगे जो दहेज मांगेगा। हमें घर बसाने वाली, सबको अपना समझने वाली, लड़की चाहिए! घर को तोड़ने वाली नहीं!” अब मायके आई गई है, देखो क्या होता है!
अब उसकी समझ में नहीं आ रहा था, कि क्या बोले? और सोचने लगी कि मैं क्या करने चली थी! अपनी माँ का वो सामान, जो उन्हें हद से ज्यादा अज़ीज़ था, उसको बेचने पर मजबूर कर दिया। सिर्फ दिखावे के लिए! वो ज़ेवर तो, उनके माँ-बाबा की निशानी और आशीर्वाद था। फिर वो ऐसा कैसे कर सकती थी। उसको भी तो मम्मी-पापा अपने हिसाब से दे ही रहे थे और सबसे बड़ी बात, उन्होंने उसे पढ़ा-लिखा कर इस काबिल तो बना ही दिया है कि अगर वो कभी कोई नौकरी करेगी तो, अपनी पसंद का सामान भी खरीद सकती है।
मैं ऐसा कैसे सोच सकती हूँ! खुद पर शर्मिंदा होते हुए नेहा को उसकी आँख पर लगे हुए परदे को हटाने के लिए शुक्रिया बोला और जल्दी से उठकर माँ के पास भागी! उनको अपने गहने बेचने से रोकने के लिए!
मूल चित्र: Canva
Arshin Fatmia read more...
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