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अगर मेरी कोख में लड़का हुआ तो ठीक नहीं तो मुझे बच्चा गिराना पड़ेगा? इस परिवार की वंशबेल को आगे बढ़ाने का काम अब मेरे ही हाथ में है?
“लल्ला कह दे अपनी बीवी से इसके पेट में पल रहा बच्चा लड़का है या लड़की ये जानने के लिए ये टैस्ट तो इसे करवाना ही पड़ेगा। मेरी जान पहचान की एक डॉक्टर है उसे समस्या बताऊंगी तो बता देगी वो।” रेवती जी ने अपने छोटे बहु बेटे से कहा।
बेटा कुछ बोल पाता उससे पहले ही छोटी बहु अंतरा बोली, “अगर लड़की हुई तो क्या करेंगी आप? क्या जरूरत है टैस्ट की? अब इस बच्चे को तो जन्म देना ही है मुझे।”
रेवती जी तुनक कर बोलीं, “बिल्कुल नहीं! अगर लड़की हुई तो बिल्कुल जन्म ना देगी तू उसे। हमारे घर में पहले से ही चार लड़की हैं, तीन बड़ी बहु की और एक तेरी। अब हमें तो लड़का ही चाहिए। अगर तेरी कोख में लड़का हुआ तो ठीक नहीं तो तुझे बच्चा गिराना पड़ेगा। इस परिवार की वंशबेल को आगे बढ़ाने का काम अब तेरे ही हाथ में है। बड़ी बहु तो अब मां नहीं बन सकती, साफ-साफ़ मना कर दिया है डॉक्टर ने।”
“ये मेरा अन्तिम फैसला है, मैं अपने बच्चे को जन्म दूंगी चाहे बेटा हो या बेटी। टैस्ट करवाने हरगिज नहीं जाऊंगी। आप लोग मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते”, अंतरा ने बड़ी ही दृढ़ता के साथ कहा।
“तो कोई जरूरत नहीं है इस घर में रहने की। हम अपने लल्ला का दूसरा ब्याह कर लेगें, लेकिन इस वंश की बेल को आगे जरूर बढायेगें। तुम जाओ अपने मायके और वहीं रहना और अपनी ये ऐंठ अपने मां बाप को दिखाना। हमारे घर में रहोगी तो हमारी बात माननी ही पडे़गी”, रेवती जी ने कठोरता से कहा।
अंतरा की आंखो में आंसू थे वह अपने पति की तरफ देख रही थी कि वह कुछ बोले, लेकिन रेवती जी का इतना खौफ था कि दोनों बेटों की कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती। काफी देर अंतरा आशाभरी नजरों से अपने पति की तरफ देखती रही, लेकिन वह बुत बना रहा। अंतरा ने अपने आप को सम्भाला और बोली, “अगर मैं टैस्ट नहीं करवाऊंगी तो इस घर में नहीं रह सकती?”
रेवती जी चीखते हुए बोलीं, “हां बिल्कुल भी नहीं।”
अंतरा ने कहा, “तो सुनिये, मैं टैस्ट नहीं करवाऊंगी, हरगिज नहीं करवाऊंगी और अपने बच्चों को अपने दम पर पालूगीं।”
अंतरा कहते हुए अपने कमरे में चली गई और बैग पैक करने लगी। रेवती जी ने अपने बेटे को अंतरा से मिलने भी नहीं जाने दिया। मायका पास ही था सो वह अपने साथ अपनी चार साल की बेटी को लेकर अपने घर चली गई।
मायके में मम्मी पापा अकेले ही रहते थे। एक भाई था वह अपनी नौकरी पर दूसरे शहर में रहता था। मम्मी पापा ने अंतरा का पूरा साथ दिया क्योकिं वह जानते थे कि उनकी बेटी गलत नहीं है। अंतरा ने अपने आप को सम्भाला और फिर वह दिन भी आ गया जब उसने एक हृष्ट पुष्ट बेटे को जन्म दिया।
अंतरा ने बेटे को जन्म दिया है ये सुनकर रेवती जी अंतरा के मायके आई और अंतरा के मम्मी पापा से अपनी बहु को घर वापस ले जाने के लिए कहने लगी। बच्चे का नामकरण नहीं हुआ था सो अंतरा अलग कमरे में थी।
अंतरा की मां ने कहा, “बिटिया तेरी सास और दामाद जी तुझे अपने घर लेने आये हैं।”
अंतरा मुस्कराई और बोली, “मां वो लोग मुझे नहीं मेरे बेटे को लेने आये हैं। उनके वंश को आगे बढ़ाने का जरिया जो बनेगा। पिछले 6 महीने में जिस पति और सास ने मेरी खबर सुध नहीं ली आज मुझे घर ले जाने की बात कर रहे हैं? मां उनसे कह दीजिए अपने उस बेटे की, जिसे गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं है, दूसरी शादी करवा ले। मेरे बच्चों का ख्याल और पालन पोषण करने के लिए मैं अकेली ही काफी हूँ और फिर इनके नानू नानी भी तो हैं।”
मां ने कहा, “बेटा एक बार और सोच लेती।”
“नहीं मां इसमें सोचने वाली कोई बात नहीं है, बात आत्मसम्मान की है। एक पत्नी, एक बहु, एक मां और एक नारी के आत्मसम्मान की। हम औरतें जब तक गलत को गलत नहीं कहेगें, अपना सम्मान खुद नहीं करेगें और अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करते रहेगें तब तक रेवती जैसी क्रूर सासों के शोषण का शिकार होते रहेगें। उन लोगों से कहिये यहां से चले जायें और आज के बाद मेरे घर और मेरे बच्चों की तरफ मुड़कर ना देखें”, अन्तरा ने बड़ी ही सहजता से अपना अन्तिम फैसला सुना दिया।
अंतरा की मां जैसे ही बाहर आई तो देखा वो लोग जा चुके थे। पापा से पूछने पर पता चला कि वे दोनों अंतरा से ही मिलने गये थे लेकिन थोड़ी देर बाद ही रेवती जी गुस्से में तमतमाती हुई चली गयीं। मैंने पूछा भी लेकिन वह कुछ बोली ही नहीं, दामाद जी भी उनके पीछे-पीछे चले गए।
मूल चित्र : Canva Pro
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