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इन दिनों की तनहाई में, मैं और मेरी साड़ियां अक्सर ये बातें करते हैं, तुम ना होती तो ये झुमके, नौलखा हार ना होता, ये मैचिंग चूड़ियों की बहार ना होती!
इस करोना के डर, उदासी और लॉकडाऊन के लंबे दौर की तनहाई में, मैं और मेरी साड़ियां अक्सर ये बातें करते हैं, तुम ना होती तो ये झुमके, नौलखा हार ना होता ये मैचिंग चूड़ियों की बहार ना होती!
तो साड़ियों ने शिकयत की – ‘सखी कई दिनों बाद इधर का रुख किया? गाऊन, कुर्ते पैंजामे के चलते हमें तो भूल ही गयी हो!’
नहीं रे प्यारी साड़ियों अगर तुम ना होती तो आपने आप पर इतराती कैसे? अगर तुम ना होती, तो पिया मन लुभाती कैसे?
मैं और मेरी साड़ियां… प्यारी पिंक, व्हाईट, स्काय ब्लू लिनेंन, कॉटन, शिफान तुम तो जलती गर्मी की साथी… प्यारे रंगोवाली सिल्क सर्दी की साथी… रेग्युलर, वेलफेयर और लेडीज मीटिंग की साड़ियों का अलग हिसाब है…
मैं और मेरी साड़ियां… तभी लाल सितारों जड़ी रंगीन बॉर्डर वाली साड़ी की आवाज आयी – ‘मुझे भूल गयी? माँ ने पहली तीज पर दी थी!’ और पीछे से भारी भरकम बनारसी ने याद दिलाया – ‘बोली भूल गयी? मैं तो सासूमाँ की पेहली दिवाली की सौगात!’
मैं और मेरी साड़ियां… थैली से बाहर आती बंधेज, लेहरिया ने राजस्थान ट्रिप की याद दिलाई, और ये पैरेट ग्रीन शिफॉन पहली सैलरी से ली थी… ‘मुझे तो देखो! यहां!’ अरे ये चेरी रेड, विद्या बालन स्टाइलवाली ऑनलाइन मंगवाई थी!
मैं और मेरी साड़ियां… ऐसे ही कुछ पीछे रखी, पुरानी सी साड़ियां गुमसुम सी बातें सुनाने लगीं – ‘हमें तो छोड़ो, हमसें अच्छी कई हैं, हम कोई गरीब के काम आएंगी, या कोई बरतन ले लो, हमें देकर?’
मैं और मेरी साड़ियां… कई शादियां, जन्मदिन, फंक्शन, सरेमोनी की साथीदार हो तुम, तुम ना होती तो मेरा गुरूर ना होता, वजूद ना होता!
मैं और मेरी साड़ियां… मेरी साड़ियां, पिया को लगे पैसे और जगह की बरबादी, लेकिन कहाँ मिलेगी इतनी नाज़ुक यादों की डोर? कहाँ मिलेगी अपनों की याद दिलाती रेशमी छुअन?
मेरे दिल में बसी हैं ये साड़ियां, चाहे हम इन्हें पहनें या ना पहनें, मैं और मेरी साड़ियां,अक्सर ये बातें करते हैं…
मूल चित्र : Canva Pro
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