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माहवारी के बारे में सबको ये समझना ज़रूरी है कि महावारी कोई बीमारी या अपवित्रता नहीं, यह पूर्ण रूप से एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है।
लड़कियां संगीत की क्लास के लिए गईं, और कुछ शरारती लड़के कक्षा में ही रुक गए। उनकी पुरानी आदत थी, सारी लड़कियों के बैग को टटोलने की। आज भी उन्होंने ऐसा ही किया। लड़कियों के बैग खोल कर उनके सामान का मज़ाक बनाना।
अबकी बार एक लड़की के बैग में सैनिटरी पैड निकले। बस फिर क्या था, उसको बाहर निकाल कर लड़कों ने ख़ूब मज़ाक बनाया। जब सारी लड़कियां क्लास में आईं तो उन्होंने यह सब देखा और कुछ तो सहम गई थीं और कुछ शर्मिंदा हो रहीं थीं।
मोनू अपने घर में सबसे छोटा है, उसको बाहर पार्क में खेलने की आज़ादी भी है, उसके सिर्फ तीन दोस्त हैं, रीति, आरुषि, और शिवम। मोनू को सबसे ज़्यादा सहजता रीति के साथ महसूस होती है। मोनू उससे अपनी सारी बातें शेयर करता है, यहाँ तक कि जब घर में आलू के पराँठे बनते हैं तब भी वह रीति को खिलाना नहीं भूलता, और यही हाल रीति के घर का है।
कुछ दिनों बाद अचानक से रीति ने पार्क में आना और मोनू के घर जाना छोड़ दिया। अब यह तीन ही बचे थे। मोनू बार बार रीति की घर जाता और पूछता “आँटी रीति कब आएगी?”
उधर से उत्तर आता, “बेटा अभी उसकी तबियत ख़राब है, जब ठीक हो जाएगी तब आपके साथ खेलने आएगी।” यह सुनकर मोनू उदास हो जाता और कुछ दिन बाद आरुषि ने भी बाहर निकलना बंद कर दिया। इसके बाद तो मोनू और भी टूट गया, इस वजह से वह उदास रहने लगा और शिवम के साथ भी उसने खेलना बंद कर दिया। मोनू की मानसिकता पर इसका नकरात्मक प्रभाव पड़ा।
ऐसे बहुत से मोनू होंगे जो इस तरह की मानसिक प्रताड़ना से गुज़रते होंगे। उसको तो अभी तक ज्ञान नहीं था, के दोनों लड़कियों ने घर से निकलना क्यों बंद कर दिया।
ये लड़के कुछ ऐसे पात्र हैं जो समाज के असली रूप को उजागर करते हैं। इनकी बातों से यह पता लगा कि उनकी सोच में अभी भी रूढ़िवादी विचारधारा है। अब हमको यही निर्धारित करना है, आप को या आपको अपने बच्चे को कैसा बनाना है।
माहवारी के बारे में सबको ये समझना ज़रूरी है कि महावारी कोई बीमारी या अपवित्रता नहीं, यह पूर्ण रूप से एक सामान्य प्राकृतिक प्रक्रिया है। अगर किसी लड़की के बैग में पैड दिखे तो समाज उसकी खिल्ली उड़ाने लगता है, लड़के मज़ाक करने लगते हैं, इस पर लड़कियां कमज़ोर पड़ने लगती हैं, उनका कमज़ोर पड़ना उनकी कमी को नहीं बल्की समाज की छवि को प्रतिबिंबित करता है। लड़की के कपड़ो पर लगे लाल खून के धब्बे, और उस पर मज़ाक बनाना और लड़कियों को असुरक्षित महसूस करवाना यह पितृसत्तात्मक समाज का एक बहुत पुराना चलन है। जो आज तक आधुनिक युग में अपनी सोच के कारण बहुत पीछे हैं।
मासिक धर्म, एक प्राकृतिक चक्र है, जो हर महिला के लिए एक आम बात मानी जाती है, मगर जब बात आती है लड़कों की, पुरुष की तो इनके साथ इस विषय को साझा करना थोड़ा संकुचित हो जाता है। इस विषय के ऊपर बात करना समाज में नैतिकता के विरोध में बताई जाती है, इसके लिए कोई भी खुल कर बोलने को राज़ी नहीं होता, क्योंकि लोगों को लगता है यह एक घिनौना विषय है। कई जगह हम इससे संबंधित भेदभाव भी देख सकते हैं।
इस भेदभाव को ख़त्म करने के लिए हम सबको क़दम से क़दम मिला कर चलना होगा, समानता की सीढ़ियों पर चढ़कर ही हम इस समस्या का समाधान ढूंढने में सफल हो पाएंगे। समानता का अर्थ है इसमें सबकी भागीदारी होनी जरूरी है, चाहे वह किसी भी लैंगिकता का हो। सबसे पहले परिवार, और उसके बाद समुदाय और फिर समाज इन तीनों के क्षेत्र को सही प्रकार से जागरूक किया जाना अति आवश्यक है। पुरुष समुदाय की सबसे प्राथमिक इकाई यानी, लड़के, जो विद्यालय जाते हों उनके लिए अभियान चलाए जाएं और उनकी सोच को नई दिशा प्रदान कि जाए।
अक्सर देखा है हमारे समाज में लोग यौन शिक्षा को गलत मानते हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में भी इसको नैतिकता से परे की बात मानकर नज़रअंदाज़ किया जाता है। कुछ ऐसे तथ्य जिनपर विचार किया जाना चाहिए।
पिता, पति, भाई, के तौर पर पुरुषों को इस तथ्य के प्रति जागरूक होने की ज़रूरत है, कुछ पुरुष समुदाय के लोग इस विषय में बात करना चाहते भी हैं तो वह बात करने से झिझकते हैं, क्योंकि समाज ने इस बात पर कुछ भी बोलने की इजाज़त नहीं दी। पुरुषवाद समाज परिवार में मासिक धर्म के मुद्दों पर चर्चा को वर्जित क़रार देता आया है, और इसलिए जैसा कि अध्ययन बताते हैं कि पुरुष मासिक धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं।
इस प्रकार, मासिक धर्म के नाम पर जो भेदभाव महिलाओं को कलंकित करता हो और उसको प्रताड़ित करता हो ऐसे चलन को दूर करने के लिए इस महत्वपूर्ण विषय में पुरुषों को शामिल करने की आवश्यकता है। मासिक धर्म के मुद्दों में पुरुषों को शामिल करने का एक और केंद्र बिंदु है और वह है कि मासिक धर्म के सामाजिक मानदंडों और नकारात्मक विचारों को बदलना आवश्यक है।
आने वाली पीढ़ी को ऐसे कुएं में धकेलने के बजाए उनको माहवारी के बारे में समझाया जाए कि महावारी एक नियमित और प्राकृतिक का नियम है, इसमें शरमाने वाली कोई बात नहीं। इसमें घबराने और डरने के बजाए आप अपनी माँ, हो या बहन, बेटी इनके साथ बैठ कर इस बात पर चर्चा करें।
आप माहवारी के बारे में बात करना, अपने घर से भी शुरू कर सकते हैं, एक ऐसे वातावरण का निर्माण करें, जो आपकी घर की महिलाओं के लिए, सहज, सरल, और सुलभ हो। ऐसा करने से आपका परिवार और आपके अपनों का परिवार भविष्य में सफल और सुखद जीवन व्यतीत कर पाएगा।
मूल चित्र : Twitter
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