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मथुरा वृंदावन के मंदिरों से तो सभी परिचित हैं लेकिन मथुरा वृंदावन की गलियों में सिर्फ राधे-राधे की गूँज ही नहीं चाट की दुकानों की खुशबू भी बिखरी रहती है
मथुरा वृंदावन के मंदिरों से तो सभी परिचित हैं लेकिन मथुरा वृंदावन की गलियों में सिर्फ राधे-राधे की गूँज ही नहीं चाट की दुकानों की खुशबू भी बिखरी रहती है।
मथुरा वृन्दावन भगवान श्री कृष्ण का जन्मस्थान, भारत के तीर्थस्थल में मथुरा का नाम सबसे ऊपर आता है, मथुरा और वृंदावन घूमने के लिए और श्री कृष्ण के दर्शन करने के लिए विदेशी यात्रियों का भी तांता लगा रहता है।
कृष्ण जन्मस्थान या जन्मभूमि जैसा कि नाम से ही ज्ञात होता है कि मान्यतानुसार यहीं भगवान् श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जन्मभूमि मथुरा नगरी के बीचों बीच स्थित है, मंदिर बहुत प्राचीन है उसकी कलाकृति देखते ही बनती है। (फोटो : mathura@nic)
द्वारिकाधीश भी मथुरा के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है, यहाँ की आरती देखने लायक होती है। मंदिर के पास में ही यमुना घाट है जहाँ यात्री यमुना के स्वछंद पानी की लहरों में नौका विहार करने का आनंद लेते हैं। (फोटो : mathura@nic )
बांकेबिहारी का मंदिर वृन्दावन में स्तिथ है इस मंदिर की बहुत मान्यता है। बांके बिहारी मंदिर का इतिहास उसको एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान देता है। (फोटो : mathura@nic )
प्रेम मंदिर अपनी सुंदरता के लिए बहुत प्रसिद्ध है, रात में उसकी मनोहारी लाइट्स को देखने के लिए भीड़ लगी रहती है। प्रेम मंदिर की दीवारों की नक्काशी देखने लोग विदेशों से आते हैं। (फोटो : Wikipedia)
मथुरा वृंदावन के मंदिरों के विवरण से तो सभी परिचित हैं और मौजूदा हालात में इन मंदिरों के दर्शन करना तो शायद अभी असंभव है, तो आपको हम ये भी बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का खाना भी काम मशहूर नहीं है। यहाँ के मसाले, यहाँ के ज़ायके का स्वाद और किसी भी प्रदेश में मिलना संभव नहीं है।
मथुरा वृंदावन की गलियों में सिर्फ राधे-राधे की गूँज ही नहीं चाट की दुकानों की खुशबू भी बिखरी रहती है।
मथुरा वृंदावन की सुबह ही कचौड़ियों की खुशबू से होती है। मथुरा-वृंदावन आये और नाश्ते में कचौड़ी नहीं खायी तो ये समझिये की आपकी यात्रा अधूरी रह गयी।
यहां मौसम कोई भी हो दिन की शुरुआत कचौड़ियों के साथ ही होती है। और सोने पे सुहागा होता है उस कचौड़ी की तीखी सब्ज़ी के साथ जलेबी की मिठास। यहाँ कचौड़ियां भी बहुत से प्रकार की मिलती हैं और हर नुक्कड़ पे मिलती हैं तो आप को कचौड़ियों तक पहुँचने के लिए ज़्यादा ज़ेहमत नहीं उठानी पड़ेगी।
दाल की खस्ता कचौड़ी प्याज की कचौड़ी आलू-प्याज की कचौड़ी
मथुरा वृंदावन की चाट भी लाजवाब है। यहाँ के खाने में कहीं भी प्याज, लहसुन का प्रयोग नहीं होता है। वृंदावन के दही भल्ले काफी प्रसिद्ध हैं।
भगवान् श्री कृष्ण का जन्मस्थान है तो यहाँ के माखन और दही की तो तुलना ही नहीं की जा सकती। वृंदावन के हर मंदिर के बहार लस्सी की दुकान मिलेगी, की मिठास और वो गाढ़ा दही कहीं और मिलना बहुत मुश्किल है।
मथुरा के पेड़े का नाम तो हम सभी ने सुना है। पेड़ों की तो शुरुआत ही मथुरा से हुई थी ऐसा कहा जाता है। पेड़े मावा की बानी हुई एक मिठाई होती है।
जब दूध उबल रहा होता है, मलाई लगातार मंथन की जाती है और अक्सर बर्तन के किनारों पर चिपक जाती है । बाद में ये परतें जो कि नीचे की तरफ जमा हो जाती हैं, उन्हें बाहर निकाल दिया जाता है। उसमें सूजी (रवा), गुलाब जल और पीसी हुई चीनी मिलायी जाती है और इसे ड्राई फ्रूट्स और टिंट ऑफ केसर (केसर) से गार्निश किया जाता है। खुरचन दो रूपों में उपलब्ध है, नमक और मीठा।
जब माखनचोर के शहर में जाएँ तो माखन मिश्री ना खायें ये तो असंभव है। मठे को मथ कर उसका माखन निकालकर उसमें मिश्री मिलाकर बनती है ये मिठाई।
इस समय मथुरा वृंदावन की गलियों में घूमना शायद ना हो पाए लेकिन घर से ही वहाँ के दर्शन कर पाना और घर पर बने वहाँ के व्यंजनों का स्वाद ले अवश्य ले सकते हैं।
मूल चित्र : mathura@nic /Canva Pro
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