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बहू तो मेरी कामकाजी और स्मार्ट है, लेकिन…

आप किसी की जिंदगी में उतना ही हस्तक्षेप कीजिये, जितना सामने वाला सहन कर सके! किसी के व्यवहार को अपने तराजू से मत तोलिए!

आप किसी की जिंदगी में उतना ही हस्तक्षेप कीजिये, जितना सामने वाला सहन कर सके! किसी के व्यवहार को अपने तराजू से मत तोलिए! 

“सुनीता, ओ सुनीता! देख तो कौन आया है? कब से दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, देख तो, कौन है?”

“आयी मम्मी जी!” सुनीता रसोई में से बोली, आकर देखा तो, पड़ोस की सुजाता आंटी, अपने पोते और पोती के साथ खड़ी थीं।

“नमस्ते आंटी जी!” दोनों बच्चों ने बड़े प्यार से कहा।

“नमस्ते बच्चों! कैसे हो?”

सुनिता ने भी, बड़े प्यार से उत्तर दिया। दोनों बच्चों ने, अपनी दादी का, हाथ पकड़ रखा था। सुनीता ने अंदर आने को कहा, तो सुजाता जी, सुनीता के पीछे चल पड़ीं। तभी सामने से आती सुनीता की बेटी ने, सुजाता जी के पैर छुए तो सुजाता जी ने उसे गले लगा लिया और सब वही बरामदे में बैठ गए।

सुनीता के बड़े बेटे ने भी आकर देखा तो, उसने भी पैर छूकर आशीर्वाद लिया और चारों बच्चे, दूसरे कमरे में चले गए। तभी सुनीता की सास भी आ गयी और बोली, “जा सुनीता! हमारे लिए चाय बना दे, और बच्चों को जूस और कुछ खाने को भी दे देना।”

“ठीक है मम्मी जी! अभी लाती हूँ।” बोलकर सुनीता रसोई की तरफ चल पड़ी।

अब दोनो सखियों की बातचीत शुरु हो गई थी, “क्या सुजाता! बहुत दिनों के बाद आई है?”

“शांता जी, क्या करूँ? बच्चों की छुट्टियाँ हो गयी हैं, लेकिन इनकी माँ को आफिस से फुर्सत ही नहीं है। सारा दिन काम मे ही व्यस्त रहती है। घर आने के बाद, मोबाइल और लैपटॉप से लगी रहती है। उसे सिर्फ अपनी ही फिक्र रहती है।”

“बच्चे क्या-क्या करते हैं, उसे कोई परवाह नहीं है। बच्चों को मेरे पास छोड़कर, सारा दिन, बस घूमा लो उसको! कोई चिंता नहीं है उसे, बच्चों की, मेरी, अपने पति की, न ही घर की।”

“मेरी बहू, कामकाजी और स्मार्ट है। कितनी औरतें, उसके आगे पानी भरती हैं। तुम्हारी बहू तो, मेरी बहू के आगे, कुछ भी नहीं है। पर तुम्हारी बहू ने मुझसे और बच्चों के साथ, प्यार से बात की, और चाय-नाश्ता बनाने गयी है। लेकिन मेरी बहू तो, तुम्हारे पास ही नहीं आती! बात करना तो, दूर की बात है!”

सुजाता जी, अपनी बहू के बारे में, अपने मन की भड़ास, निकाली जा रही थी। शांता जी, चुपचाप सुने जा रही थीं।

तभी सुनीता चाय लेकर आ गयी और बोली, “आंटी जी! आप तो बहुत लकी हो। आपकी बहू ने, अपने बच्चों को, संस्कार तो दिए हैं। अब उनके पास समय नहीं है, तो आप अपने पोते-पोती को समझा सकते हो।  मुझे तो आपकी बहू में, कोई कमी नहीं दिखती। पढ़ी-लिखी है तो, घर के साथ, बाहर के काम को भी अच्छे से कर रही है।”

“और रही बात बच्चों की तो, स्मार्ट माँ के बच्चे भी स्मार्ट होते हैं। आप चिंता मत करिए। समय के साथ, सब ठीक हो जाएगा। फिर आपको भी, आपकी बहू, बहुत प्यारी लगेगी, जैसे मैं अपनी मम्मी जी को पसंद हूँ।”

सुनीता की बात सुनकर, सुजाता जी को, अपनी गलती का अहसास हो गया। उन्होंने कहा, “अब से मैं भी अपनी बहू को, कुछ नहीं कहूंगी। और उसकी गैरहाजिरी में, उसके बच्चों का, पूरा ध्यान रखूंगी और पूरा प्यार दूंगी।”

दोस्तों सही है, आप किसी की जिंदगी में उतना ही हस्तक्षेप कीजिये, जितना सामने वाला सहन कर सके। किसी के व्यवहार को अपने तराजू से मत तोलिए। जिसे हमारी ज़रुरत हो, और वो हमारी मदद मांगता है तो हमें उसकी मदद अवश्य करनी चाहिए। 

आपको मेरी कल्पित कहानी, कैसी लगी? अपनी राय जरूर दें!

मूल चित्र : Canva Pro 

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