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ऐ कलम! तेरी स्याही ने, दिए कई उपनाम, अब बस एक ही गुज़ारिश है तुझसे, चाह नहीं किसी उपनाम की मुझे, स्त्री के रूप में देवी नहीं इंसान समझ ले, इतना ही काफी है।
ऐ कलम! तेरी स्याही ने, दिए कई उपनाम,
उकेरे कई चित्र मेरे,कभी चाँद सा खूबसूरत बताया,कभी फूल सा नाज़ुक,कभी हिरन की सी चाल की कल्पना की,कभी ज़ुल्फो को बादल सा बताया।अब बस एक ही गुज़ारिश है तुझसे,चाह नहीं किसी उपनाम की मुझे,ना ऐसी किसी उपाधि की,इंसान हूं, बस इंसान ही समझ ले। भावनाएं कुछ मेरी भी हैं,इतना ही समझ ले!स्त्री के रूप में देवी नहीं,इंसान समझ ले,इतना ही काफी है!
मूल चित्र : Canva Pro
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