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आखिर रिया को हो क्या गया है? लगभग एक महीने से उसके व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया है, सुबह शाम पुरे घर के परदे, खिड़की, दरवाजे बंद कर देती है।
“रिया! क्यों इस तरह खिड़की परदे बंद कर के रखती हो, घर में ताज़ी हवा तो दूर रौशनी भी नहीं आती है”, आज अनुज बेहद गुस्से में था। उसने परदे हटा कर बालकनी का स्लाइडर खोल दिया।
“अरे ये क्या कर रहे, जैसा है वैसा रहने दो”, रिया कमरे से बाहर निकलते हुए बोली। “डोर स्लाइडर खोल दो पर प्लीज़ परदे तो लगे रहने दो।”
लेकिन आज अनुज उसकी सुनने वाला नहीं था, सुबह सुबह कोई और बखेड़ा ना खड़ा हो, ये सोच कर रिया किचन में चली गयी। अनुज के ऑफिस निकलने के बाद उसने फिर ड्राइंगरूम के परदे को अच्छे से लगा दिया।
ऑफिस में अनुज यही सोच कर परेशान था, आखिर रिया को हो क्या गया है? लगभग एक महीने से उसके व्यवहार में बहुत परिवर्तन आया है, सुबह शाम पुरे घर के परदे, खिड़की, दरवाजे बंद कर देती है। आज रिया से खुल कर बात करनी पड़ेगी, बच्चों को बॉलकनी में जाने की इज़ाज़त नहीं, खिड़की नहीं खोल सकते, परदे नहीं हटा सकते। आख़िर कब तक रिया के इस बदले व्यवहार को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं?
घर पहुंचते ही अनूज का मूड फिर ख़राब हो गया। पूरा घर पैक था। दम घुटने की स्थिति थी, रोहन और कांची अपने अपने कमरे में थे। आज ग़ुस्से से नही रिया से धैर्य से बात करनी होगी, अनुज ने मन ही मन में सोचा, परदे हटाये और बच्चो के कमरे में चला गया।
डिनर के बाद बच्चे सोने चले गए, रिया किचन समेटने लगी।
“रिया कुछ काम हो तो बताओ, मैं भी आज तुम्हारी हेल्प कर देता हूँ”, अनुज किचन में आते हुए बोला।
“तुम और हेल्प!” रिया ने चौंक कर पूछा।
“क्या मैं घर के काम में तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता?” अनुज झेंपते हुए बोला।
“शुक्रिया जनाब..बड़ी मेहरबानी”, रिया ने इस अदायगी से कहा कि दोनों हंस पड़े। दोनों मिल कर झटपट काम ख़त्म कर बेडरूम में आ गए।
“क्या हुआ अनुज,आज तुम बहुत बदले बदले दिख रहे हो?” रिया ने बेड ठीक करते हुए पूछा।
“मैं ठीक हूँ रिया पर तुम्हें नहीं लगता तुम्हारे व्यवहार में अचानक बहुत तब्दीलियां आ गयी हैं?” अनुज सीधे मुद्दे पर आ गया।
“क्या मतलब! अनुज तुम कहना क्या चाहते हो?” रिया के स्वर में नाराज़गी थी।
“देखो रिया, नाराज़ मत हो, लेकिन मुझे बताओ आखिर बात क्या है? हर रोज़ पुरे घर को क्यों बंद रखती हो? बच्चों को कहीं आने जाने नहीं देती, हर समय बच्चों की साया बन कर उनके साथ रहती हो? बच्चे भी अब तुमसे दूर भागने लगे हैं। तुम्हारे इस सख़्त रवैये ने उनके मन में डर और आक्रोश भर दिया है। उनकी सह्र्दयी माँ अब डिक्टेटर के रूप में है। तुम्हें कोई परेशानी है तो प्लीज़ मुझे बताओ”, अनुज ने रिया से कहा।
रिया शांत हो कर अनुज की सारी बाते सुन रही थी, उसे भी एहसास था कि उसके इस बदलते व्यवहार से अनुज के साथ बच्चे भी उससे दूर हो रहे हैं।
“अनुज…”, रिया ने धीमे स्वर में कहा।
“हां बोलो रिया”, अनुज ने रिया के हाथों को प्यार से अपने हाथ में ले लिया।
“अनुज मैं तुमसे कहना चाहती थी पर तुम्हारे खुले विचारो की वजह से तुम से कुछ भी कहने से डरती हूँ। समाज के बदलावों को तुम खुले दिल से स्वीकार करते हो। उसके समर्थन में लोगों से बहस भी करते हो पर मैं ऐसी नहीं हूं। मेरा बचपन एक बड़े संयुक्त परिवार में घर के बड़े बुजुर्गों के निर्देशों को मानते हुए गुज़रा, जो घर के बड़ों ने कहा उसे ही पत्थर की लकीर मान लिया”, रिया की आँखे नम हो गयी थी, पर वो आज अपनी दिल की बात अनुज से कहना चाहती थी तो बोलती चली गयी।
“रिया..बदलाव तो ज़िन्दगी का हिस्सा है, बदलाव से कैसे बचा जा सकता है? भागने के बजाय स्वीकार करने में ही हमारी भलाई है वरना ना हम परिवार संभाल पाएंगे ना समाज़”, अनुज ने धीरे धीरे रिया के बालों को सहलाते हुए कहा।
“बात अगर छोटे बदलाव की होती तो मुझे कोई शिकायत नहीं है, तुमसे विवाह हुए पंद्रह बर्ष हो गए तुम्हारी और मेरी सोच में ज़मीन आसमान का अंतर है, फिर भी मैंने तुम्हे कोई शिकायत का मौका दिया हो तो बताओ? मेरा यही प्रयास रहता है, हर संभव तुम्हारा साथ दूँ, मेरी वजह से तुम्हे कोई शर्मिंदगी ना हो”, रुंधे हुए थे रिया के स्वर।
“रिया तुम्हारी अच्छाई और सच्चाई पर मैं सवाल कर ही नहीं कर सकता। रिश्ते निभाने में मैं ग़लत हो सकता हूं, पर तुम कभी नहीं, इसी लिए तुम्हारे बदले व्यवहार का कारण जानना चाहता हूं। मुझे मेरी पहले वाली हँसती, मुस्कुराती चहकती रिया वापस चाहिए”, अनुज बड़े प्यार से बोला।
“अनुज, तुमने पता नहीं ध्यान दिया है या नहीं पर ठीक हमारे फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में एक लड़का लड़की साथ रहते हैं। पहले तो मुझे लगा की नवविवाहित जोड़ा है क्योंकि वो दोनों पति पत्नी की तरह रहते है, पर कुछ समय पहले मुझे पता चला ये दोनों लिव इन में हैं”, रिया ने कहा।
“तो तुम्हें इस से क्या? जैसे मन करे वैसे रहे, उनकी पर्सनल लाइफ है। तो क्या तुम उनके पीछे अपनी और हमारी ज़िंदगी एक जेल के कैदी जैसा बना रही हो?” अनुज अचंभे से रिया को देख रहा था।
“बात सिर्फ इतनी नहीं है, अनुज। पहले मेरी पूरी बात सुनो फिर कोई प्रतिक्रिया दो”, रिया ने चिढ़ कर कहा।
“ठीक है बताओ। सुन रहा हूँ मैं”, अनुज बोला।
“मैंने उनकी गतिविधियों को हमेशा अनदेखा किया। मेरी आदत भी नही दुसरो के घर में ताका झांकी करने की, लेकिन एक दिन मैं बाज़ार से सब्जी लेकर आयी तो देखा, बालकॉनी में कांची खड़ी हो कर एक टक उन दोनों को देख रही थी। उनकी बालकॉनी का दरवाजा खुला था, परदे भी हटे हुए थे और वो दोनों आपत्तिजनक स्थिति में थे। मैं देख कर दंग रह गयी थी। मेरी आँखे शर्म से झुक गयीं। फिर मैंने कांची को डांट कर कमरे में भेजा और परदे लगा दिए”, कहते हुए रिया के आँखों में आंसू आ गए थे।
“मेरी तेरह बरस की बेटी पर इसका क्या असर पड़ेगा ये सोच कर मेरा दिमाग़ फटा जा रहा था। कांची उस समय तो कमरे में चली गयी लेकिन हर दिन बॉलकनी में आने का बहाना ढूंढती रहती थी। उसकी उम्र भी ऐसी है ना तो मैं उसे ज्यादा डाँट सकती और ना ही इस तरह के किसी रिश्ते के बारे में बता सकती हूँ, इसलिए मैं कांची पर पूरी नज़र रखती हूँ और घर को इस तरह बंद रखती हूं ताकि मेरी बच्ची उन दोनों को फिर से ऐसे हालात में ना देख सके। अनुज, किसे खुली हवा में साँस लेना अच्छा नहीं लगता, मेरा भी दम घुटता है ऐसे बंद घर में। लेकिन तुम खुद सोचो और बताओ ऐसे में मैं और क्या करती? एक माँ के डर और दर्द को समझ सकते हो तो बताओ मैं कहाँ गलत हूँ?” रिया ने कहा।
“मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा, मैं क्या बोलू, तुम इतने दिनों से इस डर से बच्चों के प्रति रुखा व्यवहार कर रही हो, मुझे क्यों नहीं बताया?” अनुज ने कहा।
“तुम्हारा गुस्सा मुझे तुमसे कुछ भी कहने से रोक लेता है, तुमसे कोई बात कहूँ तो तुम पूरी बात बिना सुने ही नाराज़ हो जाते हो। अगर मैं उस समय तुम से ये बात कहती तो पूरी सोसाइटी में हंगामा तो करते ही कांची को भी डाँट लगाते। सच पूछो तो अनुज, मुझे तुम्हारे गुस्से से डर लगता है”, रिया ने धीरे से कहा।
“रिया, तुम्हारा अनुज गुस्सैल जरूर है पर बेवकूफ़ नहीं”, अनुज रिया की बात सुन कर कहा।
“ठीक है, कल से तुम परदे नहीं लगाओगी और इस समस्या से कैसे निपटना है, क्या करना है अब ये सोचना मेरा काम है, तुम निश्चिन्त हो कर सो जाओ और हाँ कांची से मैं बात करता हूं”, अनुज ने कहा।
“कांची से बात करने की अब ज़रूरत नहीं है, उसको मैंने समझा दिया है, वह अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही है। कांची की तरफ़ से तुम निश्चित रहो”, रिया ने कहा।
अगली सुबह धुप की सुनहरी किरणें रिया के दिल में एक नयी उम्मीद ले कर आई थी। हलकी ठंडी हवाओं से घर में अलग ही ताज़गी और सुकून भर गया था। लेकिन अनुज के चेहरें पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही थी, रिया के सामने नार्मल दिखने की पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन मन मस्तिष्क में उथल पुथल मची हुई थी।
नाश्ते के टेबल पर रिया ने कहा, “अनुज मैंने तुम्हारी बात मान ली अब तुम्हें भी समझदारी से और बिना हंगामा किये इस समस्या का समाधान करना है।”
“रिया, मैं भी वही सोच रहा हूँ सबसे पहले सोसाइटी प्रेसिडेंट से बात करता हूं”,अनुज ने रिया से कहा और ऑफिस के लिए निकल गया।
अनुज के ऑफिस निकलने और बच्चो के स्कूल जाने के बाद रिया ड्राइंगरूम में आ कर बैठ गयी। लेकिन सामने वाले फ्लैट में आज वो लड़की नहीं थी, आज तो कोई अधेड़ उम्र की औरत दिख रही थी, ये कौन है? कोई नया किरायेदार आ गया क्या? खुश हो कर रिया बालकॉनी में आ गयी।
तभी उसने पीछे खड़े उस लड़के को देखा, एक पल में ही रिया की सारी ख़ुशी उड़नछू हो गयी। जैसे ही मुड़ने को हुई, “आप यही रहती हैं? दो दिन से मैं यहाँ आयी हूं, देखा नहीं आप को?” उस महिला ने रिया से कहा।
“जी नमस्ते, मैं रिया। दो दिन के लिए बाहर गयी थी आज ही आयी हूं। मैंने भी आप को यहाँ कभी नहीं देखा”, रिया ने एक पड़ोसी होने के नाते बेमन से औपचारिकता निभायी और परदे, दरवाजे बंद होने की बात भी तो संभालनी थी।
“मैं कानपुर में रहती हूं, ये मेरा बेटा है जतिन, यहाँ पुणे में नौकरी करता है। पहली बार मुझसे मेरा बच्चा दूर हुआ है, मेरा भी मन इस में ही लगा रहता है। आप तो यहीं के रहने वाली लगती हैं, मेरे बेटे को अपना छोटा भाई समझना, कृपया आप इसका भी ध्यान रखना।” नम्र व्यवहार वाली उस महिला ने बड़े आग्रह से कहा।
रिया को समझ नहीं आया की क्या बोलें उन्हें, जो अभी अपने बेटे को छोटा बच्चा समझ रही है, वो असल में क्या गुल खिला रहा है। रिया ने जतिन की तरफ देखा उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। उसके चेहरे पर डर साफ़ दिख रहा था, माँ आयी तो, लड़की को हटा दिया था। उसे डर था कहीं आज उसकी पोल ना खुल जाए। उसके चेहरे पर तनाव की लकीरें स्पष्ट दिख रही थीं।
“भाभी जी, आप बिलकुल फिक्र ना करें। आज कल के बच्चे बहुत समझदार हैं। अपना ख्याल रख सकते हैं। आप नाहक इतना परेशान हो रही हैं”, रिया ने उनकी अपने बेटे के प्रति चिंता देख कर, दिलासा दिया।
“मै आज ही निकल रही हूँ, इसके पिता की तबियत ठीक नहीं है। मैं तो चाह कर भी नहीं रुक सकती अपने बच्चे के पास”, बोलते हुए उन की आँखों में उदासी व फिक्र साफ़ दिख रही थी। एक माँ होने के नाते उनकी तकलीफ रिया समझ रही थी। कैसे एक बेटा अपनी माँ की मज़बूरी और निस्वार्थ प्रेम का फायदा उठा रहा है। उसके मन में आया की सब कुछ बता दें पर खुद को रोक लिया।
तभी फोन की घंटी बजी, रिया ने उनसे विदा लेकर फ़ोन उठाया, अनुज का फ़ोन था, “रिया, अभी मैंने अपनी सोसाइटी के प्रेसिडेंट से बात की है, शाम को मिलने के लिए घर पर बुलाया है, तैयार रहना।”
“ठीक है, पहले घर आओ फिर बात करेंगे”, ये कहते हुए रिया ने फ़ोन रख दिया। जतिन की माँ से बात करके रिया का मन दुखी हो गया था। युवा पीढ़ी के लिए मन चिंतित कैसे आज कल बच्चे अपने माता पिता के भरोसे का फायदा उठाते हैं। कितनी मुसीबत सह कर और अपनी खुशियाँ त्याग कर के एक मध्यम वर्गीय परिवार अपने बच्चों को शिक्षा देता है। उसकी हर जरुरत पूरी करता है, बच्चों का उत्तम भविष्य ही उनका एकमात्र उद्देश्य होता है। लेकिन बच्चे क्या कर रहे हैं? अपनी ऐसी नाजायज़ मांगो और छणिक खुशियों के लिए माता पिता को धोखा दे रहे है।
आज अचानक रिया के मन में उस लड़की के लिए सहानभूति हो गयी, कितना विश्वास करती होगी कि बिना सोचे समझे इस लड़के पर अपना सर्वस्व लुटा दिया और ये जतिन कायर की तरह अपनी माँ के साथ एक लड़की को भी धोखा दे रहा है?
दो बज़ गए, बच्चों की बस आ गयी होगी। सोचते हुए बच्चों को लेने नीचे चली गयी। आज बच्चे बहुत खुश थे कि माँ ज्यादा रोक टोक नहीं कर रही है, घर भी खुला खुला है। बच्चों के चेहरे पर ऐसी ख़ुशी बहुत दिन बाद दिख रही थी। रिया ने बड़े प्यार से बच्चों को खाना खिलाया और थोड़े देर आराम के बाद उन्हें होमवर्क करने को बिठा दिया।
शाम को अनुज के आने के बाद पूरी बात बताई। जतिन के प्रति उसका गुस्सा देख कर अनुज ने कहा, “रिया, तुम एकतरफा क्यों सोच रही हो? अगर बच्चे अपने माता-पिता से कुछ छिपाते हैं तो ये बच्चे की गलती नहीं है। अगर माता-पिता अपने बच्चों पर पूरा भरोसा रखते तो उन में सच बोलने की हिम्मत होती। हर बार नयी पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी का राग अलापने से कुछ हासिल नहीं होता। आज कल के बच्चे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं, बशर्ते उन्हें परिवार का भरोसा और सुरक्षा मिले। सच तो ये है आज कल के बच्चे पहले के बच्चो से ज्यादा समझदार व जागरूक हैं। कम उम्र में ही अपनी जिम्मेदारी समझने लगे हैं।”
सही तो कह रहा है अनुज, मैं एक पक्ष को लेते हुए किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सकती? रिया ने मन ही मन सोचा और प्रेसिडेंट से शिकायत करने के बजाय औपचारिक भेंट कर आ आए।
अगले दिन रिया अनुज के ऑफिस जाने के बाद कॉफी ले कर बॉलकनी में ही बैठ गयी। तभी सामने नज़र गयी, लड़की वापस आ गयी थी, लेकिन दोनों में शायद बहस हुई थी क्योंकि लड़की रो रही थी और जतिन गुस्से से उसे कुछ बोल रहा था, लड़की रोते रोते बालकॉनी में आ गयी और जतिन बाहर निकल गया।
“सुनो, क्या नाम है तुम्हारा?” रिया ने पूछा तो लड़की थोड़ी झिझकी फ़िर आँसुओ को छिपाते हुए बोली, “आशिमा।”
“तुम्हारी तरह तुम्हारा नाम भी बहुत प्यारा है”, रिया ने उसकी झिझक दूर करने के लिए बात शुरू की।
“थैंक यू मैम”, आशिमा ने कहा।
“आशिमा, तुम मुझे दीदी कह सकती हो”, रिया ने कहा।
“ओके दीदी। ये अच्छा है क्योंकि मेरी कोई बड़ी बहन नहीं है”, कहते हुए आशिमा मुस्करायी।
आशिमा और रिया की बातचीत अब हर रोज होने लगी। एक दिन रिया ने उसे चाय के लिए बुलाया। अब उन दोनों में पहले से ज्यादा बेतकल्लुफ़ी हो गयी थी। आशिमा ने अपनी परिवार के बारे में रिया को बताया और उसका परिवार उसकी शादी के लिए लड़का देख चुके हैं और शादी करने एवं सेटल होने पर जोर दे रहे हैं।
“तो क्या तुम जतिन से शादी नहीं करोगी?” रिया ने पूछा।
“दीदी, मैं शादी के लिए तैयार हूँ, लेकिन जतिन का कुछ समझ नहीं आ रहा है। कभी कहता है..हां, और कभी साफ़ मना कर देता है। इस बार उसकी माँ भी आई थी, मुझे मिलाने के बजाय मुझे मेरी एक दोस्त के घर छोड़ आया। समझ नहीं आ रहा क्या करूँ?” आशिमा बोली।
“आशिमा तुम खुद समझदार हो। तुम्हें इन कुछ दिनों में समझ आ गया होगा। तुम खुल कर जतिन से बात करो। रिश्तों में दुराव छिपाव रिश्तों को और उलझाते हैं। एक सच्चे रिश्ते की पहचान ही ईमानदारी और भरोसा है। अगर तुम्हे इस रिश्ते से ये सब कुछ नहीं मिल रहा तो फिर एक बार दोबारा सोच लो।” आशिमा चुपचाप रिया की बात सुन रही थी। आँखों आंसू भरे थे रिया ने प्यार से उसे गले लगा लिया।
अनुज घर में घुसते हुए ये नज़ारा देख दंग रह गया। आशिमा के जाने के बाद अनुज, रिया को छेड़ते हुए कहा, “ये क्या था, ऐसा परिवर्तन तो सदियों में कही एक बार होता है। ये वही लड़की है जिस की हरकतों की वजह से लगभग एक महीने से तुमने घर को जेल बना दिया था और अब वो लड़की छोटी बहन?”
“अनुज, प्लीज़ मुझे परेशान मत करो। मानती हूं वहां मैं ग़लत थी, पर तुम्हारा समझाना काम कर गया। अब मुझे भी लगता है, बच्चों पर विश्वास कर उनकी बातों को महत्त्व दे कर हम अपने बच्चों को सही गलत में फर्क करना सिखा सकते हैं। मैं घर के परदे बंद कर सकती हूं पर समाज में हर तरह के लोग है उनसे कहाँ तक बचा पाऊंगी, वहाँ कोई परदा नहीं है। इस समाज में रह कर ही अपने बच्चों की मार्गदर्शक बन सकती हूं।” विश्वास के साथ रिया ने कहा।
अनुज ने गर्व से अपनी प्यारी रिया को बाहों में भर लिया।
फिर दो दिन हो गए आशिमा और जतिन अचानक कही चले गए। रिया कुछ सोच ही रही थी कि अगले दिन आशिमा के फोन ने सभी आशंकाओं पर विराम लगाया, “दीदी अगले महीने मेरी शादी है।”
रिया को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। अचानक शादी!
“आशिमा!”
“दीदी, मुझे पता है आप क्या पूछना चाहती है? आप के कहने पर मैं कानपुर गयी थी, मेरे पीछे जतिन भी आया और सबके सामने मुझे पहचानने से इंकार कर दिया, एक पल में उसने मेरे अस्तित्व, एतबार और प्यार को मज़ाक बना कर रख दिया। बहुत सोच समझ कर अब मैंने माता पिता के तय किये गए रिश्ते को अपनी मंजूरी दे दी है। मैंने एक कायर से रिश्ता रखा, उसका तो मुझे ज़िन्दगी भर पछतावा रहेगा, पर इस रिश्ते से निकलने के बाद दुःख नहीं बल्कि ख़ुशी है। मेरा भ्रम टुटा, जो बीत गया उसे बदल तो नहीं सकती पर जो आने वाला है उसे खूबसूरत बनाऊँगी। दीदी आप से ये मेरा वादा है”, आशिमा ने रिया अनगिनत सवालों का जवाब बिना कुछ कहे ही दे दिया था।
“गर्व है मुझे तुम पर, मुझे तो लगता था आज की पीढ़ी सही फ़ैसला नही ले सकती पर तुम ने मेरी ये सोच बदल दी”, रिया ने खुश हो कर कहा।
मूल चित्र : Canva Pro
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