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अब भी वक्त है समझ जा, समझने के लिए बुद्धि दी है मैंने! प्रकृति की ओर लौट जा, प्रकृति की शक्ति को चुनौती दी है तूने!
ना मैं नाराज हूँ तुझसे, ना किए दरवाजे बंद मैंने। ना देख संकीर्ण दृष्टि से, मौजूद हूँ हर तरफ तेरे।
साकार हूँ, निराकार भी हूँ मैं; हर आलय शोभित किया मैंने। अनादि हूँ, अनंत भी हूँ मैं, देवालय तक सीमित किया तूने।
हर पल का दृष्टा हूँ मैं, हर युग को देखा मैंने। हर कृत्य का साक्षी हूँ मैं, अंदर अपने नहीं झांका तूने।
पेड़ – पौधों और जीव जंतुओं में, जीवन को जीवंत किया मैंने। वन-उपवन और जीवों का नाश करके, जीवन को संकट में डाला तूने।
नदियां, तालाब और सागर, पीने लायक जल स्रोत दिए थे मैंने। प्रदूषित किए जल भण्डार, आचमन लायक नहीं छोड़े तूने।
वायु बिना असंभव जीवन, निर्मल पर्यावरण दिया था मैंने। उत्सर्जित किया अत्यधिक कार्बन, पर्यावरण मलीन किया तूने।
पर्वतों को जटा सा बाँधकर, पृथ्वी का पानी चक्र बनाया मैंने। तेजी से पिघल रहे हैं ग्लेशियर, पृथ्वी का तापमान बढ़ाया तूने।
जठराग्नि को शांत करने, अग्नि का उपयोग सिखाया था मैंने। अणु शक्ति का निर्माण करके, प्रगति का दुरुपयोग किया तूने।
जन, जंगल, जंतु को संतुलित कर, धरती को स्वर्ग बनाया था मैंने। अत्यधिक जनसंख्या वृद्धि कर, धरती को नरक बनाया तूने।
पालन किए नियम प्रकृति के, पेड़ से टूटा पत्ता नहीं जोड़ा मैंने। बेमौसम जहरीली खेती करके, प्रकृति के नियमों को तोड़ा तूने।
कंद-मूल-फल खाकर, चौदह वर्ष वनवास किया था मैंने। अप्राकृतिक भोजन कर, विकृत विचारों से बर्बाद किया जीवन तूने।
अब भी वक्त है समझ जा, समझने के लिए बुद्धि दी है मैंने। प्रकृति की ओर लौट जा, प्रकृति की शक्ति को चुनौती दी है तूने।
मूल चित्र:Canva
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