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अब रक्षाबंधन की राखी बांधेगी विश्वास और समानता का रिश्ते को…

आज जरूरत है भाईयों को कि वे अपने विकसित सोच का परिचय दें और अपने साथ-साथ अपनी बहनों के उड़ने के लिए पंख लगाएं, जिससे दोनों साथ-साथ अपनी उड़ान भरें!

आज जरूरत है भाईयों को कि वे अपने विकसित सोच का परिचय दें और अपने साथ-साथ अपनी बहनों के उड़ने के लिए पंख लगाएं, जिससे दोनों साथ-साथ अपनी उड़ान भरें!

सदियों से रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करता चला आ रहा है। बहन अपने
भाई की कलाई पर धागा बांधती है और उससे रक्षा का वचन लेती है। आज एक नई बहस है कि क्या रक्षाबंधन की जरूरत है, जब महिलाएं खुद में ही समर्थ हैं? आज बचपन वाले भाई-बहन का प्रेम, परंपरा में पला हुआ यह रिश्ता वक्त के साथ काफी परिपक्व भी हुआ है और दोनों एक-दूसरे की अहमियत को भी समझते है।

आज कई बहनें हैं जो भाई के साथ खड़ी होती हैं 

आज कई बहनें हैं जो भाई के जरूरत पड़ने पर उनके साथ खड़ी होती हैं और कई भाई भी हैं जो अपनी बहनों के लिए खड़े होते हैं। आज मात्र कुछ सेंटीमीटर का धागा बचपन की नोक-झोक
और गिले-शिकवे के यादों के साथ एक-दूसरे के रिश्तों के महत्व को भी है और जरूरत पड़ने पर
अभिव्यक्त भी करता है। भाई-बहन के बीच आपसी जुड़ाव का रिश्ता अटूट होता है, पर कई बार यह हमारे सामाजिक सांस्कृत्तिकरण के कारण उस तरह से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है, जितना स्नेह वह इस रिश्ते से करता है।

एक बराबर अहसास का त्यौहार 

सीमित आर्थिक आमदनी वाले परिवार में अपने बहन से सालभर हर चीज छीनने वाला भाई जब
राखी के दिन छोटा सा प्यार सा तोहफा बहन को थमाता है, उस एहसास को बहन भी महसूस करती है। दूर रहने वाले भाई को बहन जब डाक से राखी भेजती है या वाट्सएप पर भाई को राखी का संदेश मिलता है तो कई बार बिना कुछ कहे हजारों-लाखों भावनाएं मन में हिलोर ले लेती हैं और आंख का एक कोना भीग जाता है।

ज़रुरत है भाई-बहन के बराबर विकास के विश्वास में बांधने की

नारीवाद और आधुनिकता की तमाम बहसों के बीच कि रक्षाबंधन मनाने की जरूरत क्या है? यह
महिलाओं के आजादी के विरुद्ध है? महिलाएं जब सशक्त हो चुकी हैं, उनको रक्षा की जरूरत नहीं है। आज जरूरत है रक्षा-बंधन के डोर में समानता और स्वतंत्रता के सम्मान के साथ भाई-बहन के बराबर विकास के विश्वास में बांधने की। एक नया संकल्प लेने का कि समानता और स्वतंत्रता का अवसर भाई-बहन दोनों को बराबरी के साथ मिले।

अब से स्वतंत्रता और समानता का त्योहार कहा जाएगा

भाई-बहन में समानता, स्वतंत्रता और समान अवसर मिलने का यह सार्थक भाव एक परिवार से दूसरे परिवार और दूसरे से तीसरे तक होते हुए पूरे समाज में फैल जाएगा और तब शायद समाज में महिलाओं और युवतियों के साथ हो रहे भेदभाव पर किसी तरह का लगाम लग जाएगा। तब रक्षाबंधन भाई का बहने के रक्षा के साथ-साथ भाई-बहने के स्वतंत्रता और समानता का त्योहार कहा जाएगा। तब कोई भी आधुनिक विचार यह तोहमत नहीं दे सकेंगे कि रक्षाबंधन मनाने की
जरूरत क्या है? जरूरत है हमारी सांस्कृतिक परंपराओं में आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों को जोड़ने की और समायोजन की संस्कृति विकसित करने की।

आत्मनिभर और आत्मविश्वास के डोर से बंधा रिश्ता

रक्षा बंधन के मूल में भाई बहन में रक्षा-कवच की भावना के मध्य अगर स्वतंत्रता और समानता के
मूल्य को बीज रोप दिया जाए। भाई-बहने के बीच समानता और स्वतंत्रता के विकास के वादे को निभाने लगे तो भाई-बहन का पवित्र रिश्ता आत्मविश्वास के पंख लगाकर उड़ने लगेगा। आत्मनिभर और आत्मविश्वास के डोर से बंधा रिश्ता अपने ही नहीं समाज, राज्य और राष्ट्र के विकास की नई इबारत लिखने लगेगा। समाज में लड़के-लड़की के बीच फैली असमानता की खाई पर कमल के फूल खिलने लगेंगे।

अब से भाई-बहनों दोनों के सपने होंगे पूरे 

जरूरत पड़ने पर बहन का भाई के साथ और भाई का बहने साथ खड़े रहना ही भाई-बहने के रिश्ते में एक-दूसरे के सुख-दुख में जिम्मेदारी के साथ निभाना और रक्षा करना है। यह हम सब जानते हैं कि आज कितनी ही बहनें कई कारणों से भेदभाव की शिकार तो हैं ही, उसको हमेशा कम भी आंका जाता है, जबकि वह है नहीं किसी से भी किसी चीज में। कितनी ही बहने हैं जो कितने ही कारणों से अपने सपने दबा कर रखने को मजबूर हैं।

आज जरूरत है भाईयों को कि वह अपने विकसित सोच का परिचय दें। परिवार में अपनी बहनों के साथ खड़ा रहे और उसके साथ घर में भेदभाव या गलत व्यवहार होते दिखे तो चुप रहने की जगह पर विरोध करें। अपने साथ-साथ उसके उड़ने के लिए पंख लगाएं जिसे दोनों साथ-साथ अपनी उड़ान भरे, समानता और स्वतंत्रता वाली उड़ान।

मूल चित्र : Canva

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