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जब सास ने निभाया अपने माँ होने का एक और फ़र्ज़…

निशा के लिए तो सौम्या अब मुफ़्त की नौकरानी बन गई थी! किसी काम में हाथ ना बांटती, जब रमा जी मदद करती तो हॅंस कर सौम्या उन्हें मना कर देती। 

निशा के लिए तो सौम्या अब मुफ़्त की नौकरानी बन गई थी! किसी काम में हाथ ना बांटती, जब रमा जी मदद करती तो हॅंस कर सौम्या उन्हें मना कर देती। 

“सौम्या! सौम्या, कहाँ हो बेटा?” सौम्या को आवाज़ देती हुई उसकी सास रमा जी ने पूरा घर सिर पे उठा लिया था।

“अरे माँ, सौम्या तो सुबह- सुबह मंदिर गई है! वो आज विनय भैया और उसकी शादी की सालगिरह का जो दिन था!” निशा, रमा जी की बड़ी बहु ने कहा।

“ओह्ह, मैं तो भूल ही गई और धम से सोफे पे बैठ गई रमा जी। नजरें कमरे में टंगी तस्वीर पे टिक गईं, ऑंखें सजल हो उठीं।

“मेरा बच्चा! क्यूँ इतनी जल्दी कर दी तूने? कम से कम सौम्या का तो सोचा होता!” तभी एक आहट सुन रमा जी ने अपने आँशु पोंछ लिए। देखा तो सौम्या थी! अभी कुछ कहती रमा जी की बड़ी बहु निशा आ गई, “ये क्या सौम्या इतनी देरी कर दी?”

“वो दीदी!” अभी सौम्या कुछ कहती कि निशा ने हमेशा की तरह चुभती बातें सुना दीं, “अब ये मंदिर जाने से क्या फायदा जब सुहाग ही साथ नहीं!”

नजरें झुका सौम्या सुनती रही और कर भी क्या सकती थी? कैसे कहती कि उसकी ही तो आत्मा की शांति के लिए मंदिर जाती है हर साल! लेकिन, जिसका हाथ थामा था उसने तो बीच राह में साथ छोड़ दिया तो क्या किसी से शिकायत करें। 

“निशा बहु, ये क्या शुरू कर दिया तुमने!” जब रमा जी ने डांटा तो निशा ने चतुराई से बात को बदल दिया!

“अरे सौम्या, तुझे तो पता है। आज मेरी बुआ का लड़का रवि आने वाला है और कुछ दिन रुकने का भी कार्यक्रम है, तो खाने की तैयारी सब देख लेना और रूम भी ठीक कर देना।”

“जी दीदी!” कह सौम्या रसोई में चली गई। 

आज दिल बहुत कच्चा-कच्चा सा हो रहा था सौम्या का। खाना बना अपने कमरे में जा बिस्तर पे गिर पड़ी…! यही तो एक कोना था जहाँ वो जी भर रो सकती थी अपने विनय को याद कर। 

आज के ही दिन दुल्हन बनी थी विनय की। पांच साल बीत गए! कैसे सुन्दर पल थे? माँजी ने अपनी सहेली की शादी में देखा था सौम्या को, लम्बे घने नागिन जैसे बाल, हिरणी सी चंचल आँखे, गुलाबी लहंगे में तितली जैसी मंडरा रही थी सौम्या! जब रमा जी की नज़र पड़ी तो देखती रह गईं। 

“क्या देख रही है रमा?” जब सहेली ने टोका तो रमा जी ने इशारा कर पूछा, “ये लड़की कौन है?”

“अरे पहचाना नहीं? अपने राकेश भाई साहब की बिटिया है, सौम्या! जैसा नाम वैसे ही गुण है। कभी किसी ने इसकी ऊँची आवाज़ ना सुनी होंगी, जितनी सुन्दर उतनी ही सुघड़!” रमा जी की सहेली अपने ही रौ बोले जा रही थी और रमा जी मन ही मन सौम्या को अपनी बहु बनाने का सोचने लगीं। 

जल्दी ही सौम्या बहु बन आ गई रमा जी के घर! छोटा सा परिवार था। दो बेटे थे, पति रिटायर हो चुके थे! बहुत प्यारी थी सौम्या। बहुत जल्दी घुल मिल गई परिवार में! विनय भी बहुत ख़ुश था सौम्या जैसी पत्नी पा। 

दिन हँसी खुशी बीत रहे थे, कि वो दिन आ गया जब बारिश में बाइक फिसलने से विनय का एक्सीडेंट हो गया! सिर की चोट ऐसी लगी की वो फिर उठ ही नहीं पाया। सब को दुख के सागर में छोड़ चला गया विनय। दो साल भी विवाहित जीवन का सुख नहीं भोग सकी थी सौम्या। तेरहवीं के बाद जब सफ़ेद कपड़ो में रमा जी ने सौम्या को देखा तो जड़ रह गईं। 

“मैं इस रूप में नहीं देख सकती सौम्या तुझे! जा जाके कोई सूट पहन ले और एक छोटी सी बिंदी भी! विनय को कितना पसंद थी तेरे चेहरे पे बिंदी। 

तभी निशा ने टोका, ” माँजी ये तो रीवाज है।”

“चुप करो बड़ी बहु, नहीं मानती मैं ये सब ढकोसले। जैसा बोला है वैसा करो!”

अपनी सास का रौद्र रूप देख निशा चुप रह गई! अपने कलेजे पे पत्थर रख सौम्या को संभाला था रमा जी ने!

निशा के लिए तो सौम्या अब मुफ़्त की नौकरानी बन गई थी! किसी काम में हाथ ना बांटती, जब रमा जी मदद करती तो हॅंस कर सौम्या उन्हें मना कर देती। 

शाम को निशा के भाई रवि भी आ गए। सबका मिलना जुलना बैठक में हुआ। सबके खाना खाने कर बाद सौम्या को याद आया अरे गेस्ट रूम में पानी तो रखा ही नहीं। कहीं जरूरत पड़े, ये सोच जग ले रूम में गई। 

रवि कोई किताब पढ़ रहा था, आहट सुन जब नजरें उठाई तो टेबल लैंप की दूधिया रोशनी में सौम्या को देखता ही रह गया! सादगी की मूर्ति इतनी सुन्दर की चाह के भी नज़र हट ही ना पाए। 

“वो पानी का जग लायी थी”, जब सौम्य ने कहा तो झेंप गया रवि और जग ले लिया।  रात भर सोचता रहा कहीं ये सौम्या तो नहीं ‘विनय की पत्नी’, क्यूँकि उनकी शादी में तो वो आ नहीं पाया था। 

अगले सुबह रवि की नज़रे सिर्फ सौम्या को ढूंढ रहीं थी! इन सब से बेखबर सौम्या अपने रोज़ाना के कामों में लगी थी। जब तक रवि वहां रहा बस सौम्या को ही देखता और सोचता की ईश्वर भी कितना निष्ठुर है, जो इतनी छोटी उम्र में ये दुख दे दिया। निशा का बर्ताव सौम्या के प्रति देख गुस्सा भी आता पर चुप रह जाता।  मन ही मन जैसे कुछ निश्चय कर लिया था उसने। 

एक दिन सुबह सुबह रवि आया और सीधा रमा जी के पास बैठ गया, “माँ, मैं कैसा लगता हूँ आपको?”

“अरे रवि! ये कैसा सवाल है बेटा?” रमा जी अचरज से पूछा।

“नहीं आप बताओ पहले”, बच्चों सा जिद करने लगा रवि। 

घर में सब रवि को आश्चर्य से देख रहे थे कि ये क्या हुआ इसे?

“अरे बहुत ही अच्छा है हमारा रवि। देखने में भी और कमाता भी अच्छा है, स्वभाव भी कितना प्यारा है! अब तो बता ना बात क्या है?” अधीर हो रमा जी ने पूछा। 

“तो फिर माँ, सौम्या जी का हाथ मुझे सौप दीजिये आप।”

“ये क्या बक रहा है रवि, पागल तो नहीं हो गया?” गुस्से से निशा चिल्ला उठी, “कहाँ तू कंवारा और ये एक विधवा। क्या कमी हो गई लड़कियों की तुझे, जो इस विधवा से शादी करेगा?” निशा क्रोध में आपे से बाहर हो, ना जाने क्या क्या बोलती गई सौम्या को। 

सौम्या को जैसे काठ मार गया। जब कुछ ना सुझा तो खुद को कमरे में बंद कर दिया!

“माँ, आप दीदी की बातों पे ध्यान मत दो! आप बस ये बताओ कि क्या मैं आपकी सौम्या के काबिल हूँ? वो सारी खुशियाँ दूंगा उन्हें जिसपर उनका हक़ है! बस माँ, आप हाँ कर दो।”

दो पल तो रमा जी को कुछ सुझा ही नहीं फिर जब सौम्या का ख्याल आया, उसकी जिंदगी का सूनापन! कुछ कहे या ना कहे सौम्या, रमा जी सब समझती तो थीं।  

“रवि मुझे विश्वास है तू मेरी सौम्या को बहुत ख़ुश रखेगा। फिर भी एक बार सोच लो। ये फैसले जज्बातों से नहीं लिए जाते!”

रवि ने रमा जी के पैरों को पकड़ लिया, “सब सोच कर ही आया हूँ यहाँ मैं।”

“चुप कर रवि”, गुस्से से निशा चीखी।

“तुम चुप करो निशा”, निशा के पति ने निशा को ज़ोर से डांटा। “क्यों, तुम्हे क्या समस्या है? जब खुद रवि हाथ मांग रहा है तो! एक मुफ्त की नौकरानी जाने का दुख हो रहा है ना? एक मासूम का जीवन फिर से बस जाये इससे अच्छा क्या हो सकता है? अब एक शब्द और नहीं”,  पति की बात सुन निशा चुप हो गई। 

“माँ, मैंने अपने पापा से बात कर ली है! मम्मी तो रही नहीं अब, लेकिन पापा बहुत ख़ुश हैं इस रिश्ते से। आप बस सौम्या जी से बात कर लो”, रवि ने कहा। 

रमा जी ने सौम्या को बहुत समझाया, “देख बेटा आज मैं हूँ, तेरे मम्मी-पापा हैं। कल हम नहीं रहेंगे फिर तू अकेली पड़ जायेगी।”

“माँ, सुख होता अगर जीवन में तो विनय जाते ही क्यूँ?” रमा जी से गोद में सिर रख सौम्या ने कहाँ तो कलेजा मुँह को आ गया रमा जी का!

“जो हो गया सो हो गया। मैंने भी बेटा खोया है सौम्या, जीवन में ऐसे मौके बार-बार नहीं मिलते। रवि खुले दिल से तुझे अपना रहा है। तू भी एक नई सौम्या बन और आगे बढ़ जीवन में।”

जल्दी ही एक सादे से समारोह में रवि और सौम्या विवाह के बंधन में बंध गए!

आज सुबह से ही रमा जी रसोई में व्यस्त थीं। तरह-तरह के व्यंजनो की खुश्बू फैली थी! तभी “नानी-नानी” का शोर उठा! जल्दी-जल्दी आँचल से हाथ पोछती रमा जी बाहर दौड़ पड़ी। देखा, तो बच्चे थे!

“नानी-नानी” कह लिपट गए रमा जी से, सामने सौम्या खड़ी थी, “गुलाबी साड़ी, लाल सिंदूर और बड़ी सी बिंदी में दमकता चेहरा। रवि के प्यार के रंग में डूबी सौम्या! मुस्कुराती सौम्या, “माँ” कह लिपट गई रमा जी से!

“मेरी बच्ची कब से राह देख रही थी तुम सब की।” 

“और मेरी माँ?” तभी रवि ने कहा, “आप तो मुझे भूल ही गई ना?” बच्चों सा मुँह बना जब रवि ने कहाँ तो सब खिलखिला उठे! और रमा जी ने बाहों में भर लिया अपनी खुशियों को। 

मूल चित्र : Canva Pro

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