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सड़क-2 में ढोंगी बाबाओं के फैलाए अंधविश्वास और उसके पीछे पैसे, सत्ता और मानवीय जीवन के अंतहीन घुटन को कहने की कोशिश की गई है।
सड़क 2 में ढोंगी बाबाओं के फैलाए अंधविश्वास और उसके पीछे पैसे, सत्ता और मानवीय जीवन के अंतहीन घुटन को कहने की कोशिश की गई है।
बीते शुक्रवार ओटीटी प्लेटफार्मों मैक्स ओरिजनल पर प्रकाश झा की आश्रम और डिजनी हाटस्टार महेश भट्ट की सड़क 2 रिलीज हुई। यह महज़ संयोग है कि दोनों ही कहानियों में ढोंगी बाबाओं के फैलाए अंधविश्वास और उसके पीछे पैसे, सत्ता और मानवीय जीवन के अंतहीन घुटन को कहने की कोशिश की गई है। अंतर बस इतना है कि दोनों ही कहानीयां अलग तरीके से कहीं गई है आश्रम वेब सीरीज है और सड़क 2 खालिश फिल्म।
सड़क 2 इससे थोड़ी सी अलग इसलिए है कि इसपर सड़क फिल्म का अक्स मौजूद है। जो कहानी कहने के दौरान बीच-बीच में आता रहता है। युवा-छरहरे-मासूम संजय दत्त का चेहरा, पूजा भट्ट और सदाशिव अमरापुरकर का महारानी का किरदार और ‘हम तेरे बीन कहीं रह नहीं पाते’/ ‘जब-जब प्यार पर पहरा हुआ है, प्यार और भी गहरा हुआ है’ गाना। जो लाखों दर्शकों के दिलो-दिमाग में इस तरह फलैशबैक के तरह आते है और इतना छा जाते है कि लोग फिर से सड़क को खोजने ही नहीं लगते है देखते भी है और उसके गाने गुनगुनाने भी लगते है।
जाहिर है पहली वाली सड़क को सड़क 2 पीछे नहीं छोड़ पाती है। सड़क 2 में महेश भट्ट मकरंद देशपांडे के बहाने महारानी जैसा जलवा दिखाने की कोशिश तो करते है पर सदाशिव अमरापुरकर जैसी बात दिखती नहीं है, न ही दिखती है इसमें नदीम श्रवण जैसी जादुई म्यूजिक जो कुमार शानू और अनुराध पौढ़वाल के आवाज में सुपर हिट रही थी।
सड़क 2 में महेश भट्ट ने अच्छे कलाकारों जमा तो कर लिया है परंतु अपने अभिनय से आर्या(आलिया भट्ट), रवि वर्मा(संजय दत्त) और स्वयंभू गुरू (मकरंद देशपाडे) ही दर्शक को बांधे रखते है। अन्य कलाकार आते है अपने पात्र की भूमिका निभाते है और चले जाते है। आदित्य राय कपूर तो संजय दत्त के सामने चाय में शक्कर कम के तरह लगते है। यही मकरंद देशपाड़े के साथ भी हुआ है उनके सामने आते ही सदाशिव का किरदार सामने आ जाता है और मकरद देशपांडे फीके हो जाते है।
सड़क 2 की कहानी वही से शुरू होती है जहां 29 साल पहले सड़क खत्म हुई थी। गोया याद रहे सड़क इसलिए भी लोगों के जहन में जिंदा है क्योंकि उसमें संजय दत्त का मामूली सा किरदार जो टैक्सी चलाता है अपने प्यार के लिए सारे सिस्टम से लड़ जाता है। आम आदमी का सिस्टम से लड़ने वाली कहानी हमेशा से लोगों को पसंद आती रही है।
सड़क 2 की कहानी में पूजा(पूजा भट्ट) की याद में रवि(संजय दत्त) वेदना में खुद को खत्म करना चाहता है। टैक्सी का धंधा छोड़ चुका है जिसका पंच लाइन है ‘पूजा ट्रैवल्स, सेफ्टी विथ सिक्योरटी’। उसकी मुलाकात आर्या से होती है जो उसे मनमाने पैसा देकर कैशाल पर्वत पर अपने प्रेमी विशाल के साथ जाना चाहती है।
सड़क के इस सफर में रवि क पता चलता है कि आर्या एक मिशन के तहत कैलाश जा रही है। इस सफर में उसे प्यार, दर्द और साजिश का पता चलता है और रवि वर्मा को मोक्ष मिलता है। आर्या यह भी समझ पाती है कि पिता का रिश्ता केवल खून से नहीं बनता है वह एक एहसास भी है जो किसी के साथ भी बन सकता है। हर अगले पल में कहानी में नई चुनौतियां तो आती है पर वो सस्पेस का मजा नहीं देती है। आर्या अपने पीछे पड़े स्वंयभू गुरू से पीछा कैसे छुड़ा पाती है? मौत के तलाश में भटकता रवि वर्मा कैसे आर्या के जीवन में पिता का एहसास ला देता है। इस कहानी को महेश भट्ट ने सड़क 2 कहने की कोशिश की है। उनकी यह कोशिश दर्शकों के सामने सड़क की यादों में कमजोर होती दिखती है।
सुशांत सिंह राजपूत के अचानक मौत के बाद नेपोटिज्म पर चली छिछलेदार बहस के वजह से सड़क 2 टेलर रिलीज होने के बाद भारत में काफी अनलाइक किया गया। जिसका नुकसान आलिया के फिल्मी कैरियर को कितना होगा यह कहा नहीं जा सकता है। परंतु, सड़क 2 के अंतिम संवाद के आगे किसी भी आधार पर इस फिल्म का विरोध फीका पड़ जाता है।
आर्या का किरदार अंत में कहता है कि “हर घर तक बिजली का बल्व जला देने से उजाला नहीं आएगा। सरकार को चाहिए कि वह देश के लोगों में अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरपन को दूर करे, तभी उनके जीवन में उजाला आएगा।”
चाहे कुछ भी कहें, मुझे लगा कि यह डायलाॉग देशभर में आलिया और भट्ट परिवार को लेकर चल रही बहसों से बहुत बड़ा है। सड़क 2 को इस एंड नोट पर खत्म करना महेश भट्ट की चतुराई कही जा सकती है। लेकिन, सच यह भी है कि हमारे देश में अंधविश्वासों पर भरोसा करके समाज ने जितना महिलाओं के जीवन नर्क बना रखा है उसके सामने यह एंड नोट बहुत अहम और ज़ोरदार है। और इस सच्चाई से हम मुँह नहीं मोड़ सकते।
बहरहाल नापसंद करने के लिए भी देखना चाहिए सड़क 2…
मूल चित्र : YouTube movie trailer
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