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साईनी राज कहती हैं कि जो भी लड़कियाँ मुझसे इंस्पायर होती हैं, उनसे मैं यही कहूंगी कि अगर आप अपने लिए बड़े सपने देखती हैं तो उन्हें पकड़ कर रखें।
वो कभी कविता से कहती हैं, तो कभी अपने अभिनय से कहती हैं। कभी मज़ाक-मज़ाक में बड़ी सीख दे देती हैं और कभी गुस्से में गलत के ख़िलाफ़ कहती हैं। उनका नाम है साईनी राज / Sainee Raj. महाराष्ट्र में पली-बढ़ी साईनी राज को बचपन से ही स्टेज से प्यार था। साईनी राज अपने सपनों को पाने के लिए बहुत मेहनत की है।
साईनी राज (Sainee Raj) 8 साल की उम्र से काम कर रही हैं जब उन्होंने शाका-लाका, बूम-बूम में काम किया था। उसके बाद उन्होंने रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘डरना ज़रूरी है’ और मधुर भंडारकर की फिल्म ‘ट्रैफिक सिग्नल’ में काम भी किया। साईनी राज ने हमें बताया कि उन्होंने ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ के लिए भी डैनी बॉयल को दो बार ऑडिशन भी दिया। साईनी राज को बस अपनी कहानी सुनानी है।
साईनी : ये कमाल की बात है कि मेरा करियर दो क्षेत्रों में बंटा है एक्टिंग और राइटिंग लेकिन जो लोग मुझे बतौर एक्टर जानते हैं उन्हें ये नहीं पता कि मैं राइटर हूं और जो ये जानते हैं कि मैं राइटर हूं वो मेरी एक्टिंग से ज़रा अनजान हैं।
मैं बचपन से ही स्टेज पर जाने की शौकीन रही हूं। मैं अपने परिवार के साथ बचपन में जहां रहती थी वहां उस ज़माने में कई छोटे-छोटे प्रोडक्शन हाउस होते थे तो मैं कई बार स्कूल से ही ऑडिशन देने चली जाती थी। मेरी मां ने मेरी इस प्रतिभा को परख लिया था कि चलो ठीक है शायद इसी के ज़रिए मैं अपनी एनर्जी चैनल कर सकती हूं।
एक बार ऐसे ही मैं खेल रही थी तो किसी ने मुझे देखकर कहा कि एक छोटा सा रोल है। मैं बड़ी मासूमियत से उन्हें अपने घर ले गई। पहले तो मेरी मां ने एकदम मना कर दिया कि बच्चे टीवी पर आएंगे तो पढ़ेंगे नहीं क्योंकि वो खुद एक टीचर हैं तो पढ़ाई की अहमियत समझती हैं। लेकिन मुझे बहुत ज़िद थी कि मुझे ये रोल करना है तो करना है। फिर बस वहीं से शुरुआत हुई।
वो रोल था टीवी सीरियल ‘शाका-लाका बूम-बूम’ (2008) में जिसमें मैंने करीब 10-13 साल की उम्र तक काम किया। इस रोल के बाद काफी लोग जानने लगे तो और काम भी मिलने लगा। लेकिन कभी ऐसा नहीं था कि मुझसे काम करवाया जा रहा है। मुझे मज़ा आता था एक्टिंग करने में तो मैं करती थी। मुझे तब ये पता चल गया था कि सेट पर होना मुझे बहुत ख़ुशी देता है। 10वीं और 12वीं की बोर्ड की पढ़ाई थी तो मैंने अपनी पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दिया। मैं पढ़ाई में हमेशा से अच्छी रही लेकिन कभी किताबी कीड़ा नहीं बनी। मैं हर चीज़ समझकर ही पढ़ने की कोशिश करती थी।
मैं स्कूल में अपने दोस्तों से बात करती थी तो वो कहते थे कि पढ़ाई के लिए विदेश जाना है तो मैं बड़ी मासूमियत से ये कहती थी कि मेरी इंडस्ट्री तो यहीं है मैं कहां जाऊंगी। बस ये पता था कि बॉलीवुड में ही काम करना है और नाम बनाना है।
जब मैं मास मीडिया से ग्रेजुएशन कर रही थी जो हमारे कॉलेज में इवेंट होते थे जिन्हें पूरी तरह से बच्चे ही ऑर्गेनाइज़ करते थे। ए.आर. रहमान भी एक बार बतौर जज आए थे। मैं थर्ड ईय़र में ही कॉलेज की कंटेन्ट टीम की हेड बन गई। तब सब मुझे कहते थे कि मेरी राइटिंग बहुत अच्छी है। जैसे जैसे काम करती गई मुझे ये समझ आय़ा कि कैमरा के पीछे जो लोग होते हैं उनका काम बहुत क्रिएटिव और इंट्रस्टिंग होता है। हम अक्सर बस एक्टर को देखते हैं लेकिन उसके पीछे कितने लोगों की मेहनत लगी है उसे नहीं देख पाते। फिर ऐसे ही काम करते-करते लिखने की तरफ़ भी रुचि बढ़ती गई। आज मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मैं जो करना चाहती थी वो कर रही हूं।
साईनी : मैं रो दूंगी (हंसते हुए)। पहले जब भी मुझसे ये सवाल पूछा गया है तो मैं डर-डर के चुन लिया करती थी। लेकिन अब मैं ये समझ चुकी हूं कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां किसी एक चीज़ को चुनना ज़रूरी नहीं है। मैं हमेशा से कहती हूं कि I ACT ON PAPER. तो मैं दोनों ही नहीं छोड़ सकती।
मैं सोच लेती हूं कि ऐसे विद्या बालन बोलेंगी तो कमाल कर लेंगी। वो तो वैसे भी कुछ बोल देती हैं तो मुझे ख़ुशी होती है। कभी-कभी लोगों को अचानक कोई चीज़ क्लिक करती हैं तो फिर उन्हें लगता है अच्छा, ये कौन है। लेकिन यहां तक पहुंचने में बहुत सालों की मेहनत है। सब आइसबर्ग जैसा होता है कि ऊपर-ऊपर से दिख रहा है लेकिन नीचे जो उसकी नींव है उस मेहनत में कई साल लगते हैं। इसलिए एक्टिंग हो या राइटिंग मुझे दोनों ही प्यारे हैं। दोनों ने ही मुझे पहचान और नाम दिया है।
साईनी : ब्रांड्स के लिए लिखने का प्रोसेस थोड़ा अलग होता है क्योंकि जब मैं ख़ुद के लिए लिखती हूं तो वो इंस्टिक्टिव होता है। जैसे मेरे मन में कोई ख्याल आया और मैंने उस पर लिख दिया। लेकिन ब्रांड के लिए लिखना कुछ लिरिक्स लिखने जैसा है जिसमें आपको ब्रीफ दिया जाता है। इस कविता के लिए मुझे ब्रीफ मिला था कि मां अपनी बेटी को एक ओपन लेटर की तरह कह रही है। क्योंकि मुझे फिल्म का थोड़ा-बहुत इल्म था कि शकुंतला देवी एक ऐसी मां की कहानी है जो अपने काम को लेकर फोक्सड है, पैशनेट है और जब मैंने ट्रेलर देखा कि कैसे मां-बेटी का प्यार और नोंकझोंक दिखाई गई है तो मुझे स्टोरीलाइन समझ आ गई कि उसे किन शब्दों में पिरोना है।
मां अपनी बेटी को कह रही हैं कि तुम्हें जो करना है करो। वो कन्वेंशनल मां नहीं है। ये आइडिया मैंने ख़ुद से सोचा और फिर उसे ब्रीफ के साथ जोड़ दिया। ये भी ख्याल रखना होता है कि लिरिक्स उपदेश जैसे ना लगें। लोगों को अगर आपकी पहली दो लाइन अच्छी नहीं लगेंगी ज्यादातर उसे शायद आगे ना सुनें। इसलिए उन्हें बांधे रखने के लिए उनके जैसा ही सोचकर लिखना पड़ता है।
ऐसा ही कुछ मैंने शाहरुख़ खान के लिए कविता ‘सब सही हो जाएगा’ में लिखा था।
साईनी : ज़रूर, फिल्म इंडस्ट्री में अब ज्यादा लोग पहचानने लगे हैं और काम भी ज्यादा मिलने लगा है। आपका काम ही आपकी पहचान बनता है। काम का जितना वैटेज होगा उतना ही पॉपुलैरिटी बढ़ जाती है। मेरा मानना है कि लेखकों को तो हर फॉर्म में क्रेडिट मिलना चाहिए। चाहे कोई कविता लिखे, स्क्रिप्ट लिखे, शो लिखे या ड्रामा लिखे। मैंने साल 2014 से लिखना शुरू किया था। उससे पहले मैं स्क्रीन राइटिंग कर रही थी। लेकिन अगर शाहरूख़ खान जैसे कलाकार आपको टैग करते हैं तो आपको मोटिवेशन और पहचान मिलती है। सब सही है से पहले मैंने उनके बर्थडे वीडियो के लिए भी लिखा था लेकिन मुझे लगता नहीं कि उन्हें वो याद होगा (हंसते हुए) .
(हमें भरोसा है कि शाहरूख़ ‘सब सही के बाद’ आपके ‘फैन’ हो गए होंगे)
साईनी : मुझे लगता है कि मैं फेमिनिज़्म की बात कर सकती हूं इसका मतलब ही ये है कि मेरी लाइफ में कुछ हद तक समानता तो है क्योंकि मैं अपने हक के लिए बोल सकती हूं, आई हैव अ चॉइस /I have choice. लेकिन जिन लोगों को सच में इसकी ज़रूरत है उन्हें शायद पता भी नहीं कि ये क्या होता है।
अभी तक भी बहुत सारे गांव ऐसे हैं जहां लड़कियों को पैड का कॉन्स्पेस्ट पता भी नहीं है। पैडमैन जैसी फिल्मों से जागरूकता ज़रूर बढ़ी है लेकिन ऐसी औरतों को अगर आप ये कहेंगे कि बराबर अधिकार मांगे तो उन्हें शायद वो धारणा समझ ही ना आए कि बराबर अधिकार क्या होता है।
फेमिनिज़्म मेरे लिए मैटर ऑफ़ चॉइस /Matter of choice है कि अगर मुझे रसोई में सारा दिन खाना बनाना है तो वो मेरी च्वाइस हो। उसकी वजह से मैं किसी आदमी से कमतर नहीं हो जाती। ये मेरी च्वाइस होनी चाहिए कि मैं क्या बनना चाहती हूं। अगर मैं CEO बनना चाहती हूं, शादी करना चाहती हूं तो इन फ़ैसलों का अधिकार मुझे होना चाहिए। हम लोग उस जगह हैं कि आवाज़ उठा सकते हैं, हम कह सकते हैं कि मुझे ये नहीं करना, वो करना है लेकिन असलियत में अभी बहुत दूर जाना बाकी है। मैं ख़ुद अभी सीख रही हूं।
साईनी : बैड फेमनिस्ट मैंने इसलिए लिखा कि मैंने खुद को मिले इस प्रिवलेज का कई बार मिसयूज़ किया है। यानि जहां तक मेरी आवाज़ पहुंचनी चाहिए थी वहां तक मैंने शायद नहीं पहुंचाई। मुझे ये भी लगता है लोग आजकल लोग छोटी-छोटी बातों पर बुरा मान जाते हैं तो मैं ये कोशिश करती हूं कि हर चीज़ थोड़ा मज़ाक के तरीके में बोल दूं। सामने वाला थोड़ा संकोच करेगा लेकिन कुछ कह नहीं पाएगा, बस हंस देगा। ये समाज पर ताने जैसा है कि फिर क्यों ही करना है कि घर पर ही बैठते हैं। बहुत औरतें अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाती हैं तो मैंने उसे ताने मारते हुए कहा है, ‘छोड़ो फिर, करना ही क्या है?’
साईनी : हम घर में तीन औरतें हैं। मेरी मां, मैं और मेरी बहन। हम तीनों ने ही सब कुछ अपने बल पर किया है। हम आत्मविश्वासी महिलाएं हैं और हम दोनों बहनें मेरी मां के सिखाए मोरल्स को लेकर चलती हैं। मुझे हमेशा मेरे परिवार का सपोर्ट मिला है और जब तक हम विश्वास से इस रास्ते पर चलते रहेंगे मुझे नहीं लगता कि कोई परेशानी होगी। मेरे दोस्त औऱ जानने वाले भी मुझे पूरा सहयोग देते हैं।
हां मेरी मां थोड़ा कतराती हैं कि मेरा नाम ना बताया कर कहीं तेरे सोशल मीडिया वाले हेटर्स मेरे पीछे ना लग जाएं। (आंटी जी आपकी बेटी बहुत ही प्यारी हैं)।
साईनी : मुझे एक्सरसाइज़ करना बहुत पसंद है क्योंकि मुझे खाना बहुत पसंद है। मैं बस इसलिए एक्सरसाइज़ करती हूं ताकि मैं खा सकूं। मुझे लगता है ज़िंदगी में खाने के अलावा कोई बेहतर चीज़ नहीं है। खाना मेरा सॉर्स ऑफ हैप्पीनेस है। ग्रासरूट लेवल पर हम सब खाने के लिए ही काम कर रहे हैं। खाना आपका मूड बदल देता है। आपका मूड खराब हो तो अच्छा खाना आपको ख़ुश कर देता है। इसके अलावा मुझे कविताएं लिखना, गानें सुनना, सिंगिंग का शौक है। मैं हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखने की कोशिश करती रहती हूं। फिलहाल मैं अपने आप ही पेंटिंग करने की कोशिश कर रही हूं।
साईनी : गुलज़ार साहब मेरे पसंदीदा हैं। मुझे उनकी ग़ज़लों और शायरी से प्यार है। मुझे लगता है हमारी जेनेरेशन ये नहीं समझ पा रही कि हम कितने भाग्यशाली हैं कि हम उस समय में हैं जहां हम गुलज़ार और जावेद साहब को देख सकते हैं सुन सकते हैं।
मैं ना जाने कितनी दफ़ा इन्हें लाइव सुन चुकी हूं। इनके लिखे शब्द आपको मंत्रमुग्ध कर देते हैं। मेरी मां साहिर लुधियानवी और जगजीत सिंह को सुनने जाया करती थीं तो वो जब उनके बारे में बताती थीं। मुझे लगता था काश मैं भी उन्हें सुन पाती। वाकई इन्हें सुनकर ऐसा लगता है जैसे वक्त ठहर सा गया हो। वहीं से मुझे और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती हैं।
साईनी : गुलज़ार साहब की लिखी कविता ‘अलाव’ और जावेद साहब की ‘बंजारा’ मुझे बेहद पसंद हैं।
मुझे मेरी लिखी ‘मिसाल’ बहुत अच्छी लगती है।
(साईनी कहती हैं कि मेरा नाम ग़ुलज़ार साहब और जावेद साहब के साथ मत लिखिएगा। लेकिन हम मानते हैं कि साईनी आप लाखों की प्रेरणा हैं और अपनी मेहनत से मुक़ाम पाने वाला इंसान किसी से कम नहीं )
साईनी : एक्टिंग तो छोड़ ही नहीं सकती क्योंकि ये मेरा पहला प्यार है। मेरी पहचान ही परफॉर्मेंस करना है। अब कितने आगे जाएंगे ये तो और भी कई बातों पर निर्भर करता है। मेरा अगला गोल है कि मैं खुद के लिए एक शो लिखूं और उसमें लीड रोल निभाऊं। ड्रामा तो बंद नहीं कर सकती और लिखना भी। अब दोनों ही शैलियों को लोग सराहने लगे हैं तो दोनों को ही साथ लेकर काम करते रहना है।
साईनी : मैं कह दूं कि फॉलो योर हार्ट/ follow your heart तो ऐसी बातें बस सुनने में अच्छी लगती हैं। लेकिन अगर कोई मेरी जर्नी से कुछ सीख सकता है तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। कॉलेज खत्म होते ही मुझे भी पैसे कमाने थे, क्योंकि सोसाइटी ने कहा है कि पैसे कमाने हैं।
करियर को लेकर मेरा अपना संघर्ष रहा है। मैंने बहुत सारी नौकरियां की जहां मेरा काम लिखना ही रहा। कॉन्टैंन्ट राइटिंग की, वेबसाइट राइटिंग, कॉपीराइटिंग सब कर लिया। लेकिन किसी में वो सैटिस्फैक्शन नहीं मिल रहा था। कभी काम है तो पैसे नहीं है और पैसे भी आ गए तो सैटिस्फैक्शन नहीं था।
काम करते करते मुझे ये समझ आ गया कि मुझे पैसे कमाना नहीं बल्कि अपनी कहानी कहनी है जो अपनी कविताओं के ज़रिये लोगों के साथ साझा कर सकूं। मैं शायद बयां ना कर पाऊं लेकिन जिस दिन से मैंने अपने मन का काम करना शुरू किया तो पैसे भी आने लग गए थे। मुझे याद है जब फिल्म थ्री इडियट्स आई थी तो उसमें एक डायलॉग है कि सक्सेस के पीछे नहीं, एक्सिलेंस के पीछे भागो और मैं सोचती थी कि डायलॉग के लिए तो ठीक है लेकिन जब पैसे चाहिए होते हैं तो ये बात काम नहीं करती।
जो भी लड़कियां मुझे देखती हैं और अगर मुझसे इंस्पायर होती हैं तो मैं यही कहूंगी कि अगर आप अपने लिए बड़े सपने देखती हैं तो उन्हें पकड़ कर रखें, क्योंकि अगर आप उसके लिए मेहनत करती हैं तो मेरा विश्वास है कि कायनात आपकी चाहत ज़रूर पूरी करती है। जैसे ये मेरा प्यार ही था शाहऱख खान के लिए कि आख़िरकार मैं उनसे मिल ली।
(मैंने साईनी /Sainee Raj से कहा कि उनके चीकबोन्स बहुत ही प्यारे हैं और हम दोनों इस बात पर हंस पड़े। लेकिन साईनी राज आप सच में ख़ूबसूरत और ख़ूबसीरत हैं।)
मूल चित्र : Instagram
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