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सरिता निर्झरा कहती हैं कि अगर कोई महिला अपने लिए आवाज़ उठाती है तो उसे फेमिनिज़्म का तमगा ना दें, वो बस अपना हक़ मांग रही हैं।
जैसा कि आप सब जानते हैं कि हम चुनिंदा टॉप ऑथर्स को, हिंदी टॉप ऑथर सीरीज़ के ज़रिये, आपसे मिलवाने ला रहे हैं, तो क्या आज आप अपने अगले फेवरेट ऑथर से मिलने के लिए तैयार हैं?
हमारे टॉप ऑथर्स की इस सीरीज़ में मिलिए हमारे अगले टॉप ऑथर सरिता निर्झरा से
आइये मिलते हैं हमारे ऑरेंज फ्लॉर फ़ेस्टिवल में दो कैटेगरीज़ में नॉमिनेट हो चुकी सरिता निर्झरा से। इंग्लिश लैंग्वेज में इनकी पकड़ बहुत अच्छी है लेकिन अब इन्हें हिंदी बहुत भाती हैं। ये इंग्लिश के साथ साथ हिंदी में भी बहुत सशक्त लेख लिखती हैं। सरिता निर्झरा ने बच्चों के लिए एक स्कूल भी खोला है। और ये करीब 6 – 7 सालों से लगातार लिख रहीं हैं। और लगातार बेहतरीन क्वालिटी के लेख हम तक पहुंचा रहीं हैं।
सरिता निर्झरा के लेख अक्सर फीचर्ड लेख के कॉलम में प्रकाशित होते हैं। उम्मीद है आपने ज़रूर पढ़े होंगे और अगर नहीं पढ़े हैं तो आज ही पढ़े।
लैंग्वेज पर बचपन से ही मेरा बहुत अच्छा कमांड था। लेकिन उसके बाद शादी, बच्चे, जॉब आदि की वजह से लिखना कहीं छूट सा गया था। फिर उसके बाद तकरीबन 2012 – 13 से मैंने इसे वापस से शुरू किया। उस समय मुझे लगा कि कुछ ऐसी चीज़े हैं जो दिल में रहती हैं, जिन्हें मैं किसी से शेयर नहीं कर पा रही थी। उसे एक्सप्रेस करने के लिए मुझे लिखना ही सबसे सही लगता था। तो मैंने मदरहुड के ब्लॉग लिखना शुरू किये। और यही से मेरे लेखन की एक बार फिर से शुरुवात हुई।
मैंने लिखने की शुरुवात मदरहुड, लाइफस्टाइल, रिलेशनशिप जैसे बहुत ही नाज़ुक विषयों से करी थी। फिर उसके बाद मैंने महिला शश्क्तिकरण के विषयों पर लिखना शुरू किया। उसके अलावा मैंने शार्ट फिक्शनल स्टोरीज़ (काल्पनिक लघु कथायें ) भी लिखी हैं। और अब मैं लॉन्ग स्टोरीज़ लिखना चाहती हूँ। धीरे धीरे उसके लिए मैं खुद पर काम कर रही हूँ।
मुझे रात को लिखना बहुत पसंद है। उस समय कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं होता है। एक आर्टिकल को अच्छे से लिखने, एडिट करने के लिए टाइम चाहिए होता है, जो की अक्सर देर रात को ही मिलता है। उसमे आप जितना चाहे उतना समय आप दे सकते हैं। तो मैं रात में ही लिखती हूँ।
मुझे क्या लिखना है, अगर उसका एक स्ट्रक्चर मेरे दिमाग में है, तो ज्यादा से ज्यादा दो से ढाई घंटे में मैं एक अच्छा लेख तैयार कर सकती हूँ। कई बार ऐसा भी होता है की पूरा आर्टिकल लिखने के बाद मुझे सेटिस्फैक्शन नहीं मिलता है। लगता है की नहीं उसमे वो फ्लेवर नहीं है, जो मुझे चाहिए, तो मैं दोबारा से नये सिरे से लिखती हूँ। फिर कई बार वो एक से डेढ़ घंटे में बहुत बढ़िया आर्टिकल निकल कर आ जाता है।
बिल्कुल। लिखना और पढ़ना दोनों ही मेरे लिए सबसे खास हैं। मेरे दिन का एक हिस्सा मैं इनको ज़रूर देती हूँ। चाहे वो 1 घंटा ही हो या उस से ज्यादा। हर रोज़ तो आप लिख नहीं सकते हैं, लेकिन मेरी कोशिश रहती है कि बिना पढ़े मेरा कोई दिन नहीं निकले। मुझे अपने आप के लिए ये वक़्त चाहिए ही होता है क्यूंकी पूरे दिन में सबसे ज्यादा यही वक़्त मुझे सुकून देता है।
मेरे फादर से ही मुझे पढ़ने का शौक मिला है। तो वो मुझे शुरू से ही सपोर्ट करते है। लेकिन अक्सर कई लोग कहते थे कि इससे मिलेगा क्या। उनका मतलब पैसों से ही होता है। तो मेरे लिए लोगों को ये समझाना बहुत मुश्किल था की हर चीज़ को आप पैसों से नहीं तोल सकते हैं। कुछ खुद की ख़ुशी के लिए भी करना चाहिए है।
उस समय मैं अपने सारे लेख फेसबुक पर शेयर किया करती थी, तो अक्सर लोग मुझसे कहते थे कि तुम तो दिन भर फेसबुक पर रहती हो, उस समय में हंस कर कह देती थी की तो वहीं देख लिया करो। लेकिन जैसे जैसे वक़्त बदला, मेरे आर्टिकल्स, कवितायें लोग पढ़ने लगे और अब वो मेरे काम की कद्र करने लगे है। मेरी फैमिली, मेरे बेटे भी अब मेरी सराहना करते हैं। तो हां कह सकती हूँ, अब मुझे पूरी तरह से सपोर्ट मिलने लगा है।
मेरा मानना है कि जो हम लिखते हैं, वो हमारी सोच का हिस्सा होता है। जब रीडर्स ख़ासकर महिलाएं, मुझसे आकर कहते हैं की आपका वो आर्टिकल पढ़कर मुझे ऐसा लगा की जैसे आपने मेरे मन की बात कह दी हो। तो उस समय मुझे बहुत ख़ुशी मिलती है। वो पल एक अलग ही सुकून देने वाला होता है। मेरा मानना है कि हर किसी को अपनी ज़िंदगी की वो एक चीज़ ज़रूर करनी चाहिए जो उन्हें ख़ुशी देती है। जब मैंने लिखना शुरू किया था तो मैंने ये नहीं सोचा था की मैं कोई बुक पब्लिश करूंगी या इस तरह से मुझे सराहना मिलेगी। बस मैंने अपने लिए कुछ किया और जब आज इस मुक़ाम पर आ गयी हूँ की मेरे आर्टिकल्स, कवितायें लोगो को बहुत पसंद आने लगी है, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है।
मेरी एक ऐन्थॉलजी ( संकलन ), गुब्बारें आ चुकी है जो बच्चों की कहानियों पर आधारित है। इसके अलावा कही अनकही नाम की एक संकलन में भी मेरी कवितायें आ चुकी हैं। मैंने एक डिजिटल बुक ‘ऑनलाइन वुमनिया’ में भी योगदान दिया है। इस बुक को 32 वीमेन ऑथर्स ने मिलकर लिखी है, जो सभी देश के अलग अलग कोनों से हैं। हम कभी आपस में मिले नहीं हैं, लेकिन इन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिये हम मिले और हमारी बुक को इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। साथ ही विमेंस वेब के ऑरेंज फ्लॉर फेस्टिवल में दो कैटेगरीज़ में मुझे नॉमिनेट किया गया था। इन सबके अलावा अभी में अपनी खुद की कविताएं और कहानियों की दो अलग अलग किताबों पर काम कर रही हूँ।
पढ़ना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है। उसके अलावा फिल्में देखना मुझे बेहद खुशनुमा लगता है। अक्सर खाली वक़्त में ग़ज़लें सुनना पसंद करती हूँ। रात में ग़ज़लें सुनते हुए लिखना पसंद करती हूँ। इसके अलावा पेंटिंग करना भी मुझे अच्छा लगता है।
विमेंस वेब की सबसे अच्छी चीज़ मुझे यही लगती है कि यहां के लेख एक कमरे तक ही सिमित नहीं है। यहां सास-बहु-ननद की भूमिका में औरतों की जिंदगी से उठकर बात होती है। यह प्लेटफॉर्म महिला शशक्तिकरण पर बात करता है। और सबसे अच्छी बात है कि इस प्लेटफॉर्म की हमेशा एक आर्गेनिक रीच रही है। कभी ऐसा नहीं होता की व्यूज़ ज़बरदस्ती बढ़ाये गए हों। ये एक पूरा वीमेन सेंट्रिक प्लेटफॉर्म है तो यहां काम करने में मज़ा आता है।
तो ये थीं सरिता निर्झरा जो फेमिनिज़्म शब्द से सिर्फ नाम मात्र को इत्तफाक़ नहीं रखती हैं। ये निरंतर जेंडर इक्वलिटी के लिए काम करना चाहती हैं और अपनी शर्तों पर जीवन जीना चाहती हैं।
नोट : जुड़े रहिये हमारी टॉप ऑथर्स की इस खास सीरिज़ के साथ। हम ज़ल्द ही सभी इंटरव्यू आपसे साझा करेंगे।
मूल चित्र : सरिता की एल्बम
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
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