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देखो सावन ऋतु कहीं बीत न जाएँ, प्रणय मिलाप गीत कहीं रह न जाएँ। यह प्रेयसी तुम्हारी बिरह में बैठी है, कर सोलह श्रृंगार इंतज़ार में बैठी है।
सावन ऋतु मन भावनी आ गई है,मोहे प्रिय प्रियतम की याद आ गई है।घनघोर मेघ बदरा सब छाए गये हैं,मन में हर्षोल्लास उमंग अति आये हैं।
झूला-झोटा सब पिय बिन ये सूने हैं,बिंदिया कंगना ये जोवन सब झूठे हैं।हरियाली जहाँ-तहाँ बिखरी भयी है,चित्त हिये को बिहल कर चुराई रही है।
कब संदेशों प्रिय मनमीत को आवेगो,कब मोए जान आपनी हिए लगायेंगे।उमड़ घुमड़ कब मैं पपीहा सी चहकूँगी,बन मन मयूर सी इहाँ उहाँ मैं नाचूँगी।
देखो सावन ऋतु कहीं बीत न जाएँ,प्रणय मिलाप गीत कहीं रह न जाएँ।यह प्रेयसी तुम्हारी बिरह में बैठी है,कर सोलह श्रृंगार इंतज़ार में बैठी है।
मूल चित्र : Pexels
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