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कोरा डाइजेस्ट में पूछे गये 5 वीं कक्षा के एक बच्चे के करियर को लेकर चिंतित माता-पिता के सवाल से लगता है कि सिर्फ सुपर किड्स चाहिए सबको।
कोविड 19 फेज में बोर्ड के नतीजे किसी के लिए खुशी और किसी के लिए उदासी का पैगाम लाए। पर सोचना यह है क्या यह पहली बार हुआ? नहीं। हमेशा से दसवीं बारहवीं की परीक्षा परिणाम हम सभी को बच्चों की पढाई,परवरिश और परेशानियों के बारे में फिर से, नए सिरे से विचार -विमर्श के लिए मजबूर करते रहे हैं।
ऐसा लगता है हम बहुत जल्दी हैं, जीवन के किसी भी क्षेत्र या अवस्था में रिकॉर्ड बनाने या रिकॉर्ड तोड़ने के लिये। हम केवल सर्वश्रेष्ठ के लिए ही प्रयास करते हैं अन्यथा नहीं।
हम जानते हैं कि खुश रहना ही मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य है, लेकिन समय से आगे चलने की इच्छा हमें खुशी के मामले में पीछे छोड़ रही है। सदा सबसे आगे रहने की तड़प, ललक, जल्दबाजी, एक सीमा के बाद दिमाग की संतुष्टि व खुशी के सभी तार हिला देती है, एक होड़ में रहने का प्रैशर रहता है जो कि ब्रेन हैम्रेज तक की स्थिति को सक्रिय कर सकता है।
जीवन का ‘फील गुड फेक्टर’ ‘डील गुड फेक्टर’ में परिवर्तित होता जा रहा है, जिसका परिणाम ‘फील बैड फेक्टर’ है। हम अच्छे परिणामों की उम्मीद में अपने जीवन के साथ सदा से सौदा कर रहे हैं। बच्चे, वयस्क, युवा सब भाग रहे हैं, जीतने के लिये दौड़ रहे हैं और तेजी से दौड़ रहे हैं, आगे रहने के लिए दौड़ रहे हैं।
‘क्वोरा डाइजेस्ट’ में पूछे गये 5 वीं कक्षा के एक बच्चे के करियर को लेकर चिंतित माता-पिता के सवाल ने हमें दो बार ये सोचने के लिए मजबूर किया कि आखिर हम जा कहां जा रहे हैं? निश्चित रूप से यह विचारशील, व्यंग्यात्मक उत्तर फिर से दिमागों को उकसाता है कि हम अपने बच्चों को “सुपर किड्स” के तौर पर क्यों चाहते हैं जो दुनिया में शीर्ष पर तो हो सकते हैं लेकिन अकेले, एकाकी एकांत भी। उनका जवाब था पैरैंट्स के लिए, “आपको एल.के.जी. कक्षा में पूछना था अब आपने बहुत देर कर दी है। डाक्टर, इन्जीनियर के लिए तो पिछले जन्म में ही तैयारी करनी थी।” निश्चय ही ये हंसाने वाला परन्तु विचारने वाले प्रश्न और उत्तर हैं।
एक बच्चे की मानसिक और शारीरिक वृद्धि और विकास के लिए एक व्यवस्थित, नियोजित दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, सीखने की क्रमिक प्रक्रिया हर समय अपेक्षित रहती है परन्तु हरेक बच्चे का सीखने और काम करने का की गति अलग होती है।
हमें यह भी याद रखना चाहिए कि कोई भी बच्चा जन्म से सामाजिक या असामाजिक नहीं होता है, वह अपने उस अनुभव, प्रेरणा, निर्देशन और मार्गदर्शन के माध्यम से सीखता है जो उसे अपने परिवार, बड़ों या गुरुओं से प्राप्त होती हैं। हर माता-पिता सहित सभी वयस्कों के पास बच्चे को मार्गदर्शन देने के लिए आवश्यक अनुभव और प्रशिक्षण नहीं होता है जिसकी बच्चे को जीवन के विभिन्न पहलुओं में निरंतर आवश्यकता होती है। सभी को सीखना होता है।
10 वीं और 12 वीं कक्षा के छात्रों पर अच्छे परिणाम के प्रदर्शन करने का दबाव अनायास ही हो जाता है, कभी बाहरी होता है तो कभी स्वयं से होता है। वे अपने वांछित विषय और भविष्य के क्षेत्र को चुन सकें उसके लिये उन्हें उचित मार्गदर्शन और काउंसलिंग की आवश्यकता होती है। छात्रों के जीवन को आकार देने में काउंसलिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। यह उन्हें अपने यथार्थवादी शैक्षणिक और कैरियर के लक्ष्यों को निर्धारित करने में मदद कर सकती है। इन सबसे ऊपर उन्हें उनके साथ सहानुभूति रखने और उनकी समस्याओं के समाधान की पेशकश करने के लिए, किसी दक्ष व्यक्ति की आवश्यकता होती है, तनावमुक्त रहने के मार्गदर्शन की जरूरत ज्यादा होती है।
प्रिय शिक्षकों, माता-पिता और सभी मेन्टर यदि हम यह समझ जाते हैं तो यह इन बच्चों, किशोरों और बड़े बच्चों के लिए सबसे बड़ा उपहार हो सकता है। सही समय पर सही मेंटरिंग इनका कौशल को निखार सकती है।
उनके कौशल और प्रतिभा को कुशलता से धीरे-धीरे उभरने देना, इसके अलावा यह समझना और स्वीकार करना कि हर बच्चा अपने उद्देश्य और अपनी इच्छा की पूर्ति के लिए इस दुनिया में आया है। न तो हर बच्चे की किसी से तुलना हो सकती है और न ही वह रिकार्ड ब्रेकर बन सकता है।
हमें अपने सपनों का भार अपने बच्चों पर नहीं थोपना है, उन्हें उनके सपने स्वयं बनाने देना है। हमारा और उनके मेंटर्स का मार्गदर्शन, निश्चित रूप से इन सब उदेश्यों की पूर्ति में सहायक होगा। अच्छी तरह से परामर्श प्राप्त माता-पिता, अच्छी तरह से परामर्शित बच्चे को आकार दे सकते हैं।
मूल चित्र : Canva Pro
Pen woman who weaves words into expressions. Doctorate in Mass Communication. Media Educator Blogger ,Media Literacy and Digital Safety Mentor. read more...
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