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तारकेश्वरी सिन्हा को पुरुषवादी राजनीतिक महौल ने बेबी ऑफ हाउस, ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स, ब्यूटी विद ब्रेन और ना जाने क्या-क्या बना दिया!
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कितनी ही महिलाओं के संघर्ष के दास्तान इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर खोकर रह गयी। आज हम उनको जानते तक नहीं है, परंतु भारत को एक खुदमुख्तार मुल्क़ के रूप में देखना ही उनका सपना था, इसलिए उन्होंने अपना सब कुछ देश के न्यौछावर कर दिया।
देश आजाद हुआ और इसके साथ उन्होंने मुख्यधारा राजनीति में शामिल ना होकर उन भूमिका में स्वयं को समेट लिया, जो देश को सामाजिक रूप से मजबूत कर सकती थीं। मसलन, शिक्षा और सामाजिक कार्य।
परंतु उनमें कुछ महिलाओं के अंदर गज़ब की नेतृत्व क्षमता थी। इसी नेतृत्व क्षमता के गुण के कारण वह महिलाएं आजाद भारत में भी सबों के नज़र में आई। इन महिलाओं में बिहार से दो महिलाओं का नाम आता है क्योंकि केंद्रीय मंत्री परिषद में इन दोनों महिलाओं ने बिहार का प्रतिनिधित्व किया। एक थी जहांआरा जयपाल सिंह और दूसरी थी तारकेश्वरी सिन्हा।
बिहार में आजादी के पहले के दिनों में राजनीतिक गतिविधियों में गोष्ठियों में, बहसों में, आंदोलनों में बहत कम महिलाएं दिखती थीं। तारकेश्वरी सिन्हा उन युवा महिलाओं में से थीं जो अपनी पढ़ाई की तमाम व्यस्तताओं में से बहसों और गोष्ठियों के लिए समय जरूर निकलतीं। घर में गांधीवादी पिता, मार्क्सवादी भाई के दोस्तों की हमख्याली ने तारकेश्वरी को ‘भारत छोड़ों’ आंनदोलन में बतौर महिला प्रतिनिधि शामिल करवा दिया।
तारकेश्वरी की यह वाकपटुता और राजनीति में सक्रिय भागीदारी की महत्वकांक्षा उनके डाक्टर पिता जो नालंदा जिले के सपन्न किसान परिवार से आते थे, चिन्ता का कारण बना।
नवादा के डॉ. भारती शर्मा के घर तारकेश्वरी सिन्हा का जन्म 1926 के दिसंबर के महीने में 26 दिसंबर को हुआ। डॉ. भारती शर्मा सिविल सर्जन और गांधीवाद में विश्वास करने वाले व्यक्त्ति थे। वह बिहार के उस उन्मुक्त महौल के बीच नहीं थे जो अपने बेटियों को इतने बेबाकी और आजादी से अपना रास्ता चुनने दे। इसलिए उन्होंने तारकेश्वरी की शादी छपरा के जमींदार परिवार के निधिदेव सिंह, जो पेशे से वकील थे और राज्य सरकार के मुकदमों को लड़ते थे, से कर दी।
उनके पिता को लगा कि तारकेश्वरी कलकत्ते में अपने परिवार में व्यस्त होकर राजनीति को अलविदा कह देगी। तारकेश्वरी ने अपने एक साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार्य किया कि ‘वह राजनीति में इतना अधिक सक्रिय अपने परिवार के सहयोग के कारण ही रह सकी। राजनीति की व्यस्तता में बच्चे उपेक्षित जरूर हुए।’
तारकेश्वरी राजनीति से अपने को दूर नहीं रख सकीं। कुछ साल राजनीति से दूर रहकर फिर से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी। आजादी के पहले बिहार के सारे नेता तारकेश्वरी को जानते ही थे, देश के आजाद होते ही केंद्र में नेहरू और दूसरे नेता भी उनको जानने-पहचानने लगे। वह मात्र 26 साल के उम्र में लोकसभा पहुंचीं।
उनके दूसरे चुनाव में जब मोररजी देसाई ने बतौर केंद्रीय प्रेक्षक उनसे कहा, “तुम लिपस्टिक लगाती हो, कीमती कपड़े पहनती हो?” तारकेश्वरी ने जवाब दिया, “हमारे यहां चूडि़यां पहनना अपात्रता नहीं बल्कि क्वालिफिकेशन माना जाता है। आप जो शाहहूश की बंडी पहने हैं, इसकी कीमत से मेरी 6 कीमती साड़ियां आ सकती हैं।”
उसके बाद तारकेश्वरी सिन्हा ने जवाहरलाल नेहरू को चिट्ठी लिखी कि “आप कैसे-कैसे प्रेक्षक भेजते हैं?” यह सवाल अपने आप में जितना अधिक पुरुषवादी बोझ लिए हुए था उसका जबाव भी उतना ही झन्नाटेदार था। मोराजी देसाई तिलमिला तो जरूर गए होंगे। ध्यान रहे यह लेडिज फर्स्ट का दौर नहीं था और महिला समानता और स्वतंत्रता जैसे विचार तो भारतीय फिजाओं घुलना शुरू भी नहीं हुए थे।
इसी पुरुषवादी राजनीतिक महौल ने उनको बेबी ऑफ हाउस, ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स और ब्यूटी विद ब्रेन ही नहीं यह तक कहां कि उनकी आवाज में शहद घुली होती है।
इस बात को तारकेश्वरी ही समझ रही थीं कि इस तरह के टिप्पणीओं में उनके महिला अस्मिता के सवालों को कैसे दरकिनार किया जा रहा है। इसलिए स्वामी सहजानंद सरस्वती ने उनको कहा, “तुम जहां भी चिराग जलाओ तो रोशनी होगी।”
लोकसभा के इस पुरुषवादी महौल में वह 1952, 1957, 1962 और 1967 में बिहार से लोकसभा की सदस्य रहीं। बाद में उन्होंने कई चुनाव लड़े, पर कभी सफलता नहीं मिली। शायद तारकेश्वरी जानती थी कि बिहार जैसे राज्य से उनका प्रतिनिधित्व बिहार के महिलाओं के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
तारकेश्वरी के पूरे राजनीतिक कैरियर में उनकी व्यक्तित्व के गुण ही उनके लिए घातक साबित हुए। पद्मा सचदेव ने उनपर कही-सुनी जाने वाली बातों पर उनसे सवाल किया तो उन्होंने सहजता से जवाब दिया”मैंने आसपास जिरिह बख्तर पहन रखा था।” फिरोज गांधी, मोराजी देसाई और राम मनोहर लोहिया तक से उनके रिश्ते के किस्से उस दौर के अखबारों की खबर बना करती थी।
वही तारकेश्वरी 14 अगस्त 2007 में अपनी मृत्यु के समय मीडिया के लिए एक कालम की खबर भी नहीं बनी। तारकेश्वरी के राजनीतिक कैरियर और उनके दौर में उन पर लिखी जा रही खबरें और गासिप, लाल बहादुर शास्त्री के बाद मोराजी देसाई के पक्ष में उनका आना और उनके चुनाव हार जाने तक की अखबारी खबरों और कालमों का मूल्यांकन किया जाए। यह बात स्पष्ट तौर पर दिखती है कि पुरुषवादी राजनीतिक बिरादरी ने ही नहीं उस दौर के मीडिया ने भी उनके क्षमताओं का मूल्याकंन नहीं किया।
लोकसभा में उनके डिबेट्स और विपक्ष के सवालों का बतौर इकोनांमी अफेयर मिनिस्टिर के जवाब उनकी कार्यक्षमता और राजनीतिक दूरदर्शिता के बारे में बयां करते है। जो बेबी ऑफ हाउस, ग्लैमर गर्ल ऑफ इंडियन पॉलिटिक्स और ब्यूटी विद ब्रेन जैसे पुरुषवादी तगमे में खो गया और छोड़ गया केवल उनके गासिप की खबरों के साथ उनके चरित्र का मैली फटी चादर।
मूल चित्र : YouTube
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