कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मैं तुम्हारी विधवा नहीं, मैं तुम्हारा प्रतिरूप हूँ…

उन लम्हों को याद करती हूँ! रखती हूँ, उन यादों को संभाल कर! आँखें बंद करती हूँ! तुम्हारे अक़्स को महसूस करती हूँ! तुम्हें मैं याद तो हूँ! ख़ुद से नादान सवाल करती हूँ!

उन लम्हों को याद करती हूँ! रखती हूँ, उन यादों को संभाल कर! आँखें बंद करती हूँ! तुम्हारे अक़्स को महसूस करती हूँ! तुम्हें मैं याद तो हूँ! ख़ुद से नादान सवाल करती हूँ!

मैं हर रात लिखती हूँ,
एक पाती प्रेम की, तुम्हारे लिए।
जानती हूँ, तुम मुझे हर रोज़ पढ़ते हो,
कलम उठते ही, धड़कन बढ़ जाती है,
आँसू हैं कि रुकते नहीं।
क्या करूँ?
पीड़ा से भर उठती हूँ…

क्योंकि जो भी लिखा, वो
इन कमबख्त आँसूओं ने मिटा दिया।
साँसें तेज़ होती हैं, फ़िर कलम उठाती हूँ,
आँसूओं को आगाह करती हूँ,
रुक जा, अब ना मिटा!

प्रिय! पहलू में तुम्हारी कमीज़ की
सिलवटें सीधी करती हूँ।
यादों के समुंदर में गोते लगाती,
उन लम्हों को याद करती हूँ।
रखती हूँ उन यादों को संभाल कर,
आँखें बंद करती हूँ,
तुम्हारे अक़्स को महसूस करती हूँ…

तुम्हें मैं याद तो हूं?
ख़ुद से नादान सवाल करती हूँ।
मुझे छोड़ कर जाते हुए, दर्द तो तुम्हें भी हुआ होगा!
छिप-छिप कर तुमने भी, ख़ूब रोया होगा!

तुम्हारे लिए, आज मैं वहीं गुलाबी साड़ी पहनी,
काजल लगाया,
बिंदिया लगा कर आईने में निहार रही थी,
पीछे देखा, तुम ख़ुशी से मुस्कुरा रहे थे।

जानती हूँ, अगर मैं तुम्हारा दर्द हूँ तो,
मैं ही तुम्हारा सुकून हूँ,
मैं तुम्हारी विधवा नहीं,
मैं तुम्हारा प्रतिरूप हूँ…

मूल चित्र : CanvaPro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

3 Posts | 21,825 Views
All Categories