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उस एक दिन गिर कर फिर खुद से ही उठ खड़ा होना होगा…

एक दिन कुछ असहज रहा ही नहीं जाएगा, हर हाल में सहज होगी तुम - कुछ महसूस ही नहीं होगा, इसलिए! उस एक दिन गिर कर फिर खुद से ही उठ खड़ा होना होगा।

एक दिन कुछ असहज रहा ही नहीं जाएगा, हर हाल में सहज होगी तुम – कुछ महसूस ही नहीं होगा, इसलिए! उस एक दिन गिर कर फिर खुद से ही उठ खड़ा होना होगा।

एक दिन तुम्हें रंग-बिरंगे-लेटेस्ट ट्रेंड के कपड़ों में,
कोई रूचि नहीं रह जायेगी – ना फ्लैट ऑफ में।

एक दिन तुम्हें आंखों के नीचे पड़े काले घेरे से,
कोई फर्क नहीं पड़ेगा – पिम्पल्स, फटे पड़े होठों से भी नहीं।

एक दिन हफ्तों पहले लगाए नेल पेंट्स के बचे रह गए रंग भी,
तुम्हें परेशान नहीं कर पाएंगे – ना आड़े-तिरछे-छोटे-बड़े नाखून।

एक दिन तुम्हें याद भी नही होगा आखिरी बार,
पार्लर कब गयी थी – दोस्तों से कब मिली थी।

एक दिन बिखरे-उलझे बिना सेट किये बालों में,
निकलने में भी तुम्हें खराब नहीं लगेगा – न सूजे रोये हुए आँखों में।

एक दिन तुम्हें याद भी नहीं होगा दिन में खाया भी था कि नहीं,
एक दिन तुम्हें परफेक्ट मिस मैच कैरी करने में भी सहज लगने लगेगा।

एक दिन कुछ असहज रहा ही नहीं जाएगा,
हर हाल में सहज होगी तुम – कुछ महसूस ही नहीं होगा, इसलिए!

उस एक दिन खुद ही खुद की सुन के खुद को समझाना होगा,
उस एक दिन रो कर खुद ही आँसू पोछ लेना होगा, गर्म अश्क़ों – आंखों को धो देना होगा।

उस एक दिन मन तो बहुत होगा किसी को तलाशने का,
पर खुद ही खुद को जकड़ के रह लेना होगा।

उस एक दिन सिसकियों से नींद तक का सफर,
तय कर के कैसे भी सो लेना होगा।

एक दिन…
उस एक दिन गिर कर फिर खुद से ही उठ खड़ा होना होगा।

मूल चित्र : Pexels

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