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एक १३-१४ साल का लड़का और एक ५०-६० साल के अंकल, दोनों की सोच आपको,वर्चुअल पितृसत्ता के चलते, किसी लड़की के पोस्ट के कमेंट सेक्शन में नज़र आ जाएगी।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की बातें हम कितने वर्षों से करते आ रहे हैं और फिर भी अत्याचारों की संख्या कम नहीं हो रही है। आज हम सोशल मीडिया के दौर में आ चुके हैं। सोशल मीडिया हमारे जीवन में कितना लाभप्रद है या कितना हानिकारक इस बात की चर्चा हर रोज़ होती रहती है लेकिन कोई इस बात की चर्चा नहीं करता कि सोशल मीडिया महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों को और बढ़ावा दे रहा है।
इस पितृसत्तामक समाज में लड़कियों की उपलब्धियों पर शुरू से सवाल उठाये जाते रहे हैं। समाज में अपनी राय रखने वाली लड़की को हमेशा से ही बहुत से रोड़ों का सामना करना पड़ता है लेकिन पहले की दुनिया में उंगली उठाने वाले लोगों की संख्या कम होती थी क्यूंकि उंगली उठाने वाले लोग सिर्फ वही होते थे जो उसको जानते थे।
लेकिन आज बात कुछ और हो गयी है, आज इस सोशल मीडिया के दौर में अगर कोई लड़की अपने विचार किसी सोशल साइट पे डाल देती है तो उसको दुनियाभर के वो इंसान जो उसके विचारों से सहमति नहीं रखते, उसको गालियां देने लगते हैं, उसको रेप जैसे संगीन अपराधों की धमकी देने लगते हैं। हम इसी को वर्चुअल पितृसत्ता कहा रहे हैं।
वह उनकी फोटो को किसी गलत फोटो की तरह फोटोशॉप करके उनको समाज में बदनाम करने की कोशिश करते हैं, इस वर्चुअल दुनिया में वो एक लड़की के फ़ोन नंबर को वायरल कर देते हैं और अलग-अलग एकाउंट्स से उसको बुली करते हैं।
हमारे यहाँ कुछ अजीब सी प्रथाएं हैं इन प्रथाओं के अनुसार एक लड़के की गलत से गलत बात को यह कहकर टाल दिया जाता है कि ‘उसका गुस्सा थोड़ा तेज़ है’, और वहीं एक लड़की के कुछ विचार भी हमसे सहन नहीं होते। आज वो गुस्सैल लड़के सोशल मीडिया पर हर दूसरी महिला पर अपना गुस्सा निकल रहे हैं।
अगर कोई लड़की अपने राजनीतिक विचार साझा कर दे तो उस पर गालियों की बरसात होनी शुरू हो जाती है और वो गलियों का स्तर किस हद तक पहुँच जाता है हम सब जानते हैं।
विचारों में भिन्नता होना और उस पर वाद विवाद करना अलग बात है जिसका उदहारण आपको अक्सर पुरुषों के पोस्ट्स के नीचे कमैंट्स में मिल जायेगा। लेकिन वहीं अगर कोई लड़की कुछ बोल दे तो उसको किस प्रकार के भद्दे वाक्यों से सम्बोधित किया जाता है ये हम सब जानते हैं। और इस सोशल मीडिया पे किसी को ना कोई डर है ना ही लिहाज़। छोटे -छोटे १३-१५ साल के लड़के रेप की धमकी देने में ज़रा सा भी नहीं हिचकते।
हम क्यों ना कितनी ही बार ये बोल दें की अब महिलाओं की स्थिति सुधर गयी है लेकिन जब भी किसी महिला के सोशल साइट के कमैंट्स देखेंगे तो यही लगेगा कि कुछ नहीं बदला है। पहले कुछ लोगों को डर तो रहता था लेकिन आज वो डर भी नहीं है और सोशल मीडिया से हमें साफ़ यह समझ आता है कि लोगों की सोच कितनी ख़राब अगर उन लोगों को कानून या परिवार का डर बिलकुल ख़त्म हो जाये तो वो किस हद तक जा सकते हैं।
वो महिलाएं जो पहले सिर्फ अपने कुछ रिश्तेदारों से लड़कर अपने सपने जीने की हिम्मत करती थीं आज उनकी लड़ाई न जाने कितने गुना बढ़ चुकी है। सोशल मीडिया पर उत्पीड़न का शिकार सिर्फ वो विचारशील महिलाएं ही नहीं होतीं बल्कि वो भी होती हैं जो कुछ न कहकर सिर्फ अपनी फोटो या वीडियो शेयर करती हैं।
असली समाज की पितृसत्तामक सोच वर्चुअल दुनिया में ज़्यादा हावी हो चुकी है हम कितना भी छुपाने की कोशिश क्यों न करें लेकिन समाज की असलियत इस वर्चुअल दुनिया में हर रोज़ नज़र आ रही है। एक छोटा १३-१४ साल का लड़का और एक ५०-६० साल के अंकल दोनों की सोच में कितनी समानता है वो आपको किसी लड़की के पोस्ट के कमेंट सेक्शन में नज़र आ जाएगी और यह भी नज़र आ जायेगा कि सालों से लगाए जा रहे फेमिनिज्म के नारे समाज में कितना बदलाव ला पाए हैं।
कुछ महिलाएं इस वर्चुअल पितृसत्ता की ट्रोलिंग को झेल कर आगे बढ़ जाती हैं लेकिन कुछ आत्महत्या कर लेती हैं और कुछ डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं। वो महिलाएं जो आगे बढ़ जाती हैं उनकी वाहवाही करना जायज है लेकिन वो जो इस ट्रोलिंग को नहीं झेल पातीं उनको कमज़ोर कहना नाजायज़ है। ये ट्रोलिंग कितनी खतरनाक होती है हम इस बात का अंदाज़ा भी लगा सकते।
इस ट्रोलिंग को देखकर समाज की असलियत नज़र आती है, समझ आता है कि वो सालों तक लगाए गए फेमिनिज्म के नारे कुछ बदलाव नहीं ला पाए हैं। समाज के डर के कारण जो लोग पहले छुपे रहते थे और दिखावा करते थे आज वो सब सोशल मीडिया पर बेपर्दा होकर अपनी सोच ज़ाहिर कर रहे हैं। ये वर्चुअल पितृसत्ता ही है।
आखिर क्यों हम इस बात को मानने से इंकार कर रहे हैं कि हमारा समाज आज भी पितृसत्तामक ही है और यदि हमें इसमें बदलाव लाना है तो हमें सोच बदलने पर विचार करना होगा छुपाने से या कानून बनाने से सोच कभी नहीं बदल पायेगी।
मूल चित्र : Canva Pro
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