कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

तुम मेरे जिस्म को डरा सकते हो आत्मा को नहीं!

ऐसा करके तुम अपने को मर्द समझ रहे थे? जिस्म को जलाकर आत्मा को डरा रहे थे? मीडिया फिर भरा था ब्रेकिंग न्यूज़ से, न्यूज़ वही बस लड़की बदल गयी!

ऐसा करके तुम अपने को मर्द समझ रहे थे? जिस्म को जलाकर आत्मा को डरा रहे थे? मीडिया फिर भरा था ब्रेकिंग न्यूज़ से, न्यूज़ वही बस लड़की बदल गयी!

एक रोज़ जब तुम मिले थे मुझसे
मेरे सामने आते ही इज़हारे मोहब्बत किया था तुमने
तेरे कुछ पूछने पर ना कि थी मैंने
उस दिन तेरे अहम को चोट पहुँचा दी थी मैंने

ये बात शायद तुझे कहीं चुभी थी
इस बात से बेख़बर
मैं घर की और चल पड़ी थी
पर तेरी नींद उड़ी थी

फिर सुबह स्कूल चल पड़ी थी
स्कूल जाते समय देखा था ‘ग़ली के नुक्कड़’ पर खड़े तुम्हें
पर ये सोचकर कि ‘तुम समझ गए हो मेरी बात को’
बेपरवाह हो चली थी

रोज़ रोज़ मेरा यूँ बेपरवाह स्कूल जाना
घर से निकलकर ‘अपनी ज़िंदगी को गले लगाना’
तुझे कबूल ना था शायद
क्योंकि तेरे पूछने पर ‘ना’ कि थी मैंने?

ख़्वाबों का गुलिस्ताँ लिये सफ़र पर निकल पड़ी थी
हर बात से बेख़बर अपनी धुन में चल पड़ी थी
आज आसमाँ में बादल तो नहीं थे
फ़िर ये ‘कौनसी फुहार’ मेरे जिस्म पर आ पड़ी थी?
जो मेरे जिस्म के साथ, मेरी आत्मा को भी झुलसा रही थी
ये बारिश की फुहार नहीं ‘तेज़ाब की बौछार’ महसूस हो रही थी…

जिस्म की वेदना कुछ यूँ बढ़ रही थी मानों
जैसे जल बिन मछली तड़प रही पड़ी थी
मेरी चीख़ों से आसमान गूँज उठा था
और धरती रो पड़ी थी
क्या क़सूर था मेरा जो मैं ये सब सह रही थी?

आँखें पथरायी हुई जिस्म ख़ामोश स्ट्रेचर पर पड़ा था
लोग पूछ रहे थे ‘कौन था वो? किसने किया था?’
बताना तो बहुत चाहती थी पर ‘दर्द से होंठ ना हिल रहे थे’
कोशिश कर रही थी ‘हाथ की इशारे’ से सबको बताने की
कि ‘वो सामने मेरे हमदर्द बनकर ही खड़ा है’
पर ‘बेजान हाथ’ को हिला तक नहीं पा रही थी…

जब तक कुछ समझ पाती ‘दर्द के आग़ोश में सो चुकी थी’
जब आँख खुली तो ‘दुनिया ही बदल चुकी थी’
खुद ही खुद को पहचान ना पा रही थी
क्योंकि तेरे पूछने पर ना की थी मैंने
जिसकी सजा आज तूने मुझे दी थी।

ऐसा करके तुम अपने को मर्द समझ रहे थे?
जिस्म को जलाकर आत्मा को डरा रहे थे?
न्यूज़ मीडिया अख़बार फिर एक़बार भरा था ब्रेकिंग न्यूज़ से
न्यूज़ वही थी बस लड़की बदल गयी थी…

आज तो थी मेरी बारी पता नहीं कल हो किसकी बारी
ये सिलसिला थामने का बस एक ही उपाय लगता है
कि पुरुष को शिक्षित करें नारी सम्मान के प्रति…

मूल चित्र : Stolk from Getty Images Signature via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

45 Posts | 241,955 Views
All Categories