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किसी भी पूजा अर्चना में अक्षत यानि चावल चढ़ाकर भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे सभी कार्यों की पूर्णता चावल की तरह हो।
‘अक्षत’ यानि अखंड चावल यानि कि भात से हमारा नाता उसी दिन से जुड़ जाता है जिस दिन हमें सात महीने का होने पर पहली बार अन्न ग्रहण करने की रस्म, अन्नप्राशन संस्कार के दौरान भात, दही, शहद और घी आदि को मिश्रित कर खिलाया जाता है।
देवपूजा के पश्चात चांदी के चम्मच से खीर आदि का पवित्र प्रसाद हमें मंत्रोच्चारण के साथ माता-पिता द्वारा चटाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार तीन वर्ष का होने पर हमारे विद्यारंभ संस्कार की परंपराओं और रिवाजों को निभाते हुए चावल से भरी थाली पर अपनी तर्जनी वाली उंगली से ऊँ बनाकर माँ सरस्वती से हमारा प्रथम साक्षात्कार होता है। क्योंकि अक्षत पूर्णता का प्रतीक है यानि यह टूटा हुआ नहीं होता है।
किसी भी पूजा अर्चना में चावल चढ़ाकर भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे सभी कार्यों की पूर्णता चावल की तरह हो, हमें जीवन में शांति मिले। हम हर पूजा, व्रत,त्यौहार के दौरान अपने माथे पर रोली के साथ चावल का टीका भी लगाते हैं!
दाल चावल, पुलाव, खीर के अतिरिक्त चावलों से हमारे और भी कई रिश्ते जुड़े रहते हैं। रक्षाबंधन पर राखी भेजते वक्त एक पुड़िया में रोली-चावल बाँध कर रखना मानो बहनों ने भाई की सलामती के सारे टोटके पूरे कर लिए हों!
व्रत-त्यौहारों की कहानी के दौरान मुट्ठी में दूब और चावल रखना शुभ माना जाता है। हिंदू धर्म में चावल को सदा से ही विशेष महत्व दिया जाता है। बच्चे के नामकरण संस्कार से लेकर उसके अंतिम संस्कार तक चावल हर जगह पूजा में काम आता है। कोई भी पूजन अक्षत के अभाव में अधूरा है। पूजा में अक्षत चढ़ाने का अभिप्राय यह है कि हमारा पूजन अक्षत की तरह पूर्ण हो।
मेरा भी चावल से यह रिश्ता पुलाव, दाल चावल, खिचड़ी, खीर, इडली और डोसा से शुरू होकर एक अलग ही स्तर पर पहुंच गया जहां चावल मेरे लिए केवल एक खाद्य पदार्थ ही नहीं रहा अपितु इससे मेरा एक और भावात्मक रिश्ता जुड़ गया।
विदाई के वक्त मुट्ठियों में ‘खील’ यानि कि भुने चावल लेकर पीछे अपना पल्लू फैलाए खड़ी माँ के आँचल में डालना, डोली में बैठते ही माँ का मेरी गोद में चावल डालना, ससुराल में प्रवेश करते ही द्वार पर सासू मां द्वारा मुझ पर दोनों हाथों से चावल न्यौछावर करना, कांसे के चावल भरे लोटे में पैर मारकर गृहप्रवेश करना, देवपूजा करते थाल में मुट्ठियां भरकर चावल सास के आँचल में डालना, बहुभोज में ससुराल की औरतों के साथ बैठकर मीठे चावल खाना और पहली रसोई की रस्म के दौरान चावल की खीर बनाकर नेग पाना!
मैंने पहली बार ससुराल में जब सूटकेस खोला तो सबसे ऊपर मां के हाथों रखी चावल, रोली और दूब की पुड़िया ही हाथ लगी थी। याद आया जब पापा सूटकेस लाए थे तब माँ ने सुहाग के शुभ के लिए सबसे पहले इसके हैंडिल पर कलावा बाँधकर चावल के कुछ दाने इसमें अखबार के नीचे रख दिए थे।
वो ‘बड़ा सा’, सूटकेस क्योंकि थोड़ा अतिरिक्त साज-सहेज कर रखा जाता है तो कभी-कभार ही निकाला जाता रहा। सूटकेस में बिखरे चावल के वे बिखरे दाने जो मेरी माँ ने मेरे शुभ और सुहाग के लिए सूटकेस में रखे थे। मैंने आज भी अपनी अलमारी के लॉकर में सहेज कर रखे हैं। हां सोने-चाँदी के जेवरों का कभी ज्यादा शौक रहा नहीं तो वे न जाने कब के बैंक में विराज रहे हैं। मेरा मानना है मेरा सारा शुभ, मंगल और सौभाग्य केवल वे चंद चावल के दाने ही हैं, जो मेरी माँ ने मेरा सूटकेस लगाते उसमें डाले थे!
उन चंद चावल के दानों में मेरी माँ का शुभ आशीष मेरे साथ मेरी आखिरी साँस तक रहेगा ऐसा मेरा विश्वास है। क्योंकि बचपन से हम सभी का हमारी माँ के हाथों खिलाए भात यानि ‘अक्षत’ में ही हमारा सारा शुभ निहित रहता चला आया है!
अक्षत मंत्र-
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:। मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥
इस मंत्र का अर्थ है कि हे ईश्वर, पूजा में कुंकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित कर रहा/रही हूं, कृपया आप इसे स्वीकार करें।
मूल चित्र : zysman from Getty Images via Canva Pro
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