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अलंकृता श्रीवास्तव की डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे कहानी है महिलाओं की यौन इच्छा को जाहिर करने की, जो सामाजिक दायरों में समान्य नहीं है।
अलंकृता श्रीवास्तव की डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे कल नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। अलंकृता श्रीवास्तव लिपिस्टिक अंडर बुर्का के बाद फिर से उस विषय पर कहानी कोशिश की है जिस पर महिलाएं बात करने से घबराती हैं और भारतीय समाज में वो अपराध बोध के दायरे में कैद करने के लिए काफी है। अलंकृता श्रीवास्तव डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे में कहानी कह रही हैं महिलाओं की यौन इच्छाओं को जाहिर करने की प्रवृत्ति पर, जो भारतीय सामाजिक दायरों में समान्य बात नहीं है।
भारतीय समाज में पुरुष ही नहीं महिलाएं भी अपनी यौन इच्छाओं के बारे में बात करें तो कैसे करें और किससे करें, इससे जुड़े हुई उठापटक की कहानी को कहने में अलंकृता श्रीवास्तव कई जगह पर उलझी सी भी लगती हैं। कितनी जगह वे कामयाब रहीं, इसका फैसला दर्शक ही कर सकते हैं।
इस कहानी को कहने में भूमि पेडनेकर, कोंकणा सेन शर्मा, विक्रांत मेसी, आमिर बशीर, अमोल पालेकर के साथ ही कुब्रा सैत और करण कुंद्रा भी नजर आते है, जो आते है और चले जाते है। अभिनय का प्रभाव और दर्शक तक अपनी बात पहुंचाने में भूमि पेडनेकर और कोंकणा सेन शर्मा का चरित्र कामयाब हो जाता है।
कहानी की बात की जाए तो वह नई बोतल में पुरानी शराब के तरह है। दो चचेरी, बहनें एक शादीशुदा एक कुँवारी, नोयडा जो मुबंई के बाद नया सपनों का शहर है, वहां आजाद परिदों के तरफ घूमना चाहती हैं, जिसमें अपनी शारिरीक जरूरतों के प्रति सचेत रहना और उनको पूरा करने के ख्वाब देखना, कहानी का अहम हिस्सा है।
एक बहन का पति दूसरी बहन के साथ सेक्स करना चाहता है, इस बात को अंलकॄता ने बहुत समान्य तरीके से कहा है क्योंकि भारतीय समाज में ‘साली आधी घरवाली’ के व्यंग्य बाण में कितनी ही सालियों के साथ शारीरिक शोषण करता है यह कभी सामने नहीं आती है। दोनों बहनों के विवाहेतर संबंधों की बात बाहर आ जाती है और उसके बाद हंगामा खड़ा हो जाता है यही कहानी है अलंकृता श्रीवास्तव की डॉली किट्टी और चमकते सितारे की।
आज हमारे समय की सच्चाई है कि पुरुषों के तरह महिलाओं के भी शारीरिक संतुष्टि चाहती हैं, उनकी भी अपनी भावनाएं हैं, जो दबी हुई हैं, छुपी हुई हैं। जब वह सामने आ जाती हैं तो हंगामा खड़ा हो जाता है। इन ज़रूरतों को पूरा करना पुरुषों के लिए सामान्य है लेकिन महिलायें अगर इसका ज़िक्र करें, तो उनकी जिंदगी में इससे भूचाल आ जाता है। यह किसी के साथ भी हो सकता है इसे पूरी तरह से गलत या पूरी तरह से सही कोई भी नहीं हो सकता है।
इस कहानी के साथ एक कहानी और भी चलती है वह है कोंकणा सेन शर्मा के छोटे बच्चे की कहानी जो एक टान्सजेंडर बच्चा है। मां उस बच्चे की जरूरत समझ रही है पर सामाजिक सच्चाई उसे डरा रही है। वह एक रोज गुड़िया घर में है और गुड़िया के कपड़े पहनकर खुश है और मां से ‘कहता/कहती/कहते’ हैं घर जाकर उसे पीट लेना पर अभी उसको अपनी खुशी जी लेने दो। यही ‘बच्चा’ जब अनजाने में अपनी ज़रूरतें स्कूल में व्यक्त करने की कोशिश ‘करता’ है और स्कूल में दूसरों बच्चों के साथ पढ़ना ‘चाहता’ है, तो उसे माफी मांगने का कहा जाता है। फिल्म में कोंकणा की माँ (नीलिमा अज़ीम) की कहानी को भी नाकारा नहीं जा सकता। बहुत हिम्मत दिखती हैं इन किरदारों में। वे जानते हैं उन्हें क्या चाहिए।
भारत सरकार ने हाल-फिलहाल में नई शिक्षा नीति में टान्सजेंडर और लड़कियों के शिक्षा के लिए समावेशी शिक्षा नीति की बात कही है जिसकी सोशल मीडिया पर काफी चर्चा भी है। पर क्या सरकार और समाजिक संस्थान परिवार, स्कूल और अन्य सारी संस्थाएं टान्सजेंडर समुदाय के जरूरतों को समझने के लिए तैयार है? यह सामाजिक संस्थाओं के लिए बहुत बड़ा सवाल है? इस बात को अलंकृता श्रीवास्तव कहने में कामयाब रही हैं।
फिल्म ‘डॉली किट्टी और और वो चमकते सितारे’ में डॉली और किट्टी के जो चमकते सितारे हैं वह दर्शकों और भारतीय समाज को सहजता से चमकने वाले सितारे तो नहीं लगने वाले हैं क्योंकि यह जो सितारे हैं वह अमावस्या की रात में चमकने की हिम्मत कर रहे हैं। इन चमकते सितारों की रोशनी लोगों को काले चश्मे पहनने के बाद भी बर्दाश्त हो जाए इसकी उम्मीद कम है।
मूल चित्र : स्क्रीनशॉट मूवी पोस्टर
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