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क्या आप जानते हैं कि वाराणसी में एनी बेसेंट की स्वीकृति से सेंट्रल हिंदू कॉलेज बना और इसके साथ ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी स्थापित हुआ।
विकटोरियन युग के आखरी दौर में जब नारी मुक्ति का सवाल इंगलैड में क्रुफ माना जा रहा था, इंग्लैड के ग्रामीण परिवेश में एनी बेसेंट का जन्म 1 अक्टूबर 1847 को एक समृद्ध परिवार में हुआ। नारी मुक्ति के महौल में बड़ी हुई एनी बचपन से ही विद्रोही स्वभाव की थी, जो उनके अभिभावकों के लिए हमेशा चिंता का कारण भी था। एनी बेसेंट की बौद्धिकता जब घर-परिवार को तोड़ने लगी, तो उनका विवाह यार्कशायर के एक सामंत युवा एडोल्फ़ से कर दिया गया।
यह वह समय था जब भारत की 1857 की क्रांति को पूरी तरह से दबा दिया गया और भारत में इस्ट इंडिया कंपनी अपने पैर जमा चुकी थी। इंग्लैड में फ़ेबियन सोसायटी अपनी जड़े जमा रही थी। सिडनी और बीट्रिस वेब, रैमजे मैकडोनाल्ड, एच.जी.वेल्स, ओलिवियर ग्राइम वैलेस, एडवर्ड निंस और जी.डी.एच.कोल जैसे प्रखर मनीषी लोग फ़ैबियन सोसायटी के सदस्य थे। घर-परिवार के सामंती महौल से ऊब चुकी एनी बेसेंट भी फ़ेबियन सोसाइटी की सदस्य बन चुकी थीं। वह तीन बच्चों की मां भी बन चुकी थीं लेकिन उनका मन सामंती समाज में स्थिर नहीं था वह अपने सवालों का जवाब चाहती थीं, जो मिल नहीं रहे थे।
उन्हीं बैचेनी के दिनों में फ़ेबियन सोसायटी के एक जलसे में पूंजीवादी शोषण के खिलाफ एक जलसे में एक शख्स ने एनी बेसेंट को चौंका दिया। एनी बेसेंट जार्ज बनार्ड शॉ के भाषण शैली, अभिव्यंजना और विषय के प्रस्तुतीकरण से प्रभावित हुई। दोनों का व्यवहार एक-दूसरे का विरोधी था पर एनी बेसेंट उनके तरफ आकर्षित होने लगी थी। दोनों अपने-अपने पारिवारिक दायरे और जिम्मेदारियों से भी बंधे हुए थे। उन्ही सालों में जब एनी बेसेंट और बनार्ड शॉ एक-दूसरे के साथ आने के बारे में गंभीरता से विचार कर रहे थे, एक घटना घटी, जो कही जा सकती है एनी बेसेंट के भारत आने की वजह बन गई।
1886-87 के सालों में जब दुनिया आर्थिक मंदी के तूफान से जूझ रहा था। इंग्लैड के हजारो मज़दूरों को घर पर बैठा दिया। फ़ैबियन सोसाइटी सहित इंग्लैड के अन्य समाजवादी संस्थाओं का विशाल प्रदशर्न की घोषणा हुई। 13 नवंबर 1987 के बर्फीली सर्दीयों वाली दोपहर में हजारों मजदूरों के जूलूस पर पुलिस ने डंडे बरसा दिए। मजदूरों में भगदड़ मच गई। एनी बेसेंट भागने वाले मज़दूरों को रोकने की कोशिश कर रही थी। तभी उन्होंने देखा कि उन भागने वाले लोगों में बनार्ड शॉ भी शामिल थे, जो चंद घंटों पहले मजदूरों को समझा रहे थे कि इस आर्थिक आपदा का सामना कैसे करें? पुलिस की मार एनी बेसेंट के कलाई पर पड़ी वो जख्मी हो गईं। उनके अंदर जो पीड़ा उमड़ रही थी, वह कलाई पर लगे जख्म की पीड़ा से कहीं ज्यादा था। एनी बेसेंट गिरफ्तार कर ली गईं, तीन दिन बाद जब वह जमानत पर रिहा होकर वापस आई, फेबियन सोसाइटी की बैठक बुलाई गई।
एनी बेसेंट ने बर्नाड शॉ से अपनी मुलाकात जारी रखी। एक दिन उन्होंने बनार्ड शॉ के साथ अपने बाली के जीवन बिताने के लिए शादी की बात की, कुछ इकरारनामे के साथ। एनी बेसेंट के बच्चे छोटे थे, वह उनकी भी सुरक्षा चाहते थी। बनार्ड शॉ ने इकरारनामे को मानने से इंकार कर दिया और दोनों के रास्ते अलग हो गए। एनी बेसेंट अपने घर-संसार के दुनिया में लौट आई, मगर उनका मन बैचेन था। उसी दौर में, रूसी विदुषी हेलेना पेत्रोव्ना ब्लावत्सकी की लिखी किताब ‘द सीक्रेट डाक्ट्रीन’ उन्होंने पढ़ी, जो गूढ्च धर्म तत्वों का विश्लेषण कर रही थी। इस किताब का उन पर गहरा असर पड़ा। उसके बाद वे बह्मविधा की जानकार यानी थियोसोफिस्ट बन गई। उन्होंने इंग्लैड छोड़ दिया।
1893 में एनी बेसेंट भारत के मद्रास तट पर उतरीं। भारत में उनके कामों को समेटना बहुत कठिन श्रम साध्य है। भागवद गीता का अंग्रेजी अनुवाद उनका भारत में पहला काम है। वाराणसी में उन्होंने सेंट्रल हिंदू हाई स्कूल की स्थापना की जो आगे चलकर बनारस हिंदू विश्वविधालय बना, आर्य संस्कृति के शिक्षा के लिए उनोंने मद्रास में भी स्कूल खोला, स्काउट गाइड एंव गाइड एसोसिएशन की स्थापना उनके कामों का प्रतिफल है जिसमें उन्होंने युवक-युवतियों के लिए नया मार्ग दिया।
भारत की स्वतंत्रता के पक्ष की वकालत करने के नज़रिये से 1916 में होमरूप आंदोलन उनके ही प्रयासों का फल रहा। इसी आंदोलन ने कॉमन वेल्थ बिल का प्रारूप तैयार किया। इसके बाद एनी गैर राजनीतिक कार्यों में लग गई। रुकमणी अरुंडेल के साथ मिलकर उन्होंने भरतनाट्यम कला को भारतीय किशोरियों और युवतियों के लिए खोलने का प्रयास किया जो अब तक देवदासियों तक ही सीमित था। आज यह महान कला समूचे विश्व के लिए आनंद का साध्य है।
भारत के आजादी के कई साल पहले 1933 में उनका देहांत हो गया। मारग्रेट कजिंस के साथ मिलकर उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की। भारत में महिला अधिकारों के लिए उनके कार्य हालांकि शिक्षित महिलाओं तक ही सीमित थे परंतु उसका विस्तार समान्य महिलाओं तक भी हुआ। यह उनकी तैयार की गई जमीन ही थी जो भारत में महिलाओं को मताधिकार का अधिकार आजादी के तुरंत बाद कुछ संघर्षों के बाद मिल गया।
सरोजनी नायडू उनको याद करते हुए कहा था, “हमारे बीच एक अजनबी महिला के रूप में आई और भारत की यशस्वी और बहादुर महिलाओं की गौरवपूर्ण सूची में अग्रणी महिला में दर्ज हो गई जिसकी वह सच्ची अधिकारी भी थी। भारत उनके योगदानों को चाहकर भी नहीं भूला सकता है क्योंकि उनके विचार देश के युवा पीढी में कला और समाजसेवा के रूप में घर कर चुका है।”
नोट: इस लेख को लिखने के लिए एनी बेसेंट के बायोग्राफी और लक्ष्मी एन.मेनन के लेख का सहारा लिया गया है।
फोटो साभार : Wikipedia
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