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अब तो जब मौका मिलता विनय ऋतू को इधर-उधर हाथ लगा देता। विनय की नज़रे ऋतू पर हीं टिकी रहतीं, रिश्तों का लिहाज कर ऋतू चुप रह जाती।
टिक-टिक-टिक सुबह के अलार्म से ऋतू की नींद खुली, घड़ी मे पांच बज रहे थे! एक नज़र अपने बगल मे बेफिक्र सोए अपने पति अमन और बेटे रौनक पे डाली, दोनों को इस तरह चैन से सोता देख ऋतू मुस्कुरा उठी। बेटे को प्यार किया तो नींद में ही वो कुनमुना उठा। उनको सोता छोड़ ऋतू कपड़े ले बाथरूम मे चली गई। वापस आयी तो अमन भी उठ गए थे।
“गुडमॉर्निंग अमन!”
“गुड मॉर्निंग ऋतू। यार जल्दी से मेरी प्रोटीन शेक बना दो, एक्सरसाइज के लिए निकलना है।”
“ओके बाबा!” और ऋतू शेक बनाने किचन मे चली गई। छोटा सा परिवार था ऋतू, अमन और उन दोनों का सात साल का बेटा रौनक, हँसी खुशी जीवन चल रहा था। अमन को जिम भेज, ऋतू ने दोनों का नाश्ता और लंच बॉक्स तैयार लिया और रौनक को उठाने लगी, “रौनक बेटा चलो लेट हो जाओगे।”
“दो मिनट और मम्मा!”
“नहीं रौनक, चलो उठो अब।”
बेटे को स्कूल बस में बिठा अभी घर आयी ही थी कि देखा फ़ोन बज रहा है। मम्मी जी की कॉल थी, ऋतू की सास, “प्रणाम! मम्मी जी कैसी हैं आप और पापा जी कैसे हैं?”
“हम सब ठीक हैं बेटा! अच्छा सुनो एक जरूरी बात थी, दिल्ली वाली बुआ के बेटे विनय को तो तुम जानती ही होंगी”, ऋतू की सास ने याद दिलाया।
“विनय! जी मम्मी जी, जानती तो हूँ। एक दो बार मिलना भी हुआ है। क्या बात हो गई मम्मी जी?”
“अरे कुछ नहीं उसकी जॉब बंगलौर मे ही लगी है, तो मैंने अमन की बुआ को कह दिया कि जब तक उसके फ्लैट का कुछ इंतजाम नहीं होता, वो एक दो हफ्ते तुम लोगों के पास रह लेगा।
तुम्हें तो पता है बेटा, तेरे पापा जी और बुआ जी मे कितना स्नेह है। हमारे बिज़नेस में जब घाटा हुआ था, तब उन्होंने फूफा जी से छिप के अपने गहने गिरवी रखने को दिए थे। अब हमारा फ़र्ज है कि उनके बेटे को घर की कमी ना होने दें।”
“जी मम्मी जी, जैसा आप कहें”, और ऋतू ने फ़ोन रख दिया।
जब अमन आये तो ऋतू ने सारी बातें उन्हें बताई, अमन ने कहा, “ठीक है लेकिन, ऋतू हमारे पास सिर्फ दो रूम हैं। कैसे एडजस्ट होगा?” अमन ने चिंता जताई।
“सब हो जायेगा। विनय भैया घर के ही तो हैं और थोड़े दिनों की ही तो बात है।”
अमन को ऑफिस भेज ऋतू अपने काम निपटाने में लग गई। दो दिन बाद विनय भी आ गया। रौनक और अमन बहुत ख़ुश हुए।
“चलिए खाना तैयार है ऋतू ने आवाज़ लगाई”, सब ने आपस मे हसीं मज़ाक करते हुए खाना खाया और सोने चले गये।
विनय को दो दिन बाद ऑफिस ज्वाइन करना था। अगले दिन अमन और रौनक के ऑफिस, स्कूल जाने के बाद ऋतू को अकेले विनय के साथ रहने में बहुत संकोच हो रहा था। किचेन में जा कर ऋतू बर्तन धोने लगी कि अचानक उसे लगा पीछे कोई है। देखा तो विनय था, इस तरह उसे देख ऋतू सकपका गई, “क्या बात है?” ऋतू ने पूछा तो विनय ने इस तरह ग्लास सिंक मे रखा कि उसका हाथ ऋतू के कमर से छू गया। ऋतू अचानक से लिजलिजे पन से सिहर गई और चुपचाप अपने रूम में आ गई।
अब तो जब मौका मिलता विनय ऋतू को इधर-उधर हाथ लगा देता। विनय की नज़रे ऋतू पर हीं टिकी रहतीं, रिश्तों का लिहाज कर ऋतू चुप रह जाती। विनय ने दो दिन बाद ऑफिस तो ज्वाइन कर लिया पर अपने फ्लैट पे नहीं जा रहा था। रोज़ एक नया बहाना अमन को सुना देता। ऋतू इन बहानों को खूब समझ रही थी।
शनिवार को सब की छुट्टी थी, रौनक को अपने दोस्त की बर्थडे में जाना था, तो अमन उसे ले कर चले गए। ऋतू रात का खाना बना रही थी, तभी विनय ने किचेन में जा चुपके से ऋतू को अपने बाहों में भर लिया।
चटाक! चटाक! दो करारे थप्पड़ विनय के गालों पे ऋतू ने रसीद कर दिए।
“ख़बरदार! जो एक कदम भी आगे बढ़ाया। बहुत बतमीज़ी बर्दाश्त कर ली तुम्हारी। बुआ जी और मम्मी-पापा जी का लिहाज कर के मैं चुप थी, पर अपने आत्म सम्मान और इज़्ज़त के साथ अब कोई समझौता नहीं करुँगी। देवर हो तो देवर की मर्यादा में रहो। मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी मत समझना। निकल जाओ अभी इसी वक़्त मेरे घर से।”
सिर झुकाये अपने गालों को सहलाता विनय वहां से उसी वक़्त अपना सामान ले निकल गया।
थोड़ी देर बाद अमन वापस आये, “ऋतू ये विनय कहा है? और उसका सामान भी नहीं है? कहाँ गया विनय?” जब अमन ने पूछा तो ऋतू ने सारी बातें रोते-रोते बता दीं।
“मुझे माफ़ कर दो ऋतू, मैं समझ ही नहीं पाया कुछ। अभी मैं मम्मी को सब बताता हूँ।”
“नहीं अमन! आप किसी को कुछ नहीं बताएँगे। मैं नहीं चाहती कि विनय जैसे घटिया इंसान के कारण बुआ जी और पापा जी के रिश्तों मे खटास आये। भाई-बहन के प्यार और विश्वास पे कोई आंच नहीं आनी चाहिए, इस बात को यही ख़त्म कर दीजिये।”
अमन ने ऋतू को गले लगा लिया, “तुम बहुत अच्छी हो ऋतू, रिश्तों को बनाना और निभाना कोई तुमसे सीखे।”
मूल चित्र : Medioimage/Photodisc from Photo Images via Canva Pro
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