कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मुझे नहीं करनी किसी पुरुष की बराबरी…

तुम लड़के पहले माँ, फिर बहन और मेरी शादी के बाद भाभी, बस निर्भर ही रहना तुम, और तुम क्या कहते हो कि मैं तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकती?

तुम लड़के पहले माँ, फिर बहन और मेरी शादी के बाद भाभी, बस निर्भर ही रहना तुम, और तुम क्या कहते हो कि मैं तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकती?

सीमा बिटिया के जन्म से, घर की चहल-पहल तो रौशन हुई थी, पर वो जोश नहीं था, जो उसके भाई के जन्म पर दिखाई दिया था। हल्की सी मुस्कान नहीं, अपितु बेधड़क हंसी-ठहाकों से, घर के उत्तराधिकारी को आलिंगन में लिया गया था।

उस समय तो नहीं पर हाँ,  इस सत्य का कटु अहसास सीमा को, अपने पूरे बचपन में खलता रहा। खेलने का समय, भाई के पास अधिक और सीमा के पास सीमित। स्कूल, पढ़ाई और फिर सबसे जरूरी, घर के कामों की कोचिंग!

वो कई बार बड़े भाई से तुलना करते हुए, खीझ भरे स्वर में कहती, “भाई तो खेलता है, आराम करता है, उससे भी कोई काम करवा लो।“

जब सब, नजरअंदाज कर देते, तो भाई और भी चिड़ाते हुए कहता, “लड़कों को इस सब की जरूरत नहीं पड़ती। इस सब की तुम्हें जरूरत पड़ेगी, तो ध्यान से ट्रेनिंग लो! वरना ससुराल में गालियाँ खाओगी! और मुझसे बराबरी की मत सोचना! तुम मुझसे बराबरी, कर ही नहीं सकती।”

जब बहस अधिक बढ़ जाती तो, घर के बड़े सीमा को, और काम देकर उसमें उलझा देते, पर न सीमा का समर्थन करते और न ही भाई को रोकते!

बचपन से लेकर जवानी तक, भाई के साथ सीमा का, ये शीत युद्ध चलता रहा। वह भाई से हर मामले में बेहतर थी, चलो अधिक नहीं तो कम से कम, भाई को मिलने वाले सम्मान, प्यार के बराबर ही महत्व मिल जाए। पर विडंबना ये कि अपने ही घर में उसे समझने वाला कोई नहीं था!

मेरा काम है? कब तक मुझ पर निर्भर रहोगे?

अब दोनों नौकरी करने लगे थे। एक दिन सीमा दफ्तर से परेशान जैसे ही घर पहुंची, तो आराम करने के लिए लेट गई। खाना बन चुका था, टेबल पर माँ ने रख भी दिया था। सीमा को आवाज़ देते हुए दादी बोली, “सीमा कहाँ रह गई, सब इंतज़ार कर रहे हैं। खाना कब परोसेगी?”

सीमा की सहनशीलता आज जवाब दे चुकी थी। गुस्से में भरी आई, खाना सबको परोस कर, खुद भी खाने बैठ गई! भाई ने चपाती के लिए सीमा को कहा, तो सीमा ने कह दिया, “जाओ ले आओ!”

दादी बोली, “क्य़ा उसे सुधारने में लगी रहती है। जो इससे शादी करेगी, वो सुधार लेगी!”

तिरछी मुस्कान का बाण चलाता-सा, भाई बोला, “चलो उठो, और मैं क्यों जाऊँ, तुम उठो। तुम्हारा काम है।“

अब सब्र का बाँध टूट चुका था। सीमा बोली, “क्या हुआ, कोई तकलीफ है। उठ नहीं सकते, कब तक मुझ पर निर्भर रहोगे? अब तो नौकरी करने लगे हो, अब तो आत्मनिर्भर हो जाओ!”

सब घूर रहे थे पर, सीमा के तेवर देखकर, अब दादी भी चुप थी। कड़क नजरों से एक बार रोकना चाहा, पर आज, सीमा ने नज़रअंदाज कर दिया!

और बिन रुके सीमा कह रही थी, “हाँ तुम लड़कों के भाग्य में, यही लिखा है, पहले माँ, फिर बहन और मेरी शादी के बाद भाभी, बस निर्भर ही रहना तुम। और तुम क्या कहते हो कि मैं तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकती। मुझे तुमसे बराबरी, करनी भी नहीं।

हम औरत  जाति, मर्द जाति की बराबरी, कदापि नहीं कर सकती। क्योंकि हममें जो स्वाभाविक जातिगत विशेषताएँ हैं, तुम जैसे मर्द जाति के लोग तो लेश मात्र भी हमारे बराबर नहीं। शारीरिक, भावनात्मक, वैचारिक कोमलता हमारा श्रृंगार है, पहचान है, शक्ति है, न कि कमजोरी!

हम औरतें चुनौती लेने नहीं, देने वालों में से हैं। हम अपना सर्वोत्तम स्वरूप हैं। औरत जाति का होना हमारी न कमजोरी है न अभिमान, अपितु हमारा स्वाभिमान है। और ऐसा कौन काम है जो आज तुम कर सकते हो और मैं नहीं? लेकिन आज भी बाहर से ऐसे काम हैं जो मैं कर सकती हूँ पर तुम नहीं।”

कितने पुरुष औरतों की ज़िन्दगी जीने की हिम्मत रखते हैं?

बात भी सही है कि हम औरतें तो समाज द्वारा फेंके बेढंग, बेकार, बेडौल पत्थरों संग भी तमाम उम्र काट लेती हैं। कितने मर्द ऐसी ज़िन्दगी जी सकता हैं? ये औरतें ही हैं जो नकारात्मक्ता में भी सकारात्मक रश्मियों को उत्सर्जित कर सकती हैं। इस अमूल्य रश्मि रस से भरी औरतों की प्रतियोगिता स्वयं से है किसी और से नहीं। अरे! हमें समय ही नहीं है।

अब उस दिन के बाद घर में कुछ-कुछ बदलने लगा था और भाई बड़ा होते हुए भी, सीमा से नजरें नहीं मिला पाता था।

सही भी है कि नजरें मिलाने के लिए ऊपर देखना होगा! व्यक्तित्व को उठाना पड़ेगा! क्योंकि दिव्यता के दर्शन के लिए, दिव्य चक्षु होने चाहिए। पर अगर कोई चाहे, ससम्मान बढ़े तो, हम औरतें ये उधार देने के लिए भी तैयार हैं।

क्यों ठीक कहा ना मैंने?

मूल चित्र : Getty Images via Canva Pro

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

41 Posts | 213,459 Views
All Categories