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शेखर काम करते हैं, तो मैं भी करती हूँ बल्कि उनसे ज्यादा करती हूँ। पर माँजी आपको सिर्फ शेखर का काम, उनकी थकान दिखती है, मेरी नहीं?
सुबह के पांच बजे अलार्म की आवाज़ से सिया की नींद खुली, बिलकुल उठने की इच्छा नहीं हो रही थी फिर भी उठना तो था ही देखा तो शेखर और सोनू आराम से सोये हुए थे। जल्दी से टॉवल ले बाथरूम में घुस गई फिर घर की सफाई, पूजा घर की सफाई नहाते और पूजा करते छः बज गए।
“आज चाय मिलेगी कि नहीं”, सिया की सास ने आवाज़ लगाई।
“हाँ माँजी, अभी लायी।”
रसोई में जल्दी से सिया ने चाय चढ़ाई और नाश्ते-खाने की तैयारी में लग गई। जल्दी-जल्दी हाथ चलाया फिर भी नौ बज ही गए। दो रोटी मुँह में जल्दी-जल्दी डाल बेटे सोनू की क्लास कंप्यूटर पर कनेक्ट की और खुद का भी ऑफिस का काम शुरू कर बैठ गई।
बीच-बीच में बेटे को भी देख लेती। एक बजे सोनू का क्लास ख़त्म हुयी तो जल्दी से रोटी सेक सबको खिलाया और खुद भी खा के वापस ऑफिस का काम शुरू कर दिया। इन सब में एक बार भी ना तो सास ने और ना ही शेखर ने किसी ने भी मदद का हाथ नहीं बढ़ाया सिया की तरफ।
कोरोना के कारण काम वाली भी नहीं आ रही थी। वैसे तो घर में सिर्फ चार ही लोग थे, लेकिन सारा काम सिर्फ सिया के जिम्मे ही था। शुरू-शुरू में सिया ने अपनी सास को कहा भी, “माँजी अगर दिन की आप रोटियां सेक देती और सोनू को खिला देतीं तो थोड़ी मदद हो जाती।”
“देख बहु! जब तू ऑफिस जाती थी तब तो किया ही मैंने। अब तो तू घर पर है, अब भी क्या मुझे ही सब करना पड़ेगा? कभी कुछ सुख मुझे भी दे दिया कर सास होने का।”
अब क्या कहती सिया कि सिर्फ ऑफिस की बिल्डिंग बंद हुई है लेकिन उसका काम दुगना हो गया है। इस महामारी में नौकरी जाने का डर अलग। शेखर से तो कोई उम्मीद ही बेकार थी। वर्क फ्रॉम होम तो उसका भी था, लेकिन माँजी की नज़रो में सिर्फ वही काम करता था, सिर्फ उसे ही थकान होती थी और सिया वो तो सिर्फ अपने लेपटॉप और मोबाइल पे टाइम पास करती थी।
घड़ी देखी तो शाम के पांच बज रहे थे, जल्दी से लैपटॉप बंद कर थोड़ी कमर सीधी कर ही रही थी की सोनू आ के गले लग गया, “मम्मा भूख लगी है, प्लीज़ मैंगो मिल्कशेक बना दो ना।”
बेटे के बालों को सहला सिया उसके लिए मैंगो शेक बनने रसोई में चली गई, तभी शेखर भी आ गए, “ओह्ह! आज तो थक गया सिया। थोड़ी कड़क कॉफ़ी बना दो और खाना थोड़ा जल्दी बना देना। आज जल्दी सोऊंगा बहुत थकावट हो रही है।”
“ठीक है”, सिया ने कहा और जल्दी से सोनू को मैंगो शेक पकड़ाया साथ ही शेखर की कॉफ़ी दी। अपनी और माँजी की चाय बना कर माँजी के कमरे में देने चली गई। माँ जी किसी से फ़ोन पे बात कर रही थी दरवाजे की तरफ पीठ होने से उन्होंने सिया को देख नहीं पाई।
“अरे बहु का सुख तो किस्मत में है ही नहीं मेरे, तरस जाती हूँ कि दो घड़ी बैठ के बहु बात करे या फिर सिर ही दबा दे। पूरा दिन अपने लैपटॉप ले के बैठी रहती है।
मुझे कहती है दोपहर की रोटी मैं सेंक दू! अब बताओ इतनी गर्मी में रोटी मैं बनाऊ और वो एसी में बैठे! मैंने तो मना कर दिया मुझसे ना होगा।” तभी उनकी नज़र सिया पर चली गई और झट से फ़ोन कट दिया।
“माँजी चाय लाई थी और कुछ बात भी करनी थी आपसे”, सिया ने कहा।
“माँजी, ये घर सबके सहयोग से ही चल सकता है। शेखर काम करते हैं, तो मैं भी करती हूँ बल्कि उनसे ज्यादा करती हूँ। पर आपको सिर्फ शेखर का काम, उनकी थकान दिखती है, मेरी नहीं? घर का काम, सोनू की पढ़ाई सब सिर्फ मुझे ही देखना होता है।”
“फिर क्या एहसान जता रही है दो रोटी खिलाने का!” माँजी ने गुस्से से कहा।
“नहीं माँजी! मैं तो बस आपको बता रही हूँ कि ये घर हम दोनों की कमाई से चल रहा है। इस गाड़ी का एक भी पहिया निकल गया तो गृहस्थी की गाड़ी बैठे जाएगी। आप मेरी माँ समान है, आप नहीं समझेंगी और सहयोग करेंगी तो कौन करेगा?
आज से घर के काम में आपको भी सहयोग करना होगा। आपकी इच्छा हो तो बहुत अच्छा, ना भी हो तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे काम करने से कोई परेशानी नहीं है लेकिन अगर उसका कोई मोल नहीं तो क्या फायदा?” ये कह सिया रूम से वापस जाने लगी।
“कहाँ जा रही है बहु?” माँजी ने आवाज़ लगाई।
“आराम करने माँजी। क्यूंकि मैंने भी तो आपके बेटे की तरह वर्क फ्रॉम होम किया है और साथ में वर्क फॉर होम भी। जब खाना बन जाये तो बुला लेना माँजी”, मुस्कुराती हुई सिया निकल गई और सास देखती रह गई।
मूल चित्र : VikramRaghuvanshi from Getty Images via Canva Pro
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