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आज मुझ पर बारिश की वो बूंदें जो टिकी थीं, बालकनी की रेलिंग से ध्यान से निहारा तो, उसमें वो सब पिछला दृश्य आँखों के सामने नाचने लगा।
आज फिर झमझमा के बाहर बारिश आई! नीले गहराए बादल, अचानक गड़गड़ाहट करने लगे और बिजली भी जोर से चमकने लगी! मैंने अपने शौक के मुताबिक, गरमागरम चाय बनायी और बालकनी में बैठ कर चाय पीते हुए इन बारिश की बूंदों को निहारने लगी।
अचानक से इस बारिश का दीदार करते हुए, याद आ गई वो मुंबई की बारिश और बरसात की यादगार रात, हमेशा की तरह मन में यादों के दरवाजों को यूँ धकेलते हुए, जैसे फिर चाचा जी छतरी लेकर मेरे सामने खड़े हैं! पल भर में सब रुक सा गया, बारिश की वो मोतीरूपी बूंदें, चाय से उठती गरम भाप और पेड़ों की पत्तियाँ, सब की सब, बागवानी के साथ लगा, जैसे ज़िंदगी फ़िर उसी जगह पर जा कर रुक गयी हो!जहाँ मैं इंदौर से, मुंबई पहली बार ट्रेन से रेलवे की परीक्षा देने गई थी।
मुझ पर बारिश की वो बूंदें जो टिकी थीं, बालकनी की रेलिंग से ध्यान से निहारा तो, उसमें वो सब पिछला दृश्य आँखों के सामने नाचने लगा। परिवार वालों का यह कहना कि ऐसे तो तुम्हें अकेले जाना ही होगा और हर परेशानी का सामना भी हिम्मत के साथ करना ही होगा से लेकर, ट्रेन के पहिए तक सब! तभी पटरी से उतरने और ट्रेन से पहली बार मंजिल पर पहुंचने तक का सफ़र और वो चाचा जी! उनके तो क्या कहने?
ट्रेन रात को मूसलाधार बारिश के चलते, देर से दादर पहुंचने पर भी, स्टेशन पर मेरा इंतजार करते हुए, हाथ में छाता लिए, यूँ मुस्कुराते हुए स्वागत करना, और कहना बेटा! तुम कुशलपूर्वक आ गई और कहीं सुकून खोजते हुए, मेरे सिर पर हाथ रखकर कहना, अब खुली साँस ले ले बेटा। फिर जीप में बैठ कर, सीधे घर की ओर जहां चाची, इतनी रात को भी खाने इंतजार कर रही थीं। फिर अगले ही पल मैं निंदिया रानी के आगोश में कब चली गई, कुछ भी होश न रही!
अगले दिन ही परीक्षा हुई, तब भी पूर्ण व्यवस्था के साथ, मेरी फिकर करते हुए उन्हें देखा। एक तरफ बाहरी दुनिया में, मजबूती से भतीजी को खड़ा करने का सपना और वहीं दूसरी तरफ सुरक्षा की भी चिंता! मैं मन ही मन सोचकर भी क्या करूं? अगले ही पल, उनकी तैयारी हो गई मुझे ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ मंदिर घुमाने की! साथ ही पूरा परिवार, हंसी मौसम का लुत्फ उठाते हुए और सौभाग्य देखिए, उसी समय मेरी दूसरी चचेरी बहन भी साथ में हो ली।
फिर झमाझम मुंबई की बारिश में, मन ही मन भीगते हुए! यादों में समाएं, सपनों के पिटारे से, खुद को नींद से जागते हुए पाया तो, पति देव बेल बजा रहे हैं! फ़ोन उठाया और फिर हमेशा की तरह, इस हंसी मौसम में, चाय-पकौड़ी के साथ उनका स्वागत किया! पर मन भाव विभोर हो गया था, यादों के झरोखों में! क्यों कि चाचा जी तो विशाल आसमां के क्षितिज पर विराजमान हैं और एक पल भी सोचूं कि क्या ऐसी हस्ती से मेरी मुलाकात फिर होगी?
यूँ तो साथियों! हर मौसम आते-जाते ही रहती है, बरसात! पर जीवन में, हमें हर परिस्थिति में देना होगा, एक-दूजे का साथ!
इन्हीं लाईनों को गुनगुनाते हुए, मानों बरसात की वह एक रात, मुझसे कह रही हो, रख एतबार, बस थोड़ा सा इंतजार!
मूल चित्र : Pexels
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