कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

क्या अपने फर्ज़ भूल कर अपने माता पिता को उनका फ़र्ज़ याद दिलाना ठीक है?

आज कल सच्चाई यह है कि परिवार में रहने वाले लोगों की सोच बदल गयी है। पहले जैसे संयुक्त परिवार नहीं रहे हैं, जहाँ सब साथ मिलकर रहते थे।

आज कल सच्चाई यह है कि परिवार में रहने वाले लोगों की सोच बदल गयी है। पहले जैसे संयुक्त परिवार नहीं रहे हैं, जहाँ सब साथ मिलकर रहते थे।

“सुप्रिया आज नाश्ते में क्या बना रही हो? कितनी देर कर दी तुमने! 10 बज रहे हैं। कब मिलेगा कुछ खाने को?” महावीर जी ने अपनी पत्नी से कहा

“आप भूल सकते हो? मैं कैसे भूल सकती हूं! आज हमारे बेटे का जन्मदिन है। आज मैंने उसकी पसंद का नाश्ता बनाया है।”

सुप्रिया जी ने आज खीर और मालपुए बनाये हैं जो उनके बेटे को पसंद हैं।

सुप्रिया जी का एकलौता बेटा है रमन, अपनी माँ की आँखों का तारा और पिता महावीर जी के जिगर का टुकड़ा। रमन ने बचपन से जो चाहा वो सब उसे मिला है अच्छा घर, अच्छा खाना पीना, दोस्त, पार्टी, ऐशो आराम के सब सामान। सुप्रिया जी ने अपने प्यार में कोई कसर नही छोड़ी थी।

जब रमन ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया तब से लेकर पास आउट होने तक सभी खर्च पिताजी ने बहुत अच्छे से किये। यहाँ तक कभी कभी सुप्रिया जी भी रमन को छुप छुपाकर भी पैसे दे दिया करती थीं। आये दिन रमन दोस्तों के साथ पार्टी के लिए जाया करता तो सुप्रिया जी ही उसकी पैरवी करतीं कि अब हमारा बच्चा बड़ा हो गया है, उसका भी फ्रेंड सर्कल है। कॉलेज में उसकी दोस्ती मीनल से हो गयी। मीनल स्वभाव से सुलझी हुई थी, देखने में सुंदर सुप्रिया जी को भी पसंद थी।

आज रमन की नौकरी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में नौकरी लग गयी है, अच्छा खासा पैसा दे रही है कंपनी। रमन नाखुश था कि उसे दूसरी जगह जाना होगा। क्योंकि वो अपनी माँ को छोड़कर नहीं जाना चाहता था लेकिन महावीर जी के समझाने पर वो मान गया और रमन विदेश चला गया। कुछ महीनों के बाद रमन ने मीनल के बारे में अपनी मनस्थिति अपनी माँ को बता दी फिर तो सुप्रिया जी ने मीनल को अपनी बहू रूप में स्वीकार कर लिया और रिश्ता लेकर पहुंच गए मीनल के घर। मीनल के परिवार वाले भी ख़ुशी ख़ुशी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए और दोनों की शादी हो गई।

शादी के कुछ दिनों के बाद ही दोनों अपनी अपनी नौकरी में व्यस्त हो गए। रमन चला गया और मीनल अपने मायके में रहकर जॉब करती रही, लेकिन 6 महीने में ही दोनों रमन और मीनल को लगने लगा कि अगर परिवार बसाना है तो साथ रहना होगा।

इस कारण मीनल ने अपनी जॉब छोड़कर अपने पति के पास विदेश चली गयी अब दोनों काफी खुश थे। सुप्रिया जी को लगता था कि उनका बेटा कभी न कभी वापिस आ जायेगा लेकिन रमन अपनी घर ग्रहस्थी में रम गया। वहाँ जाकर मीनल भी वापिस आने को तैयार नहीं थी।

इसी बीच उनके बेटा हुआ तो रमन में अपनी माँ को बुला लिया। अपने बेटे की देखभाल करने के लिए और सुप्रिया जी भी खुशी खुशी अपने पोते की देखभाल के लिए बेटे बहु के पास रहने लगी।  उनका सभी काम करती, अपने पोते के साथ समय बीतता गया और जब उनका पोता 6 महीने का हुआ तो एक दिन रमन ने कहा, “मम्मी आपको अब वापिस जाना होगा वहाँ गावँ में पापा भी अकेले हैं। अब मीनल बच्चे को संभाल लेगी। आपका टिकट करवा दिया है, आप चले जाओ।”

सुप्रिया जी निराश हो गयीं और अपने बेटे को कोई जवाब दिए बिना वापिस जाने की तैयारियां करने लगी। तभी अपने कमरे में बैठी सुप्रिया जी को मीनल की आवाज़ धीरे धीरे सुनाई देने लगी, “सही किया आपने, जो मम्मी जी को जाने को कह दिया अब हम कब तक उनका करते रहेंगे? हमारा भी परिवार है, बच्चा है, विदेश में रहना आसान नहीं है।”

रमन भी मीनल की बातों में अपनी हांमी देने लगा, “हां पता है मुझे डिअर, कितनी प्रॉब्लम आ रही थीं मम्मी के साथ रहने में। हर बात में कहाँ जा रहे हो, क्या कर रहे हो, कितने सवाल करती है। अब चली जायेंगी। तुम टेंशन मत लो, छोटू का ध्यान रखो। मैं देखता हूं।” इतना कहकर रमन वहां से चला गया

सुप्रिया जी वापिस आ गयी। आने के बाद उनके उदास चेहरे को देखकर महावीर जी ने पूछा, “क्या हो गया है तुम्हें? तुम न बोलती हो, न किसी काम में तुम्हारा मन लगता है। क्या हुआ है तुम्हें?” सुप्रिया जी ने कुछ नहीं कहा।

ऐसे कई महीने बीतते गए और एक दिन रमन का फ़ोन आया कि हम लोग आ रहे हैं आपसे मिलने। अब सुप्रिया जी की खुशी का कोई ठिकाना न था। वो तो अपने बेटे की आवभगत में जुट गई कभी रसोई में तो कभी घर की साज सफ़ाई में।

फिर वो दिन भी आ गया आज रमन अपनी फैमिली के साथ आने वाला है। आज सुप्रिया जी ने अपने बेटे के लिए खीर और मालपुए बनाये हैं क्यूँकि आज रमन का जन्मदिन भी है। थोड़ी देर बाद सब आ गए। सभी एक दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे, सबने साथ खाना खाया और वहीं बैठ कर बात करने लगे।

तभी रमन बोला, “पापा अब आप दोनों हमारे साथ चलो। इस घर जमीन को बेच दो। जो पैसा मिले उसे आप अब मेरे नाम कर दो। आपकी बची हुई जिंदगी अब आप मेरे साथ बिताना।”

अपने बेटे की बात को सुनकर महावीर जी तुनक कर पड़े और बोले, “बेटा यह जमीन और घर मेरी खरी कमाई है, मैंने एक एक पैसा जोड़कर बनाया है। अब तुम कहते हो कि ये सब मैं तुम्हे दे दूं?

नहीं बेटा ऐसा नहीं होगा। हम दोनों हमेशा के लिए यहीं रहेंगे और ये घर ज़मीन तुम्हें मिलेगी, लेकिन हमारी मौत के बाद। एक बात और सुनो बेटा, तुम्हारी माँ ने मुझे कुछ नहीं बताया लेकिन मुझे पता चल गया है कि तुम अब बदल गए हो, तुम्हारा व्यवहार बदल गया है।

मेरा बेटा, अब मेरा नहीं रहा, वो पराया हो गया है। तुमने अपनी माँ के साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। जब तक तुम्हें जरूरत थी, तुमने उससे काम करवाया और जब काम खत्म तो वापस भेज दिया? मुझे अपनी पत्नी की आँखों में सब दिखाई देता है। जो वो कहे या फिर न कहे।

हमें तुम्हारे रहमो कर्म की कोई आवश्यकता नहीं है। जो बेटा कभी अपनी माँ से अलग नहीं रहा था। आज वो ही बेटा उन्हें उनके घर से निकालने के लिए आया है? तुम चले जाओ वापस विदेश अपने परिवार के साथ”, महावीर जी ने गुस्से में कहा।

रमन को अपनी गलती का अहसास हो गया था लेकिन अब उसके माता पिता को उसपर विश्वास नहीं था।

दोस्तों आज कल सच्चाई यह है कि परिवार में रहने वाले लोगों की सोच बदल गयी है। पहले जैसे संयुक्त परिवार नहीं रहे हैं, जहाँ सब साथ मिलकर रहते थे। जिम्मेदारी सबकी होती थी, लेकिन अब सब अलग रहना पसंद करते हैं, सिर्फ अपने छोटे से परिवार के साथ…

आप सब की क्या प्रतिक्रिया है इस मुद्दे पर? अपने विचारों को भी कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताएं।  और ब्लॉग पसंद आये तो लाइक, कमेंट, शेयर जरूर करें।

मूल चित्र : greenaperture from Getty Images Signature via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

90 Posts | 614,001 Views
All Categories