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घर में विवाह या उसके विषय में किसी प्रकार का उल्लेख भी नहीं किया जाता। हमेशा ऊँची उड़ान भरने और जीवन में कुछ बनने का ख़्वाब देखती दोनों बेटियां।
सुरेश जी का सीना आज गर्व से चौड़ा हो गया। नये घर में प्रवेश करते हुए बीता जीवन चलचित्र की तरह आँखों के सामने चलने लगा। सुरेश जी सरकारी नौकरी में कार्यरत थे। नौकरी सरकारी मगर आमदनी सीमित थी। उस पर परिवार की ज़िम्मेदारियाँ। कम खर्च में घर चलाते मगर बच्चों को कभी किसी कमी या गरीबी का अहसास नहीं होने दिया। ईमानदारी और मेहनत से कमाया धन सबसे बड़ी पूँजी है और जो है उसमें सर उठाकर गर्व से गृहस्थी चलना सुरेश जी व उनकी पत्नी भली-भाँति जानते थे।
समाज और रिश्तेदारी में इन्हीं कारणों से उनका बहुत सम्मान था। बच्चे भी बिलकुल माता-पिता के पूरक थे। बड़ी बिटिया मनु पढ़ाई में अव्वल और पूरे विद्यालय में अपनी बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाती थी। पढ़ाई के साथ संगीत और कला में बखूबी थी। छोटी बेटी अंजू भी खेल-कूद में अग्रणी और प्रतिभा से धनवान थी। आये दिन उसे वाद विवाद, लेखन आदि में पुरस्कार मिलते।
दोनों बेटियों को सुरेश जी ने पूरा आत्मविश्वास दिया था कि वे किसी से कम नहीं, घर में साधन भले ही कम हों। धनाढ्य घरों से आयी लड़कियाँ व उनके माता-पिता मनु और अंजू का उदाहरण दिया करते। सुरेश जी के ऑफिस में सहयोगी और उच्चाधिकारी भी उन्हें बहुत मानते थे। बेटियों को कभी उन्होंने कन्या होने के कारण किसी प्रकार के प्रतिबंधों में नहीं बाँधा बस समझदारी से हर निर्णय लेना सिखाया।
घर में विवाह या उसके विषय में किसी प्रकार का उल्लेख भी नहीं किया जाता। हमेशा ऊँची उड़ान भरने और जीवन में कुछ बनने का ख़्वाब देखती दोनों बेटियां। कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों को ये बात नहीं भाती थी। अक्सर कहते, “सुरेश जी बेटियां हैं, दूसरे घर तो जाएंगी ही। और फिर आपके पास कोई बड़ी सम्पति तो है नहीं। इनकी शादी के बारे में सोचिये, घर भी तो नहीं बनाया अब तक आपने। कैसे होगा ये सब।” मगर सुरेश जी ऐसे वार्तालाप से बचते और अपने काम में रमे रहते।
बेटियां माता पिता के प्रोत्साहन और सहयोग से निरंतर बिना किसी विकर्षण अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती गयी। उनका एकाग्र परिश्रम और परिवार का संघर्ष रंग लाया।
मनु आज प्रशासनिक सेवा में अधिकारी है। अच्छे घर से उसके लिए रिश्ता आया और विवाह सम्पन्न हो गया। अंजू सरकारी बैंक की परीक्षा में चयनित हो गयी है। सुरेश जी के रिटायरमेंट पर दोनों बहनों ने एक घर ख़रीदा और माता-पिता को तोहफ़े में दिया।
एक आदर्श के रूप में जाना जाता है सुरेश जी का परिवार। बेटियों की पढ़ाई ही नहीं बल्कि उनमें पूर्ण आत्मविश्वास और स्वावलम्बन को जागृत अपने घर से ही किया जाता है ताकि वे आगे बढ़कर न सिर्फ अच्छी बेटी, बहू और पत्नी बनें बल्कि एक संपूर्ण स्वावलम्बी व्यक्तित्व बन समाज और परिवार में योगदान दें। सुरेश जी आज गर्व से सबसे कहते हैं मेरी बेटियों के गुण है मेरे जीवन भर की कमाई।
मूल चित्र : Canva Pro
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