कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीन महिला सेक्स वर्कर्स को रिहा करते हुए कहा कि भारतीय सविंधान के तहत अगर कोई महिला स्वेच्छा से सेक्स वर्क करना चाहे तो उसे आज़ादी है।
हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई में स्टेट करेक्टिव इंस्टिटूशन से ज़बरदस्ती हिरासत में ली गई तीन महिला सेक्स वर्कर्स को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। इन महिलाओं को बिना आपसी सहमति के 1 साल से शेल्टर होम में रखा जा रहा था ताकि उन्हें कॉउंसल किया जा सके और ‘सेक्स वर्क छोड़कर’ किसी ‘गरिमापूर्ण तरिके से’ अपना जीवन चलायें। इस दौरान इन महिलाओं को अपने घर उत्तर प्रदेश भी नहीं जाने दिया जा रहा था। लगभग एक वर्ष तक वहां रहने के बाद, महिलाओं ने बॉम्बे HC से संपर्क किया जिसमें रिहा करने की मांग की गई।
इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस पृथ्वीराज के. चवन ने इन महिला सेक्स वर्कर्स को रिहा करने के आदेश देते हुए कहा कि अडल्ट महिलाओं को अपना प्रोफ़ेशन चुनने का अधिकार है चाहे वो सेक्स वर्क ही क्यों ना हो।
हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इममॉरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट, 1956 के तहत प्रोस्टीटूशन कोई क्रिमिनल ऑफेंस (अपराध ) नहीं है। अगर कोई स्वेच्छा से करना चाहे तो उसे अधिकार है और इसके लिए कोई सजा नहीं है। बल्कि इस अधिनियम के तहत दंडनीय है, अगर किसी का व्यवसाय के लिए यौन शोषण या दुर्व्यवहार किया जाता है या फिर ज़बरदस्ती कमाने के लिए एक व्यक्ति को सार्वजनिक स्थान पर सेक्स वर्क के लिए ले जाया जाता है या किसी अन्य व्यक्ति को याचना या छेड़खानी करते पाया जाता है।
इसके अलावा, हाई कोर्ट ने महिलाओं को उनकी मां को नहीं सौंपने के लिए महानगरीय मजिस्ट्रेट की आलोचना की। दरअसल मजिस्ट्रेट ने उन तीनों महिलाओं को उनकी सहमति के खिलाफ करेक्टिव शेल्टर में रहने के आदेश दिए थे क्योंकि वो महिलाऐं एक ऐसी समुदाय से हैं जहां सेक्स वर्क के लिए महिलाओं को भेजा जाता है। अडल्ट महिलाओं को स्वतंत्र रूप से अपना पेशा चुनने का अधिकार है और भारत के सविंधान के तहत ये मौलिक अधिकार हैं, यह कहते हुए जस्टिस ने मजिस्ट्रेट और सत्र अदालत द्वारा जारी आदेशों को रद्द कर दिया और तीनों महिलाओं को रिहा करने का आदेश दिया।
इममॉरल ट्रैफिक (प्रिवेंशन) एक्ट, 1956 के तहत यह साफ़ है कि अगर कोई महिला स्वेच्छा से सेक्स वर्क करना चाहे तो उसे आज़ादी है। इसके लिए कोई सजा नहीं क्योंकि ये अपराध नहीं है। लेकिन अगर किसी महिला से जबरदस्ती सेक्स वर्क करवाया जाता है तो वो अपराध है। तो इस केस से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि आज भी भारत में अवेयरनेस की कमी है और जो लोग अवेयर भी हैं आज तक वो इसे एक्सेप्ट नहीं कर रह रहे हैं और न जाने ऐसी कितनी महिलाओ को बंदी बनाया जाता है।सच में! जहां काम करने की ज़रूरत है, जिन्हें बंदी बनाये जाने की ज़रूरत है उन्हें छोड़कर बेगुनाहों के साथ अत्याचार किया जा रहा है। अगर ऑफिसर्स इस तरह का ज़बरदस्ती काम करवाने वाले दलालों को बंदी बनाये तो बेहतर होगा।
मूल चित्र : Still from movie Lakshmi (2014)
A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...
Please enter your email address