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कदम से कदम मिलाकर जब चलती हूँ पुरूष के, तब भी मर्यादा का मान बनाये रखती हूँ। नारी को कमजोर समझने की सोच को बदल कर उसकी शक्ति को पहचान दिला सकूँ।
साड़ी का पल्ला नहीं रखती सिर पर तो क्या,
रिश्तों को मान आज भी देती हूँ।
कदम से कदम मिलाकर जब चलती हूँ पुरूष के,
तब भी मर्यादा का मान बनाये रखती हूँ।
किसी को नीचा दिखाकर आगे बढ़ने की चाह नहीं है,
बस अपने लिए सम्मान का हक चाहती हूँ।
सफलता की सीढ़ियों पर अपनों का साथ,
रहे उस अधिकार को पाना है।
नारी को कमजोर समझने की सोच को
बदल कर उसकी शक्ति को पहचान दिला सकूँ।
बस इतनी सी ख़्वाहिश है…
मूल चित्र : Pexels
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