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चेतना सिन्हा : माण देशी फाउंडेशन की फाउंडर, बना रही हैं ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर

चेतना सिन्हा, माण देशी फाउंडेशन की फाउंडर, ने अपने छोटे छोटे प्रयासों से आज म्हसवड गांव की महिलाओं को आत्म निर्भर बना दिया है। उनसे एक मुलाकात...

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चेतना सिन्हा, माण देशी फाउंडेशन की फाउंडर, ने अपने छोटे छोटे प्रयासों से आज म्हसवड गांव की महिलाओं को आत्म निर्भर बना दिया है। उनसे एक मुलाकात…

चार दशकों से चेतना सिन्हा मुंबई छोड़कर पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले के म्हसवड गांव में महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए काम रहीं हैं। 1997 में चेतना सिन्हा ने वहां की स्थानीय महिलाओं के साथ मिलकर महिलाओं के स्वामित्व वाली भारत की पहली ग्रामीण सहकारी बैंक – माण देशी महिला सहकारी बैंक की स्थापना की। और इस असाधारण की जर्नी में इन्होने अपनी फ़ाउंडेशन मान देशी से एक के बाद एक कई इनिशिएटिव लिए और कई महिलाओं के छोटे छोटे बिज़नेस को पंख दिए।

माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा हमेशा कहती हैं कि नेवर प्रोवाइड पुअर सलूशन तो पुअर पीपल ( गरीब लोगों को कभी भी कमजोर समाधान न दें। ) मतलब वो गरीब जरूर है लेकिन सब कुछ इस्तेमाल कर सकते हैं। चेतना सिन्हा 2018 में वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की बैठक के लिए इंडिया की तरफ से चुनी गयी थी और इन्होंने वहां गरीब महिलाओं के बिज़नेस के लिए आवाज उठायी। माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा को नारी शक्ति पुरुस्कार से भी नवाज़ा जा चुका है।

माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई इनिशिएटिव लिए हैं:

इन्होंने गाँव की महिलाओं के लिए बिज़नेस स्कूल शुरू किया और उसमे महिलाओं को ट्रेनिंग दी गयी। जिसके लिए म्हसवड की महिलाओं का कहना है कि बिज़नेस स्कूल से हमें हिम्मत और हुनर मिलता है। और इससे कई महिलाएं आज छोटे छोटे बिज़नेस कर रही हैं और कईयों के लिए प्रेरणा बन रही हैं और उन्हीं प्रेरणास्पद कहानियों को सबके पास पहुंचाने के लिए चेतना सिन्हा ने देश का पहला ऐसा कम्युनिटी रेडियो भी शुरू किया जिसका पूर्ण रूप से महिलाएं संचालन कर रही हैं। 

इसके अलावा चेतना सिन्हा ने म्हसवड जैसे सूखे इलाके में पानी की समस्या से लड़ने के लिए वाटर बैंक की शुरुवात करी और जिससे महिलाओं को पानी लेने अब दूर तक नहीं जाना पड़ता है। म्हसवड में बकरी पालन का बहुत बड़ा व्यवसाय है तो उसी के लिए चेतना सिन्हा ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से जुड़कर गांव की ही महिलाओं को ट्रेनिंग दिलवाई और अब वे गांव गांव जाकर वर्कशॉप्स लेती हैं जिससे और बेहतर तरिके से बकरी पालन कर सके। 

और चेतना सिन्हा की उब्लब्धियों का सिलसिला अभी जारी है। आगे इनके बारे में और जानने के लिए हमने खुद इन्हीं से जाना।

माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा द्वारा विमेंस वेब को दिए साक्षात्कार के कुछ अंश :

ग्रामीण महिलाओं को आपने बैंक से जोड़ा, लेकिन आप मुंबई से पली बढ़ी हैं, तो चेतना सिन्हा का गांव के प्रति कैसे रुझान हुआ? 

मैं मुंबई में ही पली बढ़ी हूँ और शिक्षा भी पूरी मुंबई में हुई। मैं अपने कॉलेज के समय में जय प्रकाश जी के आंदोलन से जुडी जिसमे हम गाँवों में जाकर वहां के लोगो के लिए काम किया करते थे। तो इसी के ज़रिये म्हसवड में आयी। और मुझे इस तरह के काम में बहुत दिलचस्पी हुई और मैं ज्यादा से ज़्यादा यहां की महिलाओं की मदद करना चाहती थी। उसके बाद मुझे विजय सिन्हा जो म्हसवड के ही हैं और यहां के लोगो के लिए काम करते हैं, उनसे प्यार हुआ और हमारी शादी हुई। और फिर मैं मुंबई छोड़कर म्हसवड में ही रहने आ गयी और अब मुझे यहां रहते हुए लगभग 40 साल हो चुके हैं।  

बैंक की जरूरत माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा को कैसे महसूस हुई? 

मुंबई से म्हसवड शिफ़्ट होने के बाद मैं यहां महिलाओं में काम करने लगी। उस दौरान कांता बाई से मेरी मुलाकात हुई। वो अपना बिज़नेस रास्ते पर करती हैं। उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे बचत करनी है ताकि मैं अपने घर के लिए गर्मी में कागज़ खरीद सकूं और तपन से बच सकूं। तो मैं कांता बाई का खाता खुलवाने उनके साथ बैंक गयी। और बैंक ने उनका खाता खोलने से मना कर दिया। बैंक ने कहा, कांता बाई रोज़ के 10 रूपये की बचत करना चाहती हैं जो की बहुत छोटा अमाउंट है। मुझे लगा ये सरकार से कोई कर्ज़ तो मांग नहीं रहीं हैं। ये बस अपनी बचत करना चाहती हैं ताकि अपनी ज़िंदगी जी सकें। तो फिर मुझे लगा की क्यों न कांता बाई जैसी महिलाओं के लिए बैंक शुरू किया जाएं। 

उसके बाद आर बी आई ने पहली बार में हमारी एप्लीकेशन रिजेक्ट कर दी और कहा कि ये सभी महिलाएं अशिक्षित हैं। उसके बाद गांव की महिलाओं ने पढ़ना शुरू किया और हम कुछ समय बाद वापस से आर. बी. आई. में गए और जिस आत्म विश्वास के साथ म्हसवड की महिलाओं ने बैंक के सवालों के जवाब दिए, उससे हमें लाइसेंस मिल गया और इस प्रकार से शुरू हुआ माण देशी महिला सहकारी बैंक। 

आपका बैंक शुरू हो गया, उसके बाद भी कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा, तो वो अनुभव कैसा रहा?

बैंक तो महिलाओ ने पूरे जोश और उत्साह के साथ शुरू किया लेकिन ज़्यादातर महिलाएं बैंक में आ नहीं पा रहीं थी। क्यूंकि वो महिलाएं दिन भर मजदूरी करती थी। फिर उसके बाद हमने इन महिलाओं के कॉइन कलेक्ट करने के लिए करीब 5000 छोटे छोटे बॉक्स लेकर आये जिससे ये ये अपने पैसे उसमे ड़ाल सके और फिर जब वो भर जाये तो उसे हम बैंक अकाउंट में डाल देते थे। लेकिन 8 दिन बाद एक महिला मेरे पास टूटे हुए बॉक्स के साथ आयी और कहा आपके एजेंट मेरे पास आएंगे उससे पहले मेरे पति ने इसमें से पैसे निकल लिए।

तो तब मुझे ये सीख मिली की बात पैसों की नहीं कंट्रोल की है। हमें ऐसे प्रोडक्ट डिज़ाइन करनें होंगे जिनसे महिलाओं का अपने पैसों पर कंट्रोल हो। मान देशी बैंक की शुरुवात ही हमने इसलिए करी थी ताकि महिलाओं का पैसो पर कंट्रोल रहे और वो आत्म निर्भर बन सके। तो ऐसे ही हमने इन छोटी छोटी सीख से चुनौतियों का सामना करा और नए इनिशिएटिव लेकर आये।

म्हसवड से कई लड़कियाँ आज खेल के क्षेत्र में नाम रोशन कर रही हैं, तो इस सफलता के पीछे किस तरह की चुनौतियाँ आयी?

म्हसवड में लड़कियों को हमने हाई स्कूल भेजने के लिए साइकिल दी थी। उनमे से कई लड़कियाँ 6 महीने बकरियों के साथ काम करती थी और 6 महीने स्कूल जाती थी। तो हमने उसी समय स्कूल में स्पोर्ट्स क्लब खोला और उसके बाद कई लड़कियाँ उसमे हिस्सा लेने लगी। आज भारत ही नहीं विदेश में ये लड़कियाँ खेल रही हैं। लेकिन पहले इन लड़कियों के पेरेंट्स का अक्सर ये रहता है की जल्द से जल्द शादी करा दी जाती थी और ये आगे खेल नहीं पाती थी।

फिर हमने इसके लिए उन लड़कियों को हर तरह के इवेंट्स में भेजना शुरू किया और वो वहां से जीतकर आती हैं और मैडल के साथ पैसा भी लाती हैं, तो इससे घरवालों को संतुष्टि रहती है की घर में पैसा तो आ ही रहा है और इस  तरह से अब कई लड़कियाँ एथलीट बन गयी हैं। अब लड़कियों में बहुत कॉन्फिडेंस आ गया है तो वो भी अपने माता पिता को समझा पाती हैं।

गांव में महिलाओं के साथ होते आ रहे भेद भाव जैसी चुनौतियों का सामना माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा ने कैसे करा?   

जब मैं पहली बार म्हसवड गयी थी, तब मेरे पति के घर में भी टॉयलेट नहीं था। तो उसके लिए हम सब महिलाओं ने मिलकर उसके खिलाफ आवाज़ उठायी। मुझे याद है, 1987 की ये बात है जब हम सब महिलाएं मंदिर के बाहर खड़े हो गये और वहां अक्सर लोग अपनी नई गाड़ियों की पूजा करवाने आते थे तो हम उन्हें कहते की क्या आप के घर में टॉयलेट है क्या।  तो लोग गुस्सा होते और कहते की मंदिर में ऐसी बातें कर रहे हैं। तो फिर हम महिलाएं उन्हें फूल देकर कहते थे की पहले अपने घर में टॉयलेट बनाइये। फिर यहां टॉयलेट बनाना शुरू किया।

और फिर इसी तरह से मैंने हर मुद्दों पर काम किया और मेरा ये मानना है पहले पानी, टॉयलेट जैसे छोटे छोटे मुद्दों से लड़ेंगे तभी महिलाएं सही मायने में सशक्त हो पाएंगी। तब से महिलाओं के लिए कई तरह के इनिशिएटिव लिए हैं। और मुझे सबसे बड़ा फर्क दिखता है, वो है कि अब लड़कियों की शादी छोटी उम्र में नहीं कराई जाती है और अब वो ज्यादा आत्म निर्भर बन गयी हैं।

चेतना सिन्हा यंग एंटरप्रेन्योर्स के लिए क्या टिप्स देना चाहेंगी?

मैं सभी को ये कहना चाहूँगी की आप वो काम कीजिये जो आपको मन से बहुत से अच्छा लगे यानि कोई काम इसलिए मत कीजिये की मुझे लोग पूछेंगे तो मैं कहूंगी की कंप्यूटर इंजीनियर हूँ तो उन्हें अच्छा लगेगा। शुरू में जब मैंने ये काम किया तो मैं कहती महिलाओ के लिए टॉयलेट खड़े करने चाहिए लेकिन मेरी बहने तो डॉक्टर थी।

मैं शुरू से ही महिलाओं के अधिकार के लिए काम करना चाहती थी। और दूसरी बात आप रिस्क लीजिये। मैंने भी बैंक शुरू किया तब ये रिस्क ही था। लेकिन जब रिस्क लेते हो तो मेहनत भी खूब करों। आपके पास पूरी जानकारी होनी चाहिए और हर चीज़ में दो कदम आगे बढ़कर जाना ताकि लोग ये ना कहे की आपको तो आता ही नहीं है। ज्ञान पाना, रिस्क लेना और फिर पूरी मेहनत ही मंत्र है सक्सेस के। इस फॉर्मूले को अपना लिया तो 10 साल में तो कामयाबी आपके पास खुद चलकर आएगी।

चेतना सिन्हा हमारी महिलाओं को क्या मैसेज देना चाहेंगी?   

मैं सभी महिलाओं से यही कहना चाहती हूँ कि बुरे दिन सबके आते हैं लेकिन धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए और हमेशा हिम्मत रहनी चाहिए। आप हर परिस्थिति का सामना करने के लिए हिम्मत रखे। और इन सबसे बड़ी बात है, आपके नियंत्रण में पैसे होने चाहिए। अक्सर महिलाएं कष्ट लेकर पैसे तो कमा लेती हैं लेकिन उसपर अपना नियंत्रण भी रखिये, तभी आप परिवार को आगे ले जा सकती हैं और आपको आत्म विश्वास भी तभी मिलेगा।

माण देशी फाउंडेशन की महिलाएं कहती हैं कि करेज इस कैपिटल यानि की हमारा साहस हमारी पूंजी है। अगर इस तरह का बैंक मॉडल हमारे लिए काम कर सकता है तो वो सबके लिए कर सकता है। इस मॉडल को पूरे देश ही नहीं विदेश में भी इस्तेमाल करा जाना चाहिए। सभी महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने से ही सही मायने में सशक्तिकरण आएगा।

वाकई! जहां एक और हम समाज से लड़कर महिलाओं की सशक्तिकरण की बातों तक ही सिमित रह जाते हैं वही दूसरी और माण देशी फाउंडेशन की चेतना सिन्हा जैसी महिला लाखो महिलाओं को आज सही मायने में सशक्त कर रही है। सामाजिक बुराइयों से लड़कर और आगे बढ़कर हम महिलाओं को अब आर्धिक रूप से भी सशक्त बनाना होगा। चेतना सिन्हा इस बात का एक उदाहरण है की जरूरी नहीं है हमेशा बड़ी बड़ी लड़ाइयों से ही बुराइयों से जीत सकते हैं। बल्कि कई बार इस तरह के छोटे छोटे कदमों से एक नई मंज़िल पायी जा सकती है।
चेतना सिन्हा का इस इंस्पायरिंग इंटरव्यू के लिए शुक्रिया।

मूल चित्र : Chetna Sinha’s Album

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Shagun Mangal

A strong feminist who believes in the art of weaving words. When she finds the time, she argues with patriarchal people. Her day completes with her me-time journaling and is incomplete without writing 1000 read more...

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