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उसकी डायरी में लिखा था, ‘दो भागों में बँटी हूँ मैं, नर की अर्धांगनी हूँ मैं’…

नित्या को लिखने का बहुत शौक था लेकिन उसका शौक उसकी डायरी तक ही था। अपनी हर बात चाहें सुख की हो या दुख की वह उसमें लिखती थी।

नित्या को लिखने का बहुत शौक था लेकिन उसका शौक उसकी डायरी तक ही था। अपनी हर बात चाहें सुख की हो या दुख की वह उसमें लिखती थी।

उमंग, नित्या व उनका 5 साल का बेटा रुद्र, बस इतनी सी ही थी नित्या ज़िंदगी…

नित्या को लिखने का बहुत शौक था लेकिन उसका शौक उसकी डायरी तक ही था। अपनी हर बात चाहें सुख की हो या दुख की वह उसमे लिखती थी। नित्या के लिए वो डायरी नही बल्कि उसकी सबसे अच्छी सखि थी।

आज की शाम नित्या के लिए सुकून लेके आयी थीं क्योंकि रुद्र सोसाइटी में अपने दोस्त के घर बर्थडे पार्टी से आके जल्दी सो गया था और नित्या के पति उमंग को भी देर से आना था, वो भी खाना खाके आने वाले थे।

नित्या रिलैक्सड थी क्योंकि शाम के खाने की छुट्टी थी। अपने लिए सुबह की गोभी आलू की सब्जी बची थी बस रोटी सेकनी थीं।

नित्या ने एक कप कॉफी बनाई और अपने सखि डायरी में लिखने लगीं।लिखने में इतनी खो गयी थी कि उमंग के आने का भी पता नही चला नित्या को।

तभी उसको अपने फ़ोन की रिंगटोन सुनाई पड़ी। फ़ोन उसका दूसरे कमरे में था। फोन लेने गई ही थी कि तपाक से उमंग ने नित्या की डायरी ले ली। नित्या कि डायरी के ऊपर कुछ लिखा था जिसको उमंग में ज़ोर से पढ़ा ताकि नित्या के कानों तक पड़े…

“दो भागों में बँटी हूँ मैं
नर की अर्धांगनी हूँ मैं”

नित्या ने जब सुना वो दौड़के आयी। “उमंग कितनी बार कहा हैं मेरी डायरी को हाथ मत लगाया करो”, नित्या ने उमंग से डायरी छीनते हुए कहा।

“आज हाथ लगी हैं मेरी सौतन इतने आसानी से नही जाने दूँगा”, उमंग ने अपनी लंबाई का पूरा फायदा उठाते हुए नित्या के पहुंच से और ऊपर कर लिया।

नित्या ने उछलकर एक दो बार डायरी पकड़े की कोशिश की पर नाकाम हो गयी। फिर थक के कुर्सी पे बैठते हुए बोली, “हाँ हाँ पता है, नाटी हूँ मैं, इसलिए मेरा मज़ाक बना रहे हो।”

“ओहो! इमोशनल ब्लैकमेलिंग करने की ज़रूरत नहीं है। तुम्हारी बातों में नहीं आने वाला”, उमंग ने नित्या को अपने बाहों में लेते हुए कहा।

“वो तो तुम आ गए”, ये कहते ही नित्या ने एक झटके से डायरी उमंग की हाथ से छीन ली। फिर नित्या अपने को उमंग के बाहों से छुड़ाने लगी।

“पहले मेरे दो प्रश्न का उत्तर दो तभी छोडूंगा”, उमंग ने कहा। 

नित्या ने कहा, “अच्छा पूछो।”

“आखिर ऐसा क्या लिखती रहती हूँ इस डायरी में? इसमें ज़रूर मेरी बुराई ही लिखती होगी”, उमंग ने कहा।

“तुम्हारी बुराई…जैसा कि?” नित्या ने शरारती अंदाज में पूछा।

“उमंग ने आज फिर डाँटा, उमंग के पास समय नही हैं मेरे लिए! ये सब ही लिखती हो न?” उमंग ने नित्या को अपनी बाहों से आज़ाद करते बच्चों की तरह मुँह फुलाते हुए कहा।

उमंग की बात व चहरे का भाव देख नित्या कब चहरे पे अनायास ही हँसी आ गयी। नित्या हंसते हुये बोली, “तुम्हारी बुराई के अलावा भी बहुत सी बातें होती हैं मेरे प्यारे पति जी। वैसे भी तुम्हारी बुराई मैं इस बेजान डायरी से क्यों करूँ? ये तो बस सुनती है, निंदा करने में तब आनंद आता हैं जब दूसरा भी निंदा करें।”

“ये सब बातें होती रहेंगी। ये बताओ तुम कुछ खाके आये हो या नहीं? मैंने तो कुछ नहीं बनाया है।” नित्या ने उमंग का लैपटॉप का बैग सही जगह पे रखते हुए कहा।

उमंग ने कहा, “नित्या इसका क्या मतलब है?”

“दो भागों में बँटी हूँ मैं
नर की अर्धांगनी हूँ मैं”

नित्या ने कहा, “तुम सोचो, तब तक मैं खाने का देखती हूँ,और हां नहा लेना पसीने की बदबू आ रही है।”

इतना कहके नित्या रसोई में चली गयी। नित्या ने फटाफट गोभी की सब्जी के भरके परांठे बनाये और साथ मे बूंदी का रायता।

“खाना लग गया है”, नित्या ने उमंग को आवाज़ दी।

उमंग भी डाइनिंग टेबल पे बैठते ही पूछा, “बताओ न नित्या क्या मतलब हैं उन दो लाइन का?”

नित्या ने मुस्कुरा के कहा, “कहने को ये सिर्फ दो लाइन हैं पर वास्तव में एक स्त्री की पूरी ज़िन्दगी है।”

“मतलब?” उमंग ने रायता परोसते हुए बोला।

“हर स्त्री का शादी के बाद उसका अस्तित्व मिसेज़ उमंग और बच्चे हो जाये तो रुद्र की मम्मी के दरमियाँ ही तो रहता है। अपनी सोसायटी को ही ले लो यहां पे कितने लोगों को पता है मेरा नाम? मिसेज़ उमंग हूँ या रुद्र की मम्मी इसी नाम से तो पुकारते हैं।” नित्या ने पराठे उमंग की प्लेट में रखते हुए कहा।

“तो इसमें ग़लत क्या है? ये भी तो तुम्हारी पहचान है”, उमंग ने बड़े सामान्य ढंग से परांठे का कौड़ मुँह में डालते हुए कहा।

“बिल्कुल सही कहा उमंग तुमने, ये भी मेरी पहचान है, ये भी न कि ये ही”, नित्या ने अपनी बात पर ज़ोर देते कहा।

“एक दिन तुमने ही मुझे बताया था कि जब तुमको पता चला कि तुम्हारी बहन जिया की रूचि फ़ैशन डिज़ाइनर कोर्स करने की है तो तुमने पापा जी से लड़ के उसका एडमिशन करवाया था।”

“उमंग मुझे ग़लत मत समझना, लेकिन क्या शादी के बाद तुमने मुझसे पूछा कि तुम्हारे क्या सपने हैं?”

उमंग ने कहा, “मैंने तो तुमको नहीं कहा कि जॉब मत करो, तुमसे बोला था कि अगर रुद्र की परवरिश पे फ़र्क न पड़े, तो तुम करो लो।”

नित्या के होठों पे तीख़ी मुस्कान आ गयी फ़िर बोली, “वाह उमंग बाबू! चिट भी मेरी और पट भी मेरी।”

“एक बात बताओ, क्या अच्छी परवरिश का जिम्मा एक माँ के हिस्से में है? पापा की जिम्मेदारी कुछ नहीं। बेटा ने अच्छा किया तो बेटा किस का है? अगर कुछ ग़लत किया तो तुम थोड़ा ध्यान दिया करो इसपे?”

फिर नित्या ने थोड़ा पानी पी के कहा, “सबसे अहम बात ये है कि जॉब करना ही आपका सपना हो ये ज़रूरी तो नहीं। सपना तो कुछ भी हो सकता है, कोई न कोई सपना तो सबकी आंखों में सजता है, पर हम अपनी गृहस्थी व बच्चों की जिम्मेदारी में अपने सपने को भूल के उनके सपने को पूरा करने जद्दोजहद में लग जाते हैं, फिर वही बच्चों की अच्छी परवरिश ही हमारा सपना बन के रह जाता है। अपना अस्तित्व भूल के एक माँ व पत्नी बन के रह जाती है।”

तभी रुद्र रोता हुआ आता है, “मम्मी मुझे डर लग रहा है, मैं आपके साथ सोऊंगा।” (शायद रुद्र ने कोई बुरा सपना देखा था।) नित्य अपना खाना बीच मे छोड़ के रुद्र को सुलाने चली गयी।

वहाँ पे नित्या की डायरी पड़ी थी उमंग ने उसको उठाया अभी तक उसने आधा हिस्सा ही पढ़ा था।
जिसपे पूरा ये लिखा था…

“दो भागों में बँटी हूँ मै
नर की अर्धांगनी हूँ मैं”

फिर भी सदा मुस्कुरा के कहती हूँ मैं

दो भागों में बँटी है ज़िंदगी
फिर भी सम्पूर्ण है ज़िंदगी”

उमंग ने ये पढ़कर नित्या की डायरी को सीने से लगा लिया और बिना डायरी खोले ,चुपचाप अलमारी में रख दिया…

मूल चित्र : ziprashantzi from Getty Images via Canva Pro 

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