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आज भले ही अमृता को मोहब्बत करने वाले बहुतायत में हैं किन्तु क्या उस अमृता को साथ मिला होगा? क्या आज भी हम 'एक थी अमृता' कह कर बहुत कुछ भूल रहे हैं?
आज भले ही अमृता को मोहब्बत करने वाले बहुतायत में हैं किन्तु क्या उस अमृता को साथ मिला होगा? क्या आज भी हम ‘एक थी अमृता’ कह कर बहुत कुछ भूल रहे हैं?
“तेरे इश्क़ के एक बूँद इसमें मिल गयी थी,इसलिए मैंने उम्र की सारी कड़वाहट पी ली!”
इश्क की एक बूँद पर ज़िंदगी जीने का हुनर, ये लिखने वाली अमृता प्रीतम का जन्मदिन 31 अगस्त को। हाँ, ज़िन्दगी में बहुत कुछ देखा तुमने दर्द, तकलीफ, खोने का गम और न पाने की कसक, हो कर भी न होने का भ्रम।
मोहब्बत के कितने मायने जिये तुमने ये महसूस नहीं हो सकता हैं कुछ कुछ अंदाज़ लगता है जब कहती हो तुम कि ‘बड़ी देर से मिले हो तुम!’
अपनी सोच के साथ अपनी शर्तों पर ज़िन्दगी जीने की धुन अमृता को समय के परे कर देती है।
जहां एक ओर मोहब्बत की शिद्दत दिखायी देती है वहीं समाज और नारियों के प्रति उसके व्यवहार को चुनौती देती सोच!
बेखौफ मिज़ाज़ जो कहता था, “भारतीय मर्द अब भी औरतों को परम्परागत काम करते देखने के आदि है, उन्हें बुद्धिमान औरतों की संगत तो चाहिये होती है, लेकिन शादी के लिए नहीं, एक सशक्त महिला के साथ कि कद्र करना अब भी उन्हें नहीं आया है।”
अपनी ज़िन्दगी को समाज के कायदे कानून से दूर अपने मुताबिक जीने का जूनून अमृता को कवियित्री से कहीं ज़्यादा एक आज़ाद ख़्याल उन्मुक्त नारी के रूप में देखने को मजबूर करते हैं।
आज भले ही अमृता को पसंद या कहें कि उनसे मोहब्बत करने वाले बहुतायत में हैं किन्तु क्या उस समय में अमृता को साथ मिला होगा? क्या आज किसी अमृता का साथ देने को हम तैयार हैं?
आज भी रिश्तों में उम्र का तकाज़ा औरतों पर लागू है। जहां एक ओर सैफ और करीना के मेल को खूबसूरत और मोहब्बत से भरे रिश्ते के रूप में देखते हैं वही मलाइका अरोरा और अर्जुन के रिश्ते पर ऊँगली उठाने वालों की कमी नहीं।
प्रियंका नील के विवाह पर ढेरों फब्तियां कसी गयी। क्यों इसकी वजह नहीं समझ आयी। जहां एक तरफ विवाह को मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव के रूप में अपनाने की कोशिश होनी चाहिए वहीं उम्र का पलड़ा मात्र पुरुषों पर भारी क्यों?
औरत अकेले रहने की सोचे या अलग होने की तो भी गलती औरत की, धोखा पुरुष दे तब भी गलत औरत और अगर थप्पड़ पड़े तो भी खुद में झांकना उसका कर्तव्य!
बहरहाल ये हालत जल्द नहीं बदलेंगे। बदलेंगे भी या नहीं इसका भी अंदाज़ा नहीं।
लेकिन जहाँ एक तरफ अमृता के लिखे लफ्ज़ और उनके कहे शब्द लोगों को चुभते थे आज बदलते ज़माने को उनमे समय से परे एक सोच दिखाई देती है। भले अमृता को उस वक़्त लोगों के ताने सुनने पड़े होंगे और शायद आज भी कहीं कोई अमृता बनते हुए हिचकिचा रही होगी लेकिन, कुछ हैं जो कहीं न कहीं किसी न किसी अमृता को ज़िंदा रखे हुए हैं।
अमृता का ये कहना कि “जहां भी आज़ाद रूह की झलक पड़े समझना वह मेरा घर है”, यकीन दिलाता है की अमृता कहीं नहीं गयी।
“अमृता कहीं जा नहीं सकतीअमृता खत्म नहीं हो सकती
तमाम कलम में ज़िंदा अमृताअपनी ज़िद में ज़िंदगी बदलने की धुन में अमृतासमाज के बनाये नियमों को चुनौती देती हर आवाज़ में अमृताअपने कल को सवारने के लिए आज में तपती हर नारी में अमृताजन्मदिन नहीं हर दिन मुबारक अमृता!
तुमको समेटने की एक कोशिश …सेंध तो लगाई है मैंनेचटका तो ज़रूर हैतुम्हारे आसमान का कांच
जिंन्दगी अपनी शर्तों परजीने की ज़िद मेरीऔर इश्क है तो है काकिस्सा मेरामेरे बेख़ौफ़ सवालों नेझकझोरा तो होगा
और बेलौस कलम मेरीपरेशान करती तो थी तुम्हेंऔर तमाम बेड़ियों में भीज़िंदा हो जीने कि चाह मेरीतंग भी करती थी तुमको
तो जाने पर मेरेकह दिया तुमनेएक थी अमृताये भूल कर किगुलाब नहीं थी मैं किमेरी कलम लगानी पड़े
जंगल की मदमस्त हवाओं में घूमतीआंकुरी बाँकुरी, राईमुनिया सी थीपराग के तमाम कणों मेंयहां वहां बिखर गई
देखोहर तरफ बेखौफ, बेलौससवाल पूछतीकलम मेरीकितनों में मैंऔरकितनी अमृता मेरी
एक थी अमृता…
मूल चित्र : Canva Pro
Founder KalaManthan "An Art Platform" An Equalist. Proud woman. Love to dwell upon the layers within one statement. Poetess || Writer || Entrepreneur read more...
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