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माना फिल्मों की कहानी असली स्टार है, लेकिन क्या आप उसको लिखने वाली सुपरस्टार्स को जानते हैं? मिलिए फिल्मों की इन 8 फीमेल स्क्रिप्ट राइटर से।
भारतीय सिनेमा के रंग-रूप में वक्त के साथ बहुत कुछ बदल गया। कहानियां बदल गईं और उन्हें कहने का अंदाज़ बदल गया। दर्शकों को अब सिर्फ पर्दे पर विलेन से हीरोइन को बचाता हुआ हीरो पसंद नहीं आता बल्कि उन्हें पसंद आती है अच्छी कहानियां और अच्छा किरदार। आज की तारीख़ में फिल्में इसलिए हिट नहीं होती ही कि उसमें किसी सुपरस्टार ने अच्छा काम किया था बल्कि इसलिए होती है कि किसी बेहतरीन कलाकार ने अपने शानदार अभिनय से एक कहानी को और भी दमदार बना दिया।
अक्सर हम थिएटर से बाहर निकलते हुए बस ये कहते हैं कि क्या बढ़िया फिल्म थी, क्या एक्टिंग थी। लेकिन बहुत कम ऐसा होता है जब हमें ये पता होता है कि कहानी लिखी किसने है। क्योंकि कहानी ही तो फिल्म का असली स्टार होती है। आज हम फिल्मों की 8 फीमेल राइटर के बारे में आपको बताते हैं जिन्होंने हिंदी सिनेमा के प्रति दर्शकों के बदलते मिजाज़ को परखा और कुछ लाजवाब कहानियां पिरोईं।
शायद आपको भी पता नहीं होगा कि जिस फिल्म की आप वाहवाही कर रहे थे वो इनमें से किसी एक ने लिखी थी।
लखनऊ में पली बढ़ी जूही ने अपने करियर की शुरुआत एक एड एजेंसी से की। जॉब के सिलसिले में वो पहले दिल्ली और फिर मुंबई में भी कई साल काम करती रही। इसी बीच एक ऐड शूट के दौरान उनकी मुलाकात डायरेक्टर शूजित सरकार से हुई जिन्हें जूही का काम बहुत पसंद आया। उस समय शूजित, अमिताभ बच्चन के साथ एक फिल्म बना रहे थे जो बाद में किसी वजह से रिलीज़ तो नहीं पाई लेकिन जूही चतुर्वेदी ने इस फिल्म के डायलॉग लिखे थे। इस तरह जूही की बॉलीवुड में एंट्री हो गई। साल 2012 में जब विकी डोनर आई तो सब हक्के-बक्के रह गए। क्योंकि भारत जैसे देश में स्पर्म डोनेशन के बोल्ड सबजेक्ट पर बनी इस फिल्म को सबका प्यार मिला। इसकी कहानी जूही चतुर्वेदी ने ही लिखी थी। फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और पीकू, अक्टूबर और गुलाबो-सिताबो की कहानी लिखकर दर्शकों को कई लाजवाब फिल्में दी। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे की किताब स्पीकिंग ऑफ़ फिल्म्स जूही की सबसे पसंदीदा किताब है क्योंकि ये हमेशा उन्हें याद दिलाती रहती है कि कहानी लिखने के लिए मकसद और सादगी कितना ज़रूरी हैं।
आर्मी परिवार में पैदा हुई अन्विता दत्त देश के कई शहरों में मिलिट्री कैंट में बड़ी हुईं। उन्होंने 14 साल की उम्र में एक एड में भी काम किया था। लेखिका रेखा निगम ने उन्हें यशराज फिल्म्स से जोड़ने में मदद की। अन्विता ने लंबे समय तक डायलॉग राइटर और लिरिसिस्ट के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में काम किया। हाल में ही उनकी बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म बुलबुल रिलीज़ हुई जिसकी कहानी भी उन्होंने ही लिखी है। नेटफिल्क्स पर रिलीज़ हुई इस फिल्म ने खूब ट्रेंड किया। इसके अलावा अन्विता ने फिल्लौरी, लिपस्टिक अंडर माई बुर्का, क्वीन, हाउस फुल और दोस्ताना जैसी फिल्मों में से कई की कहानी और डायलॉग राइटिंग की। आज अन्विता बॉलीवुड में एक जाना-माना नाम है।
नई दिल्ली की जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी से फिल्म मेकिंग की पढ़ाई करने के बाद अलंकृता मुंबई चली गईं। यहां उन्होंने प्रकाश झा जैसे मंझे हुए डायरेक्टर के साथ अपहरण और राजनीति फिल्मों में असिस्ट किया। उनके द्वारा पहली निर्देशित फिल्म टर्निंग-30 थी लेकिन उनके काम को पहचान दिलाई ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ फिल्म ने जिसकी कहानी गढ़कर उन्होंने अपना अलग मुकाम हासिल किया। अन्विता दत्त के डायलॉग और अलंकृता श्रीवास्तव की दमदार कहानी ने हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींचा। चार औरतों की इस कहानी ने समाज की पितृसत्तात्मक सोच पर करारा वार किया। 18 सितंबर को नेटफिल्किस पर अलंकृता की फिल्म ‘डॉली, किट्टी और वो चमकते सितारे’ भी रिलीज़ हुयी।
सिर्फ दो कहानियों ने गौरी को बॉलीवुड की टॉप स्क्रिप्ट राइटर बना दिया। उनकी स्टोरीटेलिंग से हर कोई प्रभावित हुआ। कभी-कभी कहानी साधारण सी होती है लेकिन उसे कहने का तरीका उसे सबसे अलग बना देता है। गौरी को इस काम में महारथ हासिल है। इसलिए डियर ज़िंदगी और इंग्लिश विंग्लिश जैसी फिल्मों ने जनता का इतना प्यार पाया। गौरी मुंबई से ही हैं और कॉलेज के वक्त से ही फिल्मों के प्रति उनका जुड़ाव रहा है। अपने करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने 100 से ज्यादा एड्स और शॉर्ट फिल्म्स बनाई हैं। वक्त मिले तो उनकी शॉर्ट फिल्म Oh Man! ज़रूर देखिएगा।
करीबन 8 साल से बॉलीवुड में काम कर रही ज़ीनत लखानी का नाम कम ही लोग जानते हैं लेकिन उनका काम बोलता है। ‘हिंदी मीडियम’ की शानदार कहानी उन्हीं की कलम का कमाल है। 2014 में उन्होंने विद्या बालन की फिल्म शादी के साइड इफेक्टस की कहानी भी लिखी थी। भले ही ज़ीनत ने कम कहानियां कही हैं लेकिन ये तो सिर्फ ट्रेलर है पिक्चर अभी बाकी है। हमें पूरा भरोसा है कि जल्द ही उनकी लिखी कई और कहानियां देखने को मिलेंगी।
सिनेमा जगत में इनके नाम और काम की तूती बोलती है। असम की रीमा कागती ने बेशुमार फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर का काम संभाला है। इसमें दिल चाहता है, लगान, अरमान, वैनिटी फेयर जैसी टॉप क्लास फिल्में शामिल हैं। 2006 में रीमा ने हनीमून ट्रैवल्स से अपना डायरेक्टोरियल डेब्यू किया था जिसकी कहानी भी उन्होंने ही लिखी थी। जब हम रिफ्रेंशिंग, ट्रैवलिंग फिल्मों की बात करते है तो ‘ज़िंदगी ना मिलेगी दोबारा’ और ‘दिल धड़कने दो’ को कैसे भूल सकते हैं। रीमा ने इन दोनों की कहानी लिखी थी। प्यार, परिवार और दोस्ती को नई मायने देती ये फिल्में कितनी बार भी देखने पर नई सी लगती हैं। अमेजॉन प्राइम की बहुत ही बेहतरीन सीरीज़ मेड इन हैवन की कहानी भी रीमा ने लिखी है। बॉलीवुड की फाइनेस्ट एंड फेमिनिस्ट राइटर रीमा की फिल्मों और प्रोजेक्ट की लिस्ट बहुत लंबी है।
ये रीमा भी गुवाहाटी से ताल्लुक रखती हैं। इनकी फिल्म विलेज रॉकस्टर अपनी मस्ट वॉच फिल्म की लिस्ट में ज़रूर रखिएगा। इसकी कहानी और निर्देशन खुद रीमा ने किया है। ये फिल्म है तो असमी में लेकिन भाषा और भूगोल के दायरे को लांघते हुए इसने कई नेशनल और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म का खिताब जीता है। 2009 में रीमा ने अपनी पहली शॉर्ट फिल्म प्रथा बनाई थी। रीमा के पास फिल्म मेकिंग या राइटिंग की कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं थी लेकिन उनका मानना है कि ये उनके लिए अच्छी बात है क्योंकि इसी वजह से शायद वो अपनी कहानी अपने अंदाज़ में कह पाती हैं। उनकी फिल्में आपमें से बहुत कम लोगों ने सुनी होगी क्योंकि ये कर्मशियल नहीं हैं और ज्यादा क्षेत्रीय भाषा में ही हैं। बुलबुल कैन सिंग, मैन बिद बायनोकुला, नैबर्स रीमा की कहानियां हैं।
यंग आर्टिस्ट, स्क्रीन एंड डायलॉग राइटर ग़ज़ल धालीवाल भी अपनी लिखने की ख़ूबियों से अलग नाम बना रही हैं। पंजाब की ग़ज़ल एक LGBTQ एक्टिविस्ट भी हैं। मुंबई में फिल्म मेकिंग कोर्स के बाद से वो वहीं काम कर रही हैं। विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’ जो कि LGBTQ पर बनाई गई थी, के डायलॉग गज़ल ने ही लिखे हैं। इसके अलावा फिल्म ‘वज़ीर’, लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का, करीब-करीब सिंगल के डायलॉग भी उन्होंने ही लिखे हैं। ग़ज़ल ने अपनी पहली स्क्रिप्ट लगातार 25 दिन के लिए एक कमरे में बंद होकर लिखी थी। हालांकि अभी तक ये कहानी किसी फिल्म का रूप नहीं ले पाई है लेकिन उम्मीद है कि ग़ज़ल इसे हम सब तक पहुंचाएंगी।
फिल्मों की फीमेल स्क्रिप्ट राइटर या महिला पटकथा लेखकों की परंपरा थोड़ी कमज़ोर ज़रूर रही है लेकिन ये बहुत पुरानी है। फिल्मों की इन फीमेल स्क्रिप्ट राइटर ने अपनी कलम से समाज के हर तबके के लिए सैंकड़ों कहानियां पिरोई हैं। तो अगली बार जब भी कोई फिल्म देखने जाएं तो ये ज़रूर जानने की कोशिश कीजिएगा कि वो लिखी किसने हैं क्योंकि असली कहानी पर्दे पर नहीं, पर्दे के पीछे लिखी जा रही होती है।
मूल चित्र : IMDb/IG/Wikipeida/YouTube
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