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सामान्य खाद्य पदार्थों की तुलना में गेहूँ के जवारे यानि व्हीटग्रास के फायदे अधिक होते हैं, इसमें ज़्यादा पोषक तत्व होते हैं।
गेहूँ को जब मिट्टी में बोते हैं तो उसमें अंकुरण के बाद पत्तियां निकलने लगती हैं। अंकुरित गेहूँ के पत्ती वाले भाग को ज्वारा कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम ‘ट्रिटिकम वेस्टिकम’ है । डॉ एन० विग्मोर ने इसे हरित रक्त का नाम दिया है । यह क्लोरोफिल, एंजाइम्स, अमीनो एसिड, शर्करा, वसा, विटामिन और खनिज से भरपूर होता है।
गणगौर हो या नवरात्र, मां दुर्गा की उपासना में गेहूँ के जवारे पूजा की शुभता में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि अच्छे से उगे गेहूँ के जवारे यानि व्हाइटग्रास जीवन में आने वाले शुभ संकेत देते हैं। लेकिन धार्मिक ही नहीं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह किसी अमृत से कम नहीं। क्लोरोफिल से भरपूर होने के कारण यह शरीर को अभूतपूर्व ऊर्जा देता है।
गेहूँ अच्छी तरह साफ करके दस घंटे के लिए भिगो दें। चूंकि हर दिन हमें गेहूँ के ज्वार के रस का सेवन करना है इसलिए कुल सात गमले आठ इंच वाले लें लें। हर दिन एक गमले में गेहूँ बोने हैं। यह मात्रा दो लोगों के लिए पर्याप्त है।
गमले में आधी मिट्टी और एक चौथाई गोबर की खाद एवं एक चम्मच मिक्स खाद का मिश्रण बना लें। गमला एक चौथाई खाली रहने दें।
अब भीगे हुए गेहूँ का पानी निकालकर तैयार गमले में गेहूँ की एक पतली परत बिछा दें। अब गेहूँ पर एक मिट्टी की पतली परत बिछा दें।
हल्का सा पानी छिड़क दें। ज्यादा पानी से गेहूं सड़ने लगते हैं।
अब गमले को गीले कपड़े से ऊपर से बांध दें। तीन से चार दिनों में गेहूँ में अंकुर आ जांएगे। तब तक दिन में दो बार ऊपर से हल्का पानी छिड़क दें। गमला छांव में रखें।
पत्तियां निकलने के बाद इसे हल्की धूप में रख दें। गमले पर ‘पहला दिन’ नाम की पर्ची लगा दें। तीन दिन बाद इस पर से कपड़ा हटा दें। इसी प्रकार हर दिन का गमला तैयार करते चलें।
आठवें दिन पहले दिन के गमले की घास काट लें। इसी तरह हर गमले की घास उसके आठवें दिन काटें।
एक गमले से दो बार सात-सात दिन पर घास काटी जा सकती है। पंद्रह दिन बाद नए सिरे से गमले में नई मिट्टी तैयार करके फिर से गेहूं बोयें। गेहूं के जवारे मिलने में गैप ना हो इसके लिए एक हफ्ते पहले से तैयारी शुरू कर दें।
कटे हुए गेहूँ के जवारे को मिक्सर में थोड़ा पानी डालकर पीस लें।
इसे छलनी से छान लें।
इसका सेवन सुबह खाली पेट करें। पीने से एक घंटा पहले और बाद में कुछ न खांए। इस रस में चीनी नमक या कोई अन्य मसाला ना मिलाएं। 120ml की मात्रा सेवन के लिए उपयुक्त है।
सामान्य खाद्य पदार्थों की तुलना में इसमें अधिक पोषक तत्व होते हैं। संक्रमण को दूर कर ये नई ऊर्जा देने का काम करता है। इसका नियमित सेवन शरीर में इंसुलिन की मात्रा को बढ़ा देता है।इसलिए मधुमेह के रोग में लाभकारी है। ये मोटापा भी नियंत्रित करता है। ये ग्लूटेन फ्री होता है, इसमें फाइबर की अच्छी मात्रा होती है।
इसमें एंटीमाइक्रोबॉयल और एंटीबायोटिक गुण होते हैं इसलिए एलर्जी और संक्रमण रोकने में उपयोगी है। ये हीमोग्लोबिन बढ़ता है और उच्च रक्तचाप में लाभप्रद है, ब्लड सरकुलेशन में सुधार लाता है और गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है। गेहूँ के ज्वारे / व्हीटग्रास का प्रयोग सबसे ज्यादा कैंसर में प्रभावी होता है।
गेहूँ के जूस में उपस्थित एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर के विषाक्तो पदार्थों को दूर करते हैं। इनमें पाए जाने वाले पोषक तत्व के कारण इसे सुपरफूड भी कहा जाता है। किडनी के रोगों में प्रभावी है। गठिया के रोग में आराम देता है, यह सूजन को कम करता है। मुंह का कैंसर खत्म करने और कीमोथेरेपी से होने वाले दुष्प्रभाव को दूर करने में गेहूं के ज्वार का जूस प्रभावी है।
अधिक मात्रा के सेवन से उल्टी होने या ना पचने की स्थिति में डायरिया होने और सिर दर्द की समस्या देखी जाती है। यदि आपको गेहूँ से एलर्जी है तो उसका सेवन ना करें।
फिर देर किस बात की जानकारी साझा करिए और बढ़ाइए अपना और अपनों का हीमोग्लोबिन एवं इम्यूनिटी! इस दौर में स्वास्थ्य के साथी गेहूँ के जवार आपके शरीर और मन दोनों को प्रसन्न रखेंगे।
मूल चित्र : Madeleine_Steinbach from Getty Images Pro via Canva Pro
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