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क्या आपको भी दोस्तों के बीच हिंदी बोलने में शर्म आती है?

लेखन में रूचि के कारण उसके बहुत से लेख, कहानी और कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे, आस पास के क्षेत्रों में उसकी पहचान सक्रिय लेखिकाओं में थी।

लेखन में रूचि के कारण उसके बहुत से लेख, कहानी और कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे, आस पास के क्षेत्रों में उसकी पहचान सक्रिय लेखिकाओं में थी।

सविता जी के दो बेटे एक बेटी का पढ़ा-लिखा परिवार है। उनकी इच्छा यही रहती कि बहू भी पढ़ी-लिखी मिले। बड़ी बहू आई जो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी। सविता जी ने किसी तरह से जोर जबरदस्ती कर उसे स्नातक करवा दिया, ताकि समाज में किसी को भी ये बता सकें कि हमारी बहू भी ग्रेजुएट है।

अब सविता जी को छोटे बेटे अभिनव के लिए बहू चुननी थी। अभिनव पहले ही बोल पड़ा, “मां अबकी बार प्लीज सच में कोई पढ़ी-लिखी बहू लाना। जो मेरे दोस्तों और ऑफिस के किसी प्रोग्राम में भी आ जा सके। मुझे भी उसे किसी से मिलवाने में गर्व महसूस हो।”

सविता जी ने अपने कंप्यूटर इंजीनियर बेटे के लिए मॉडर्न बहू की तलाश शुरू कर दी। पर जाने क्या संयोग की किसी भी आईआईटी वाली लड़की से अभिनव की कुंडली मैच नहीं कर पाई।

ऐसे में एक कुलीन परिवार की लड़की नेहा का रिश्ता आया। सुंदर और पढ़ी-लिखी नेहा को देखकर सविता जी ने हां कर दी। रिश्ता पसंद करने का एक कारण यह भी था कि नेहा शुरू से ही शहर में रही थी और पढ़ने-लिखने की शौकीन भी थी। देखने गए तो लोगों से भी उसने ज्यादातर पढ़ने-लिखने की बातें ही कीं। बोलने बात करने का तरीका भी काफी सधा हुआ और व्यावहारिक था। अभिनव ने भी जब उससे कहा कि आप को मुझसे कुछ पूछना है तो उसने यही पूछा, “आपके फेवरिट लेखक और पसंदीदा पुस्तकें कौन सी हैं?”

अभिनव ने उसकी पसंद का लेखक पूछा तो उसने फटाफट से ‘प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, अमृतलाल नागर, आशापूर्णा देवी, यशपाल’ जैसे अनेको लेखकों के नाम गिना दिए। अभिनव ने तो इनके नाम भी नहीं सुने थे। धूमधाम से दोनों की शादी हो गई। घर में आते ही नेहा की पढ़ाई-लिखाई की परीक्षा की जाने लगी। कितना क्या आता है। नेहा सिर्फ पढ़ी-लिखी ही नहीं मिलनसार और खाना बनाने में भी पारंगत थी।

नेहा की ननद रिया ने जब भाभी की डिग्रीयां देखीं तो चक्कर ही खाने लगी, पर अगले ही पल हंसते हुए नेहा के कमरे से निकली और भैया से बोली, “ओएमजी भैया छोटी भाभी तो हिंदी में पीएचडी हैं और अंग्रेजी में जीरो!”

अभिनव का भी मुंह बन गया। सविता जी बोलीं, “लगता है फिर से ठग गये हम लोग।”

नेहा हैरत से सबको देखने लगी, तो जेठानी ने बताया कि यहां तो अक्सर भाई-बहन अंग्रेजी में ही बात करते हैं। खासकर रिया सबसे ज्यादा, वो तो घर में मां जी को ज्यादा अंग्रेजी नहीं आती तो वह हिंदी में बात कर लेती हैं। नेहा हैरान थी कि ये सब लोग अंग्रेजी को इतनी तवज्जो क्यों दे रहें हैं? अभिनव और बहन रिया दोनों कंप्यूटर इंजीनियर थे और बहु राष्ट्रीय कंपनियों में काम करते थे। जहां सिर्फ अंग्रेजी में ही सारा काम होता है। इसलिए ये दोनों छोटे भाई बहन तो आपस में सिर्फ अंग्रेजी में बात करते।

ऐसा नहीं था कि नेहा को अंग्रेजी नहीं आती थी, वह अंग्रेजी पढ़ना और लिखना जानती थी। पर बचपन से ही हिंदी से लगाव के कारण और हिंदी साहित्य पढ़ने लिखने में रूचि होने से वह हिंदी की तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित थी। लेखन में रूचि के कारण बड़े होते होते उसके बहुत से लेख, कहानी और कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे। आस पास के क्षेत्रों में उसकी पहचान सक्रिय लेखिकाओं में थी।

अभिनव नेहा के रूप और सजग व्यहार का कायल था, पर उसके मन में कहीं तो ये था कि मैं अपने दोस्तों से नेहा को कैसे मिलवाऊं, क्योंकि सबकी पत्नियां टेक्निकल फील्ड से थीं और हाई फाई अंग्रेजी में बात करती थीं।

कुछ महीनों बाद सोसाइटी में स्वतंत्रता दिवस का समारोह आयोजित किया गया जिसमें नेहा ने अपने एक स्वच्छता संबंधी नाटक पर मोहल्ले के छोटे बच्चों को एकत्र कर अपने निर्देशन में नाटक खेलना सिखाया। पूरा मोहल्ला छोटे बच्चों द्वारा इतना सुंदर नाटक और उस नाटक की अच्छी सीख से आह्लादित हो गया। जब नेहा का मंच पर बुलाकर आभार प्रकट किया गया तो पति अभिनव और सास सविता जी बहुत खुश हुए। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि बहू भी समारोह में कुछ प्रस्तुत कर रही है, वो क्या करने वाली है ये नहीं पता था।

नेहा ने मंच से कहा कि हिंदी हमारे मन और आत्मा में है। जापान के लोग जापानी में और चीन के चीनी भाषा में प्रगति कर सकते हैं तो हम लोग हिंदी में क्यों नहीं?

घर आने पर अभिनव ने अभिमान से नेहा को बाहों में भर लिया। पर रिया अब भी नेहा से यही बोलती, “आपने इतनी पढ़ाई की पर किसी काम की नहीं।”

लेकिन रिया भी तब आश्चर्यचकित रह गई जब वहां की यूनिवर्सिटी से नेहा को सहायक आचार्य नियुक्त किए जाने का पत्र मिला। पूरे एक लाख रूपये की तनख्वाह और बस तीन घंटे का व्याख्यान। नेहा ने शादी के समय ही यहां के विश्वविद्यालय में आवेदन कर दिया था। हिंदी में पीएचडी और पत्र पत्रिकाओं में ढेरों प्रकाशन से उसका तुरंत चयन हो गया था। रिया ने भाभी से मांफी मांगी तो नेहा ने गले लगा लिया, रिया ने मां से कहा, “अब हम सचमुच फक्र से कह सकते हैं कि हमारा परिवार बहुत पढ़ा-लिखा है।”

तो कैसी लगी आपको ये कहानी? क्या आपको भी दोस्तों के बीच या समाज में हिंदी बोलने में शर्म आती है?

मूल चित्र : Canva Pro 

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