कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

जसविंदर संघेरा की किताब ‘डॉटर्स ऑफ़ शेम’ ने मेरी आँखें खोल दीं…

जसविंदर संघेरा कहती हैं कि बाहर बसे ये लोग ज़्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के थे, और ये नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे अपनी मर्ज़ी से शादी करें। 

जसविंदर संघेरा कहती हैं कि बाहर बसे ये लोग ज़्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के थे, और ये नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे अपनी मर्ज़ी से शादी करें। 

दिल वाले दुल्हनिया ले जायेंगे फिल्म तो सबने देखी होगी। फिल्म हिट, फिल्म की कहानी भी हिट, पर उसी कहानी के भीतर का एक अलग सच भी है।

मैं लंदन में थी। एक दिन कनेडा वॉटर लाइब्रेरी में घुमते-घुमते अचानक एशियाई सेक्शन में मेरी नज़र पड़ी, जसविंदर संघेरा की किताब ‘डॉटर्स ऑफ शेम’ पर। मुख्य पृष्ठ पर एक पंजाबी दुल्हन की तस्वीर देख कर एक खुशी हुई और उत्सुकता भी।  बहुत दिनों से कुछ पढ़ा नहीं था, सो मैंने वह किताब इशू करा ली। वैसे भी बाहर के देशों में यात्राओं के दौरान दूसरों को पढ़ते देख आपको भी नए सिरे से किताबें पढ़ने की प्रेरणा मिलती है।

बहुत उत्साह के साथ मैंने वह किताब शुरू की और उसे पूरा पढ़े बगैर उसे रख नहीं सकी। मुझे बिल्कुल अंदाजा नहीं था दुनिया के सबसे विकसित देशों में एक में ऐसा कुछ हो सकता है। मुझे एक बार को शर्मिंदगी हुई अपने एशियन होने पर।

वो किताब फिक्शन नहीं थी केस फाइल्स थीं उन सभी लड़कियों की जिनके माइग्रेंट, फॉरवर्ड, लिबरल, वेस्ट ओरिएंटेड पेरेंट्स ने या तो उन्हें अरेंज मैरिज के लिए फ़ोर्स किया था, एब्यूज किया था या मार डाला था।

यह पेरेंट्स ज़्यादातर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के थे। पैसा कमाने विदेश में जा बसे यह लोग नहीं चाहते थे कि उनके बच्चे अपनी शादियां अपनी मर्ज़ी से करें, वो सब अम्ब्रीश पूरी स्टाइल में वापस अपने गांव लौटकर, अपने लोगों को अपना पैसा और रॉब दिखाकर अपने बच्चों की शादियां बड़जात्या या जौहर की फिल्मों की तरह करना चाहते थे। इस किताब को पढ़ने के बाद जब भी मैं ऑनर किलिंग्स के बारे में सुनती हूं तो मेरे दिमाग में सिर्फ हरियाणा, राजस्थान या पंजाब ही नहीं आता बल्कि लंदन भी आता।

जसविंदर संघेरा जिन्होंने वो किताब लिखी खुद एक फ़ोर्सड मैरिज सर्वाइवर रही हैं। उन्होंने इसी दिशा में काम किया हैं और अभी तक कर रही हैं। उनकी संस्थान का नाम है कर्म निर्वाण। यह लंदन के ही लीड्स नामक जगह से अपना कार्य करती हैं। इनकी संस्थान फ़ोर्स मैरिज के पीड़ितों को सपोर्ट करती हैं। यही नहीं वे लंदन में स्कूलों से संपर्क करके किशोरों को इस बारे में जागरूक बनाने का काम भी करती हैं।

जसविंदर जब बड़ी हो रही थी तो उन्होंने अपनी बड़ी बहन को फ़ोर्सड मैरिज का शिकार होते और बाद में मरते देखा। जब उनकी बारी आई तो वे न सिर्फ उसके खिलाफ हिम्मत से खड़ी हुईं और घर छोड़ा बल्कि आगे चलकर अपनी एक संस्था बनाई जो उनके जैसे ही युवाओं को सर्वाइव करने में मदद कर सकें। उनका यह मिशन अब तक काफी लोगों को फ़ोर्स मैरिज करने से बचा चूका है जिसमें लड़कियां और लड़के दोनों शामिल हैं। उनका यह काम उनके लिए कई बार खतरनाक भी साबित हुआ है जब लोगों ने उन्हें बाकायदा धमकियां दी हैं और नुकसान पहुँचाने की कोशिश की है।

इसलिए अगर आप यह समझते हैं कि जगह बदलने से समाज और मानसिकता बदल जाती है तो यह गलत है। हमारी दुनिया हमारे विचारों से बनती है। जो लोग परिवार सहित विदेशों में बसने का निर्णय लेते हैं उन्हें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि उनके बच्चों के लिए यह कोई सांस्कृतिक संघर्ष पैदा न कर दे।

मूल चित्र : Canva Pro/tfn 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

aparna dewal

a writer, a woman, a human, a phoenix....... read more...

1 Posts | 2,497 Views
All Categories