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मसाबा मसाबा में एक चीज कॉमन है जिससे शायद ही कोई लड़की भारतीय समाज में मुक्त होना चाहती है, पर चाहकर भी नहीं हो सकती है और वह है उसकी माँ से उसकी तकरार।
मसाबा मसाबा बेव सीरिज आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर महिलाओं की आजाद ख्याली के विचार से एक अच्छी सीरीज है। आम भारतीय महिलाओं के लिए चाहे वह आर्थिक रूप दे आत्मनिर्भर क्यों न हो, उनके नसीब में मसाबा वाली आत्मिक आज़ादी नहीं है, जबकि वह यह चाहती जरूर हैं। बस यही पर यह सीरिज आम आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिलाओं के कहानी से दूर हो जाती है क्योंकि आम आर्थिक रूप आत्मनिर्भर महिला को उसके हिस्से में आए हर सवाल का जवाब देना होता है। वह न ही उसको एस्केप कर नहीं न ही डिलीट कर सकती है। वह सोशल मीडिया पर एक स्टेटस लगाकर यह नहीं कह सकती कि ‘तुझे मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं!’ कभी-कभी तो यह सवाल ही उसके आत्मनिर्भरता के वजूद पर आकर टिक जाते है।
हम आज जिस भी इंडिया या भारत में रह रहे है वह समाज को मध्यवर्ग का तबका हो या उच्च/निम्न वर्ग का तबका हो वहां लड़कियों के मुंह से तलाक शब्द निकलना मात्र ही कई तरह के झटके देने लगता है। यही नहीं तलाक के लिए सबसे पहले लड़की को ही कसूरवार मान लिया जाता है कि वह एडजस्ट नहीं कर पा रही है या किसी पति-पत्नी में हल्के-फुल्के बहस-झगड़े नहीं होते हैं। यह सही है कि समाज में हर तबके की लड़की यह सपना जरूर देखती है कि उसका एक अगल घर हो जहां वह अपने तरह की जिन्दगी जी सके। परंतु, एक अकेली औरत की स्वीकार्यता वाली स्थिति आने में पता नहीं अभी कितना समय लगना है।
मसाबा मसाबा में एक चीज कॉमन है जिससे शायद ही कोई लड़की भारतीय समाज में मुक्त होना चाहती है, पर चाहकर भी नहीं हो सकती है क्योंकि थक-हारकर मां ही उसके जीवन का वह कोना है जिसके साथ तमाम जिद और फरमाइशें भी हैं। हर लड़की के जीवन में उसकी मां की दखल और बेटी के जीवन में मां की पाबँदियां जरूर समय के साथ बदलाव की मांग करती हैं, जो धीरे-धीरे हो भी रहा है। परंतु, इसके लिए सामाजिक परिस्थितियों का गतिशील होना जरूरी है क्योंकि गतिशीलता ही आधुनिकता के उदार विचारों का दरवाजा खोलती है।
मसाबा मसाबा हर लड़की को एक संदेश भी देती है लेकिन अगर आप उसको समझना चाहते हैं तब। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर महिला को एक शक्ति मिलती है जो आपके नाम का नेमप्लेट आपके घर के दरवाजे पर लटका देता है। अपने नाम का एक पता होना एक महिला के लिए बहुत बड़ा सम्मान है महिलाओ के अस्तित्व की एक स्वीकार्यता है।
कुल जोड़-घटाव और कांट-छाट कर यह कहा जा सकता है कि मसाबा एक अच्छी सीरीज़ है जो एक महिलाओं के लिए बने सारी चौहद्दीयों को तोड़ती हुई दिखती है। इस सीरीज़ में समाज या परिवार के सदस्यों को अपने सामाजिक व्यवहार में बदलाव करने की सीख मिलेगी यह उम्मीद ही बेकार है। महिलाओं को आर्थिक रूप के साथ मानसिक रूप से आत्मनिर्भर होना चाहिए यह उनके सारी समस्याओं की कुंजी है, यह वह सीख सकती हैं।
मूल चित्र : Trailer Screenshot, YouTube
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