कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

और मैं भी अपनी ‘हल्की मूछों वाली’  देवरानी को देखकर हैरान थी…

अपने बेटे की ख़ुशी के लिए एक माँ को अपना मन मार कर भी बदलना पड़ा, और इसके लिए हम शुक्रगुज़ार हैं ऐसी माओं के! काश ऐसी माँ सबको मिले...

अपने बेटे की ख़ुशी के लिए एक माँ को अपना मन मार कर भी बदलना पड़ा, और इसके लिए हम शुक्रगुज़ार हैं ऐसी माओं के! काश ऐसी माँ सबको मिले…

“अरे! कविता बेटा, ज़रा मेहमानों के लिए चाय नाश्ता तो ला।”

“जी अम्मा अभी लायी”, मैं, मेहमानों के सामने चाय और पकौड़े रख कर आ गयी। वैसे तो अम्मा कभी मुझसे बहुत खास खुश नहीं रहती पर आज बहुत खुश हैं। देवरजी का रिश्ता जो आया है!

मेरे परिवार में मैं हूं, मेरे पति जो कि एक अध्यापक है। मेरी प्यारी सासू मां जिन्हें मैं प्यार से अम्मा कहती हूं और मेरे देवर जी। देवजी पढ़ने में बहुत अच्छे थे। थोड़े ही प्रयास में उन्हें अमेरिका में नौकरी मिल गई। जब से वह बाहर गए हैं मां के तो पैर ही जमीन पर नहीं रहते।

ज्यादा दहेज ना लाने के कारण वो मुझसे थोड़ा नाराज रहती हैं। पर आज मुझपे भी प्यार की फुहारें  बरसा रही हैं। बात उनके विलायती बेटे की शादी की जो है।

बारातियों का स्वागत अच्छे से होना चाहिए। अम्मा लड़की वालों को समझाए जा रहीं थी। लड़की वालों के जाते ही अम्मा ने मुझे बुलाया, “अरे! बहु जरा सुमित को लड़की की फोटो भेज दे और बता दे उसकी बात पक्की कर दी है।” मैंने फोटो भेज दी। लड़की सुंदर थी।

थोड़ी  ही देर बाद देवर जी का फोन आया, “भाभी नहीं, मैं शादी नहीं कर सकता।”

“अरे देवर जी, क्या हुआ? अच्छी भली तो है लड़की और अम्मा की पसंद है।”

“नहीं भाभी,  मैं कीर्ति को पसंद करता हूं”, तो मैं उसी से शादी करूँगा। भाभी आप मां को मना लें।”

यह खबर सुनते ही मानो अम्मा के पैरों तले जमीन सरक गई। उधर लड़की वालों का विलायती दमाद का सपना टूटा और इधर अम्मा का दिल। दो दिन तक तो अम्मा के हलक से निवाला ना उतरा।

बगल वाली चाची ने उन्हें खूब समझाया, “अरे अगर सुमित शादी करके वहीं रह गया तो तू क्या करेगी? इस से अच्छा है कि तू मान जा।”

आखिर अम्मा ने बहुत ही मान मनवल  के बाद उन्हें फोन करके बुला ही लिया पर शर्त यह थी कि शादी गांव में ही होगी। देवर जी खुशी-खुशी मान गए। मैं भी विलायती देवरानी पाकर खुशी ही थी।

ठीक एक महीने बाद देवरजी जी गांव आए। बेटे और होने वाली बहू की नजर उतारने को अम्मा बेकरार थीं। अब मन ही मन उसे बहू मान ही लिया था। दरवाजे की ओट से मैने देखा तो देवर जी एक सुंदर लंबे गोरे लड़के के साथ चले आ रहे थे। शायद वह लड़की का भाई था।

अम्मा ने लपक कर उनकी नजर उतारी और पूछा, “बहू कहां है? अरे कविता, जा देख बहू गाड़ी में है क्या? उसे उतार ला। अब क्या शर्माना? अब तो इसी घर में आना है।”

मैं आगे बढ़ी ही थी कि देवर जी ने टोका, “अरे मां यह तुम क्या कह रही हो? यही तो कीर्ति डिसूजा है जिससे मैं शादी करना चाहता हूं।” अपने बगल खड़े लड़के की ओर इशारा करके बोले।

अम्मा के सर पर तो मानो किसी ने परमाणु बम छोड़ फोड़ दिया हो। और मैं भी ‘हल्की मूछों वाली’  देवरानी देखकर हैरान थी। कीर्ति एक लड़का भी हो सकता है, यह मैंने सोचा ना था।

पर यह एक सच था और इसे सबको स्वीकार करना ही था, क्योंकि देवर जी जिद पे अड़े थे। अम्मा ने भी भारी मन से दोनों की शादी के लिए हां कर दी। पर गांव के लोग क्या कहेंगे इसलिए अम्मा ने उन्हें वापस भेज दिया। वापस जाकर उन्होंने वहां कोर्ट मैरिज कर ली।

अम्मा के मन में टीस तो रहती ही है पर अपने बेटे के लिए खुश भी हैं। और वो अम्मा जो मुझसे खफा रहती थीं, अब मैं उनकी लाडली बहू हूँ! क्यूं? यह तो आप समझ ही गए होंगे।

मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty Images Signature via Canva Pro 

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

Meenakshii Tripathi

Teacher by profession, a proud mother, voracious reader an amateur writer who is here to share life experiences.... read more...

5 Posts | 29,179 Views
All Categories