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मेरे भाई को और मुझे बचपन से ही पालतू जानवरों का बहुत शौक है। अब अपने दोनों बच्चों को भी प्रकृति और जानवरों के साथ रहना सीखाया है।
मेरे भाई को और मुझे बचपन से ही पालतू जानवरों का बहुत शौक है। मगर मम्मी ने कभी रखने नहीं दिए, क्योंकि वो जानती थीं कि घर मे उन्हें रखने का मतलब बड़ी जिम्मेदारी है, एक छोटे बच्चे की तरह उनकी देखभाल करनी होगी। हम दोनों पड़ोस के कुत्ते और बिल्लियों से मन बहलाते, उनके बच्चों के साथ खूब खेलते थे।
भाई ने अपनी इच्छा 1991 में पूरी की। वो एक्वेरियम ले आए, और साथ मे सुंदर मछलियां भी। वो एक्वेरियम के बाहर नहीं आ सकती थीं, घर मे गन्दगी नहीं फैलातीं। उनके खाने पीने का भी कोई काम मम्मी को न करना पड़ता। हफ्ते में एक बार हम दोनों में से कोई सफाई कर देता।
फिर 3-4 साल पहले भैया 4 चिड़िया भी ले आये। उनके लिए एक बड़ा पिंजरा एक दोस्त से मिल गया। अब चिड़ियों के पंख भी घर मे उड़ते हैं, और रोज़ खाना-पानी और सफाई का भी थोड़ा काम रहता है। मगर वो सबको बहुत अच्छी लगीं। बजरी (Australian Budgerigar) छोटी, रंगीन, बहुत बोलने वाली प्यारी चिड़ियां हैं। शुरू में तो उनको भी उनके घर से बाहर निकालने की आज़ादी नहीं थी। पहला कारण – सारे घर मे पंख और उनकी पॉटी फैलेगी। दूसरा- हम सबके यहाँ पंखे चलते रहते हैं। बजरी भारत के आसमान में सुरक्षित नहीं हैं। पर यहाँ के मौसम में भी साल में कई बार अंडे दे सकती हैं। भैया को उनकी संख्या बढ़ानी नहीं थी, तो पिंजरे में घोंसला नहीं लगाया।
उनकी आवाज़ सबको बहुत अच्छी लगती है। मायके में सब जल्दी उठने वाले हैं, तो सुबह साढ़े पांच-छह बजे से उनकी चिर्प चिर्प सबको और भी सुंदर लगती। ️️ मेरे बच्चे भी मामा के यहाँ मछली से ज्यादा चिड़ियों को देखते हैं।
अपने दोनों बच्चों को भी प्रकृति के साथ मिल कर रहने के लिए हमने हमेशा उत्साहित किया है। अब वो चाहे पौधों पर तितली, टिड्डे या लेडी बग हो, खाद और पौधों में दौड़ते छोटे कीड़े या उनके दोस्तों के यहाँ के कुत्ते-बिल्ली। सड़क के कुत्ते से भी हंस कर बोलेंगे तो वो भी पूंछ हिलाएगा। अगर उनके पास से डर के निकलेंगे, तो वो भी डरेगा और भौंक कर डराने की भी कोशिश करेगा।
अब मेरे बच्चे भी शोर करते थे, “हमें भी पप्पी चाहिए, किटेन चाहिए, अच्छा! मछली या चिड़िया ही ले आओ।”
मेरे पास कारण वही उनकी बच्चों की तरह देखभाल करनी होती है। मगर जब मम्मी से फ़ोन पर बात करती, तब पीछे से आती चिड़ियों की आवाज़ 7 किलोमीटर दूर से भी मन बहलाती।
फाइनली, पिछले साल मार्च में, अक्षत के जन्मदिन पर मामा ने उसे 4 बजरी गिफ्ट करीं। ओह्, हम सब कितने खुश। उन्हें जिस बालकनी में रखा, वो मेरी भी फेवरेट बन गयी। छोटे बाज या उल्लू अंदर न आएं, इसलिए उस बालकनी को जाल से ढक दिया। धीरे धीरे हमने उनसे दोस्ती करना सीख लिया।
मामा ने चिड़िया के घर मे एक घोंसला भी लगा कर दिया। पिछले साल दशहरे के आस पास एक जोड़े ने उसमे अंडे दिए, और दीवाली से पहले उसमें बच्चे भी आ गए। मामा को पता चला, तो उन्होंने भी घोंसला लगाया, और उनके भी बच्चे हुए।
भैया अपने यहाँ एक और पिंजरा और दो लवबर्ड्स लाया। अब उनके पास 11-12 बजरे, और 7 लवबर्ड्स हैं। हमारे यहाँ 7 बजरे और 2 लव बर्ड्स। हमने कुछ बच्चे आपस मे भी बदले हैं। हमें देखकर भैया भी अब चिड़ियों को अपने बरामदे में उड़ने देते हैं।
हमारे यहां अपनी बालकनी में और जब तब कमरों में भी ये चिडिएं घूमती रहती हैं। पिछले जाड़ों में तो मेरा कमरा चिड़ियाघर ही बना रहता था, जिसमे बैठकर बच्चे पढ़ाई करते रहते और बच्चों से खेलते थे, क्योकि उस कमरे में सबसे ज़्यादा धूप आती है। आजकल बच्चों के कमरे में उनका घर है।
सौम्या ज्यादा नहीं छूती, पर अक्षत का तो वो सब कहना मानने लगी हैं। उनके कमरे में AC नहीं चल सकता। रात में सोने के लिए और खाने के लिए वो अपने घर मे चली जाती हैं। बाकी टाइम इधर उधर घूमना। छोटी सी हैं तो थोड़ा ध्यान रखना होता है। बच्चों के क्लासमेट और दोस्तों, सबसे इंटरनेट पर बातें भी करती हैं। एक बार तो टीचर से प्रश्न भी पूछ रही थीं। टीचर जवाब नहीं दे पायीं।
जैसे घर मे छोटे बच्चे, पालतू कुत्ते- बिल्ली होते हैं ना, वैसे ही चिड़ियां भी हैं। कुत्ता या बच्चा बाहर न निकले, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए हम घर के दरवाज़े बन्द रखते हैं। वैसे ही रात में चिड़ियों को भी पिंजरे में वापस जाना होता है। पिंजरे में चिड़ियों को रखना उन्हें बन्दी बनाना नहीं है, बस उन्हें उनकी एक खास जगह देना है। जानवरों को सताना नहीं, उनके साथ रहना सीखना है।
मूल चित्र : Photo provided by Author
I am a civil society volunteer, Zero waste enthusiast, plant lover, traveler and juggling mother. read more...
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