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प्लूरल्स पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी के दावों पर भरोसा कर अगर जनता इन्हें वोट दे और ये अपना वादा निभाऐं, तो बिहार की सूरत बदल सकती है।
इस साल मार्च के महीने में एक इश्तिहाऱ छपता है। जिसमें एक नई पार्टी का नाम होता है। जो इस साल होने वाले बिहार चुनाव में लड़ने का एलान करती है। जिसमें उनकी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी ख़ुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताती हैं। फिर दिखती है मीडिया की और समाज के पुरुषसत्तात्मक रवैए जो इस लड़की के बारे में जानने के बजाय दौड़ पड़ती है इनके पिता की ओर और ढूंढने लगती है, कौन है इसके पिता? अंत में उनका इंटरव्यू लिया जाता है।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) एक नागरिकों द्वारा चलाया जा रहा, नॉन पॉलिटिकल एनजीओ है जो कि भारत में इलेक्टोरल और पॉलिटिकल रिफॉर्म्स लाने के लिए काम करता है। उसकी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2006 से 2016 के बीच में बिहार में हुए जितने भी चुनाव(संसदीय, विधानसभा, विधान परिषद्) रहे हो। उसमें 8163 उम्मीदवार खड़े हुए। जिसमें केवल 610(7%) ही महिलाएं थी।
एडीआर की 2019 के लोकसभा की समीक्षा में बिहार में महिलाओं वोटरों की संख्या पुरुषों के 55.26% वोटरों से 59.92% टर्नआउट हुई। उसी चुनाव में केवल 56(9%) महिला उम्मीदवार लड़ीं। जिसमें केवल 3 महिला जीतीं।
वैशाली रावत के एक रिसर्च पेपर जिसका शीर्षक वूमन रिप्रेजेंटेटिव इन पार्लियामेंट करके है, उसके अनुसार 75% जो महिला सांसद है। उनका कोई न कोई पॉलिटिकल कनेक्शन है। पिछले बिहार चुनाव 2015, में केवल 273(8%) महिला उम्मीदवार खड़ी हुई। उनमें से 15% पर क्रिमिनल केस और 10% पर गंभीर आरोप थे। और एडीआर की समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार जो 28 महिला विधायक बनीं। उनमें 9 के खिलाफ क्रिमिनल और 5 के खिलाफ गंभीर क्रिमिनल केस थे। एडीआर की समीक्षा से ये भी उजागर होता है कि 64% महिला विधायक करोड़पति थीं।
अब इन सभी आंकड़ों और समीक्षाओं की बीच मार्च के महीने में एक एड आता है। जिसका मैंने शुरुआत में जिक्र किया।
पुष्पम प्रिया चौधरी, सुजाता चौधरी और विनोद चौधरी की बेटी हैं। सुजाता चौधरी जो यूनिवर्सिटी टॉपर रहीं थी। इन्होंने स्त्री शिक्षा पर थीसिस लिखी। इनके पिता विनोद चौधरी भी प्रोफेसर रहें। साथ ही जेडीयू पार्टी में नेता रहे हैं। जब इन्होंने एड डाला कि ये चुनाव लड़ेंगी तो उस समय इनके परिवार को भी नहीं पता था। सुजाता चौधरी जिन्होंने बचपन से इन्हें आत्मनिर्भर महिला के रूप में तैयार किया। इन्होंने बिना पिता की सहायता से पार्टी शुरू की, न पैसे लिए। स्वंय क्राउड फंड से जैसा ये स्वंय दावा करती हैं, उससे पार्टी खड़ी की और बिहार चुनाव में बिहार को बदलने के लिए खड़ी हुईं।
इनकी शिक्षा की बात करें तो इनकी स्कूली शिक्षा +2 तक की दरभंगा में हुई। फिर इन्होंने पुणे के सिमबॉयसिस से कम्यूनिकेशन डिज़ाइन की पढ़ाई की। फिर बिहार में सरकार के टूरिज्म डिपार्टमेंट में काम किया। इन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ से ग्रेजुएशन की। साथ ही प्रसिद्ध लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पॉलिटिकल साइंस में मास्टर किया।
इन्होंने, स्त्री होने के कारण जो लोगों की मानसिकता है कि कैसे एक स्त्री चुनाव लड़ सकती है, वो भी अकेले अपने दम पर, इसका जवाब दिया है। वह इस पुरुष-सत्तात्मक बिहार चुनाव में लड़ रही हैं।
इनकी पार्टी का नाम है प्लुरलस जो कि प्लुरिजम से बना है। याने हर एक व्यक्ति का अपना महत्व है। हर धर्म का महत्व है।
पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार के हर एक विधानसभा क्षेत्र में अपनी पार्टी की ओर से साफ सुथरे उम्मीदवारों को उतारने के प्रयास में लगी हैं। वे जो अभी मौजूदा व्यवस्था है, इसको बदलने का दावा करती हैं।
प्लूरल्स पार्टी अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार को 10 साल में एक यूरोपीय देश के बराबर खड़ा करने का दावा करती हैं। बिहार को पुनः विश्वगुरु बनाने का भी वादा करती हैं। ये बिहार में 30 साल लॉकडाउन खत्म करने की बात करती हैं। 30 साल का लॉकडाउन जब से इकॉनॉमिक लिबरलाइजेशन हुआ है तब से जहां दूसरे राज्य आगे बढ़े बिहार वहीं का वहीं रह गया। इस लॉकडाउन को खत्म करने का वे दम भरती हैं। क्वालिटी ऑफ लाइफ जिसकी कोई नेता बात नहीं करता, पुष्पम उसकी बात करती हैं। वह एग्रीकल्चर रेवोल्यूशन ओर इ़ंडस्ट्रीयल रेवोल्यूशन की बात करती हैं।
अब अगर इन दावों पर भरोसा करके बिहार की जनता इन्हें वोट दे और ये सचमुच काम करके दिखा पाएं तो सचमुच बिहार की सूरत बदल सकती है।
मूल चित्र : Pushpam Priya Choudhary Facebook
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