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क्या आप जानते हैं भारत में एक शादीशुदा महिला के अधिकार क्या हैं?

यदि आप जानना चाहते हैं कि एक शादीशुदा महिला के अधिकार क्या हैं, तो यहाँ आपके महत्वपूर्ण अधिकारों की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई है!

यदि आप जानना चाहते हैं कि एक शादीशुदा महिला के अधिकार क्या हैं, तो यहाँ आपके महत्वपूर्ण अधिकारों की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई है!

नोट : इनमें से कुछ अधिकार,जैसे हिन्दू मैरिज एक्ट, संपत्ति अधिकार ,इत्यादि सिर्फ हिंदू महिलाओं के लिए हैं। 

एक विकसित, पढ़े-लिखे, जागरूक, सभ्य समाज की पहचान अधिकार होते हैं और भारतीय संविधान अपने नागरिकों के अधिकारों की सस्वर घोषणा, संविधान के मन-प्राण कही जाने वाली, आधारभूत मुख्य धारा ‘मौलिक अधिकारों’ के माध्यम से सुनिश्चित करता है। परन्तु किसी भी देश की कार्यप्रणाली, इस वास्तविकता को झुठला नहीं सकती कि अभी भी इन अधिकारों का ससम्मान लाभ उठाने में, वही आदिम सिद्धांत ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ ही मुख्य संचालक शक्ति का काम करता है।

अर्थात् अधिकार सभी को मिले हैं परन्तु अधिकतर, इनका आनंद संसद में बहु गिनती में उपस्थित, ‘पुरुष’ ही उठाते हैं, क्योंकि भारतीय जनसंख्या की आधी जनसंख्या तो, संसद में अभी तक अपने प्रतिनिधियों की आधी गिनती भी सुनिश्चित नहीं कर पाई! अगर सर्वोच्च संस्थानों में हमारी पैरवी करने वाले ही कम गिनती में होंगे, तो सभी अधिकारों से लाभान्वित होने में, हमें संघर्ष तो करना ही पड़ेगा। और उसपर हम औरतों विशेषतः शादीशुदा औरतों का, अपने अधिकारों के प्रति उदासीन होने के पीछे, एक इससे भी बड़ा कारण है। और वो है हमारा नजरंदाजी, कोई बात नहीं, चलता है, जाने दो, कल ठीक हो जाएगा वाला रवैया!

परन्तु अगर आप में अपने अधिकारों के लिए लड़ने की इच्छा शक्ति है तो यह पोस्ट, शायद आपकी या आपकी सखी, संबंधी की मुश्किल हल कर सकती है, जिसमें आपको, आपके महत्वपूर्ण अधिकारों की पूरी जानकारी देने की कोशिश की गई है। इनमें से कुछ अधिकार सिर्फ हिन्दू महिलाओं के लिए हैं। 

शादीशुदा महिला के अधिकार(कुछ अधिकार सिर्फ हिंदू महिलाओं के लिए ही तय किये गए हैं)

1) विवाहिता के ससुराल घर संबंधी अधिकार-

हिन्दू मेरिज एक्ट 1955 में एक पत्नी अपनी मर्जी से जब तक चाहे अपने ससुराल घर में रह सकती है।

  1. भगवान ना करे, परन्तु अगर किसी के पति की मृत्यु हो जाती है तो, उसकी विधवा पत्नी, पति की मृत्यु के बाद भी पूरे अधिकार से अपने ससुराल घर में रह सकती है। चाहे वो घर उसके सास-ससुर का हो या किराये का ।
  2. तलाक के बाद भी, जब तक कोई और रहने की जगह का इंतजाम न हो, तब तक वह औरत ससुराल घर में रह सकती है।

2) सम्पत्ति का अधिकार-

हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 में 2005 के संशोधन के अनुसार

  1. बेटी चाहे शादीशुदा या कुंवारी, को अपने पिता की सम्पत्ति पर पूरा अधिकार होता है।
  2.  पति की सम्पत्ति के बाकी उत्तराधिकारियों की तरह पत्नी का भी उस सम्पत्ति पर बराबर हक होता है, जब तक कि पति ने इसके विरुद्ध कोई वसीयत ना की हो।
  3. अगर पति पहली शादी खत्म किए बिना दूसरी शादी कर ले तो उसकी सम्पत्ति पर पहला हक पहली पत्नी को ही जाएगा।

3) घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिकार-

घरेलू हिंसा के विरुद्ध अधिकार, 2005 के अधीन सुरक्षा का अधिकार

  1. यह कानून शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, भावनात्मक, लैंगिक संबंधी, बुरे व्यवहार को अपराध घोषित करता है।
  2. इस कानून के अधीन औरत सुरक्षा, खर्चे, रिहायश संबंधी, बहुत सारे अधिकारों को सुनिश्चित करवा सकती हैं।

4) गर्भपात संबंधी अधिकार-

 मेडिकल टर्मीनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट1971 के अधीन, एक औरत को बिना पति को भी बताये, 24 सप्ताह के गर्भ तक की, समय सीमा में अपना गर्भपात करवाने का पूरा अधिकार है।

5) तलाक का अधिकार-

हिन्दू मेरिज एक्ट 1955 की धारा 13 के अधीन,

  1. एक पत्नी, पति की सहमति के बिना भी तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
  2. तलाक का उपयुक्त आधार होना चाहिए, अर्थात व्याभिचार, क्रूरता, परित्याग, ससुराल घर से बाहर निकालना आदि कारणों के आधार पर तलाक के लिए आवेदन किया जा सकता है।
  3. धारा 13 B के आधार पर सहमति से भी तलाक लिया जा सकता है।
  4. तलाक के बाद गुजारे-भत्ते का भुगतान 

6) बच्चे के अभिरक्षा संबंधी आवेदन का अधिकार-

1. 1890 के अभिभावक और वार्ड अधिनियम के अंतर्गत माता-पिता दोनों को इस संबंधी बराबर अधिकार हैं पर अगर बच्चा 5 वर्ष से छोटा है तो, तरजीह माँ को दी जाएगी।
2. माँ को अधिकार है कि वो अदालत के आदेश के बिना भी, अपने बच्चे को ले जा सकती है।
3. चाहे उसके पास रोजगार है या नहीं, परन्तु तलाक के बाद वह अपने बच्चे को, अपने पास रख कर, उसका खर्चा भी मांग सकती है।

7) स्त्री धन संबंधी अधिकार-

1. हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 14 तथा 1956 के हिन्दू विवाह कानून की धारा 27 के अंतर्गत, एक स्त्री को अपने स्त्री धन पर पूर्ण अधिकार है
2. इस अधिकार की अवमानना की सूरत में धारा 19 A तथा घरेलू अत्याचार के विरुद्ध अधिकार के अंतर्गत शिकायत की जा सकती है।

8) दहेज़ और प्रताड़ना के विरुद्ध अधिकार-

इस संबंधी 1961 के कानून अनुसार
1. हम अपने माता-पिता या ससुराल वालों की शिकायत कर सकते हैं।
2. हम दहेज़ के लिए प्रताड़ना के विरुद्ध आई.पी.सी. की धारा 304 B, 498 A के आधार पर आवेदन कर सकते हैं।
3. घरेलू उत्पीड़न संबंधी हर प्रकार की प्रताड़ना के विरुद्ध ये अधिकार देता है।
4. भारत में वैवाहिक दुष्कर्म को अभी तक अपराध नहीं माना जाता मगर बलात्कार के विरूद्ध रिपोर्ट की जा सकती है।

9) गौरव और स्वाभिमान भरी जिंदगी जीने का अधिकार-

1. हम औरतों को स्वतंत्रता का, अपने पति के स्तर का जीवन तथा अन्यायों के विरुद्ध आवाज़ बुलंद करने का अधिकार है।
2. समर्पित शादीशुदा जिंदगी का आनंद लेने का अधिकार है।
3. व्याभिचार और बहु पत्नी, के वाजिब आधार पर तलाक लेने का अधिकार है।
4. कोई भी कानून हमें  शिक्षा, रोजगार के अधिकार से वंचित नहीं करता।

तो ये ‘शादीशुदा महिला के अधिकार’ सिद्ध करते हैं कि हम औरतें भी सजीव जगत से संबंध रखती हैं। हम भी मानव जाति से संबंध रखती हैं। बस अब जरूरत है एक जागरूक इंसान की तरह अपने अधिकारों को सुनिश्चित करने की। परन्तु अगर इन अधिकारों में से कुछ अधिकार आपको ससम्मान नहीं मिल रहे तो, संघर्ष के पथ पर उपरोक्त कानूनी धाराएँ आपकी सहयोगी बनेंगी।

अब आप उनके बारे में जानती हैं तो अपने प्रति इंसानियत का यह फ़र्ज निभा कर अज्ञान आलोचना, कुंठित जीवन के कुएँ से बाहर निकलें और पैरों तले की जमीन के आधार संग, आकाश के मुकुट को सिर पर धारण करें।

मूल चित्र : Canva Pro 

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