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बचपन में हमारी और सूजी की पहली बार जान-पहचान कंजक जीमने जाने पर प्रसाद के रूप में मिले स्वादिष्ट हलवे के सीधे-साधे रूप में हुई थी।
न न, ये किसी की पिटाई के बाद सूजी होने वाली बात नहीं हैं ये तो व्यंजनों की दुनिया में तहलका मचाकर हिट होने के बाद भी घमंड न करने वाली सूजी की बात है। इस लाकडाऊन के दौरान हमने अपनी पाककला को आगे बढ़ाने के लिए केवल दो ही महत्वपूर्ण चीजों का अध्ययन किया है, जिनमें एक तो मैदा है और दूसरी सूजी।
मैदा की महिमा बाँच पाऊं उतनी औकात मेरी अभी है नहीं लेकिन सूजी की महिमा बांचने को मेरी कलम तभी से आतुर हो रही है जब से मैंने बिना ब्रैड के केवल सूजी घोलकर सैंडविच मेकर में डालकर गैस पर अलट-पलट कर, सिकने पर प्लेट में, ‘मरती क्या न करती’ सूजी को सैंडविच मेकर में सैंडविच का आकार लेने को मजबूर होना पड़ा! शर्मिंदा तो सैंडविच मेकर भी जरूर हो रहा होगा, मन ही मन!
बचपन में हमारी और सूजी की पहली बार जान-पहचान कंजक जीमने जाने पर प्रसाद के रूप में मिले स्वादिष्ट हलवे के सीधे-साधे रूप में हुई थी। प्यारा, सीधा-साधा साधारण सा दिखने वाला हलवा जिसमें काजू, बादाम, किशमिश, इलायची न भी हों तो भी कसे हुए सूखे नारियल के चुटकी भर बुरक देने से ही इसे देवताओं को परोसे गए किसी पवित्र मिष्ठान का सा रुतबा कायम हो जाता।
अभी तकरीबन 15-20 सालों से ग्लोब्लाईजेशन के प्रचार-प्रसार में डिजिटल माध्यमों के जरिए हमारे सामने नित नए व्यंजन आने लगे। कुछ दिखने में अच्छे तो कुछ खाने में। बस इसी में से बीच का रास्ता निकालते हुए हम लोगों ने किसी व्यंजन की मूल सामग्री उपलब्ध न होने पर विकल्प सोचने शुरु कर दिए। जैसे रसगुल्ले के लिए मैदा और खोया, इडली, डोसा, उत्तपम के लिए फरमेंटड पिसे चावल, केक के लिए मैदा, यीस्ट के साथ बेकिंग का अनुभव न होने पर आसान सा कोई जाना पहचाना सा रास्ता!
तभी हमारे हाथ ईश्वर का वरदान बन कर आई ‘सूजी’ लग गई और इन सब व्यंजनों और मिठाईयों को बनाने का सबसे बढ़िया विकल्प निकल कर सामने आई। ऐसा तो सूजी ने खुद भी नहीं सोचा होगा कि हलवे से आगे जहां और भी नहीं, जहां ही जहां हैं!
जहां चाह वहां राह के चलते हम गृहणियों ने बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को मात देते हुए सस्ती सी सूजी को लाकडाऊन में स्टार बना दिया! सूजी ने कामयाबी के जितने झंडे गाड़े उतने बेसन, सत्तू, चावल, आटे ने भी नहीं गाड़े।
सूजी ने हलवे से आगे बढ़ कर सभी मिठाईयों की दुनिया में परचन लहरा कर नाम कमाया। कभी रसगुल्ला, कभी जलेबी, कभी मालपुए, कभी बालूशाही, लड्डू, पंजीरी, गुझिया तो कभी खीर, रबड़ी, मलाई रोल, केक आदि।
इधर हर प्रदेश के प्रसिद्ध व्यंजनों को भी पछाड़ कर उनकी दुनिया में भी सेंध लगाकर बाजी मारी। डोसा, इडली, उत्तपम, वडा, लिट्टी, बाटी, पिज्जा, भटूरे, नान, चीले, पकौड़े, मोमज़, समोसे, ढोकला, गोलगप्पे, दही बड़े आदि तक सूजी ने स्वयं रचे।
इसके ठाठ-बाट और वैभव देख कर सब दाल,अनाज, मसालों का मुंह सूजना स्वाभाविक ही है क्योंकि सब्जियों में तरी गाढ़ी करने और कोफ्ते बनाने में भी उसका जवाब नहीं है।
सूजी गेहूं से बनती है। इसे बनाने के लिए सबसे पहले गेहूं की अच्छी तरह सफाई की जाती है। इसके बाद साफ और सूखे गेहूं को मिल में ले जाया जाता है। जहांँ सबसे पहले गेहूं के ऊपरी छिलकों को निकाला जाता है। ऊपरी छिलका निकालने के बाद गेहूं का जो भाग बच जाता है उसे मिल में दरदरे तरीसे पीसा जाता है, जिससे यह महीन टुकड़ों में टूट जाता है। इन्हीं कणों को सूजी कहते हैं।
कई जगह इसे रवा भी कहा जाता है। इसमें इतने पौष्टिक तत्व नहीं पाए जाते, जितने गेहूं में पाए जाते हैं। इसके पीछे कारण यह है कि गेहूं के ज्यादातर पौष्टिक तत्व उसके छिलके में ही होते हैं जो कि सूजी बनाने में निकल जाता है।
तो ये था लॉकडाऊन के दौरान रसोई में सूजी पर किए हमारे शोध का एक छोटा सा पत्र!
साधारण सी, सस्ती सी, सदैव सहज उपलब्ध रहने वाली सूजी के इस विस्तार को देख कर हमें उससे यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि एक इंसान भी यदि चाहे तो एक ही समय में डाक्टर, इंजीनियर, लेखक, अभिनेता, नेता, खिलाड़ी, वैग्यानिक , प्रधानमंत्री, गायक, संगीतकार सब कुछ हो सकता है। बशर्ते वो भी साधारण, सीधा, सरल, सहज और वक्त बेवक्त सभी की मदद को उपलब्ध रहे!
तो हलवे से शुरू हुआ यह सफर अभी व्यंजनों की दुनिया में और दिन दूनी रात चौगुनी आगे बढ़ता चला जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है!
वैसे हमारे हृदय में तुम्हारा प्रसाद रूप सदैव अंकित रहेगा!
मूल चित्र : Canva Pro
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