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मैं डरती हूँ तेज़ आवाज़ों से क्यूँकि उनसे ‘समझदारी’ की आवाज़ आती है…

जाने क्या था जो माँ को कभी समझ नहीं आया? "तू पागल है" वो समझा देना चाहते थे, ना मानने पर माँ के गले, कमर, बाजू, जांघों पर निशान थे, पापा की समझदारी के...

जाने क्या था जो माँ को कभी समझ नहीं आया? “तू पागल है” वो समझा देना चाहते थे, ना मानने पर माँ के गले, कमर, बाजू, जांघों पर निशान थे, पापा की समझदारी के…

सुनो, मैं डरती हूँ
तेज़ आवाज़ों से
तबसे जबसे मैंने सुना है

पापा को बाज़ारों में,
बन्द कमरों में,
दोस्त-रिश्तेदारों
के बीच, और
अकेले में
माँ पर चीखते हुए

जाने क्या था
जो माँ को
कभी समझ नहीं आया
“तू पागल है” शायद
ये बात वो समझा
देना चाहते थे

ना माने पर
माँ के गले, कमर,
बाजू, जाँघों पर
निशान थे,
पापा की समझदारी के

मुझे तो माँ सामान्य लगी
वो ही हर माँ जैसे
ममतामयी
घर, रोटी, कपड़े, बच्चे, पति
सबको सम्भाले हुई
या माँ सच में पागल थी
जो सब सहती थी

मूल चित्र : Canva Pro 

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