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बस अब तो यही दुआ करती हूं कि यह कठिन समय हम सबकी ज़िन्दगी से चला जाए। साथ ही यह गुज़ारिश करूंगी कि हम सब उतने में ही गुज़र बसर करें जितनी ज़रूरत हो।
न जाने क्या कहे ये दौर जो चल रहा है, हमें कुछ सीखा रहा है या कुछ सचेत कर रहा है कि संभल जा ओ इंसान! जो तूने बोया है वहीं काट रहा है आखिर ठीक भी तो है, हम इंसानो ने इस प्रकृति के साथ जो मज़ाक किया है उसी की सजा हमें मिली है। कभी कुछ चाहकर या कभी अनजाने में हमने बहुत से ऐसे अपराध किए हैं जिसकी वजह से हमें ज़िन्दगी में कुछ ऐसे एहसास करा दिया है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
सच बताऊं तो ये सबक ही हमारे जीवन को आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। हम सबको यह समझना होगा जैसा हम किसी बंदिश में रहकर जीवन यापन नहीं कर सकते वैसे ही हमें प्रकृति के साथ भी ऐसा नहीं करना है और इस वक्त ने हमें बहुत कुछ यह भी सिखाया है कि कैसे हम भौतिक चीजो के पीछे भागे फिरते रहे है।
एक होड़ में रहते रहे है कि हमारे पास सभी आरामदायक चीज़े उपलब्ध हो ताकि हमारी ज़िन्दगी में हमें अधिक मेहनत मशक्कत ना करनी पड़े। फिर चाहे कोई मशीनरी हो या फिर घर में कार्य करने वाले हमारे कर्मचारी या मेड ही हो। पर समय ने हमें आत्मनिर्भरता से जीना सिखाया कि किस तरह से हम स्वयं कार्य कर अपने जीवन का निर्वाह करें।
यही नहीं कैसे कम पैसे से हम अपने घर का गुज़र बसर कर सकते हैं। कभी कभी यह भी सोचती हूं कि इस समय से पहले वाले समय में हम कैसे भौतिक चीज़ों के पीछे भागते फिरते थे। हर वीकेंड पर शॉपिंग जाना हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन चुका था। नए कपड़े खरीदना, घूमना फिरना यह हमारी ज़रूरत थी पर इस मुश्किल वक्त ने हमें यह सिखाया कैसे हम सिर्फ ज़रूरत की वस्तुओं का उपयोग कर अपनी ज़िन्दगी सादगी से व्यतीत कर सकते हैं।
सच मानो दोस्तो अब तो ऐसा लगता है जैसे कि बचपन की वो सब बातें लौट आई है जिसने हम कम चीजों के साथ भी खुश रहते थे, घर का बना खाना ही हमारे लिए बहुत होता था। बस अब तो यही दुआ करती हूं कि यह कठिन समय हम सबकी ज़िन्दगी से चला जाए फिर से हम एक दूसरे से मिल पाए।
साथ ही यह गुज़ारिश करूंगी कि हम सब उतने में ही गुज़र बसर करें जितनी ज़रूरत हो, एक दूसरे को हराने की होड़ में ना लगे रहे कि मेरे पास उससे ज़्यादा हो और हम छोटी छोटी खुशियों द्वारा अपने और अपने परिवार में खुश रहें।
मूल चित्र : Fstopper via Pexels
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