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वारिस चाहिए! क्यों आज भी लड़की पैदा होने पर अपनी बहु को सुनाते हैं ये लोग?

तुम लोगों ने मुझे क्या कोई मशीन समझ रखा है कि एक के बाद दूसरी, तीसरी, अब फिर?अकल-वकल है तुम लोगो में? मैं इन्सान हूँ जानवर नहीं...

तुम लोगों ने मुझे क्या कोई मशीन समझ रखा है कि एक के बाद दूसरी, तीसरी, अब फिर?अकल-वकल है तुम लोगो में? मैं इन्सान हूँ जानवर नहीं…

दो के बाद जब तीसरी भी लड़की हुई तो रीना की तो जैसे शामत ही आ गई। माँजी रो-रो कर उसे कोसने लगीं। अमर अलग बच्चों पर बेवजह चिल्लाने लगा। घर का माहौल ही बदल गया। बेचारी बच्चियाँ डरी सहमी सी एक साथ एक कोने में खड़ी थी। ऐसे लग रहा था जैसे सब कुछ रीना और इन्होंने ही किया है।

“महरानी जी बहुत आराम हो गया, काम कौन करेगा तुम्हारी अम्मा? मैं बुढ़ापे में तुम्हारी बेटियों को बना-बना कर खिलाऊं और तुम आराम फरमाओ। हर बार लड़की, अरे मेरे बच्चे को एक वारिस नहीं दे सकती? उसका वंश कौन आगे बढ़ाएगा? ये तुम्हारी बेटियां? सोचा था इस बार मेरा पोता होगा। मेरे खानदान का वारिस, मेरे अमर की औलाद उसका सहारा, उसका बाजू बनेगा। लेकिन तूने तो जैसे कसम खाई है, किसी बात का बदला ले रही है? हर बार बेटी ही? कहाँ से पैसे लाएगा मेरा बच्चा इनको ब्याहने के लिए?”

दो ही दिन तो हुए थे, इस बार कमजोरी भी बहुत ज्यादा थी बहुत बार उठने की कोशिश की मगर चक्कर इतनी तेज आता कि फिर लेट जाती। न दूध, न फल  कुछ भी तो ताकत की चीज़ नहीं  खाई थी। अब तो खाना भी टाइम से नहीं  मिल रहा था। चक्कर तो आना ही था। ऊपर से इनके ताने और अमर की बेरूखी। अमर ने तो अभी तक बिटिया का चेहरा भी नहीं देखा था। कमरे में ही नहीं आया।

बच्ची को हुए दो महीने हो गया था। मगर आज कल कुछ माहौल बदला बदला सा लग रहा था। माँ जी भी खुश दिखाई दे रही थी। अमर ने भी मुस्कुराना शुरू कर दिया था, आज कल तो ताने भी सुनाई नहीं दे रहे थे। पता नहीं क्या हुआ था? शायद समझ में आ गया है कि ‘इस में मेरी गलती नहीं  है, ऊपर वाले की मर्जी है सब’, रीना ने ख़ुद से कहा।

असल वजह तो तब सामने आई जब माँ जी  रीना के पास आईं और बोलीं, “देखो बहू बहुत हो गया, तुम ने तीन तीन बेटियां जनी हमने कुछ नहीं कहा मगर अब बस।”

वो थोड़ी देर रुकीं, “मैंने एक डक्टर से बात की है। वो बता देगी कि तुम्हारे पेट में क्या है लड़की कि लड़का। इस लिए थोड़ा जल्दी करना।”

वो उठ कर जाने लगीं फिर रुक कर बोलीं, “वैसे मैंने अपने लल्ला के लिए लड़की देख ली थी, दूसरी शादी के लिए।”

उन्होंने दूसरी पर जोर दिया, “मगर उसने ने मना कर दिया। खैर कोई बात नहीं मेरा पोता हो जाय मेरे लिए यही बहुत है। नहीं तो मैं अपने लल्ला को तो मना ही लूंगी दूसरी शादी के लिए।” उन्होंने जैसे रीना को डराया।

रीना का तो जैसे दिमाग ही खराब हो गया। “एक मिनट माँ जी। तुम लोगों ने मुझे क्या कोई मशीन समझ रखा है कि एक के बाद दूसरी, तीसरी अब फिर। अकल वकल है तुम लोगो में? इन्सान हूँ जानवर नहीं अगर मेरे मायके वाले गरीब न होते तो मैं कब का इस घर से जा चुकी होती मगर अब बस। सहने की भी एक हद होती है। तुम लोगों ने हद खत्म कर दी है। बेटी या बेटा मेरे हाथ में है? मेरी गलती है ही नहीं, जिस डाक्टर से बात की है न उससे पूछना वो बताएगी कि…”, रीना ने बात अधूरी छोड़ दी। उसके दिमाग ने काम करना ही बन्द कर दिया था जैसे। या शायद खुल गया था।

“गलती मेरी ही है। दो बच्चों के बाद तीसरी मुझे ही दुनिया में नहीं लानी चाहिए थी। मेरी ही मति मारी गई थी। कौन कहता है कि बेटियां कमज़ोर होती हैं? वारिस नहीं बन सकतीं? मौका तो मिले,  आजादी मिले जैसे बेटों को मिलता है। प्यार पर उनका भी तो हक होता है। और क्या गारंटी है कि बेटा लायक ही निकलेगा बाप का बाजू बनेगा। इस घर से बाहर निकल कर देखिए बेटियां कहां से कहां पहुँच गई हैं। मैं अब बच्चा पैदा नहीं करुंगी। आप आराम से अपने लल्ला की दूसरी शादी कर दीजिए। मैं अपनी बच्चियों को लेकर यहां से चली जाऊंगी। उनको काबिल बनाऊंगी इतना कि उनको किसी की  सहारे की जरूरत न पड़े।”

रीना उठ गई थी अपना और अपने बच्चों का सामान बांधने। उसे पता था यहाँ से जिन्दगी थोड़ी तो मुश्किल होने वाली है मगर हार वो भी नहीं मानेगी।

मूल चित्र : Canva Pro

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