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क्या सच में पराई हैं ये बेटियाँ…

कभी नन्हे कदमों से चल कर माँ के पास आती हैं, कभी माँ की उंगली छोड़ कर अपने अस्तित्व को पाती हैं! बेटों के बराबर, या उनसे भी आगे बढ़ जाती हैं ये बेटियाँ।

कभी नन्हे कदमों से चल कर माँ के पास आती हैं, कभी माँ की उंगली छोड़ कर अपने अस्तित्व को पाती हैं! बेटों के बराबर, या उनसे भी आगे बढ़ जाती हैं ये बेटियाँ।

क्या सच में पराई हैं ये बेटियाँ,
या किसी खास मिट्टी से रब ने बनायी है ये बेटियाँ!
तभी तो समझ जाती है माँ की तकलीफें,
पढ़ लेती हैं बाप के चहरे की सारी उलझनें,
बन जाती हैं भाई की पक्की दोस्त!

बड़ा सुकून होता है उस घर में, जिसमे पायी जाती हैं ये बेटियाँ। 

कभी नन्हे कदमों से चल कर माँ के पास आती हैं,
कभी उसका आँचल छोड़ कर दूर निकल जाती हैं,
माँ की उंगली छोड़ कर अपने अस्तित्व को पाती हैं!

बेटों के बराबर, या उनसे भी आगे बढ़ जाती हैं ये बेटियाँ।

नन्हा सा पौधा अब बड़ा पेड़ बन गया है,
बेटी के जीवन का नया पन्ना खुला है,
उखाड़ कर लगाएंगे किसी और घर की मिट्टी में!

मरती नहीं हैं, फिर से जी जाती है ये बेटियाँ।

सवारती है, सजाती है अपने नये आशियाने को,
भूल जाती है, हर पुरानी कहानी को,
पंख तो है, पर भुला देती है उड़ानों को!

फिर भी नये घर मे अपनाई नही जाती ये बेटियाँ।

कभी जला दी जाती है, दहेज़ की आग में,
कोख मे मार दी जाती है, बेटे की चाह में,
ब्याह कर लायी जाती है, पति को सुधारने की राह मे!

क्या बनाने वाले ने इसी लिये बनायी है ये बेटियाँ? 

माँ बन के अपना सब कुछ लुटा देती है,
जागती है रात को, और दिन को भुला देती है,
जब बुढ़ापे मे रह जाती है अकेली, तब भी दुआ देती है!

माँ बन कर भी, कहाँ सराही जाती है ये बेटियाँ। 

नीव में है हर घर की,
ना मायका उस के बिना पूरा है,
पति भी अपनी अर्धांगनी के बिना अधूरा है,
त्याग किये है उसने तो, अधिकार भी उसका पूरा है!

सृष्टि का सार हैं, कण कण में समाई हैं ये बेटियाँ। 

मूल चित्र : Pexels

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