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उसने दृढ़ निश्चय कर लिया, कि जो उसके साथ हुआ था, वह किसी के साथ वैसा नहीं होने देगी। और उस दिन...तो आखिर ऐसा हुआ क्या?
उसने दृढ़ निश्चय कर लिया, कि जो उसके साथ हुआ था, वह किसी के साथ वैसा नहीं होने देगी। और उस दिन…तो आखिर ऐसा हुआ क्या?
चेतावनी : इस पोस्ट में सेंसिटिव कंटेंट है जो कुछ लोगों को भावनात्मक रूप से ट्रिगर कर सकता है।
रात के अँधेरे में एक परछाई भागी जा रही थी। अपने पीछे लाल लाल लहू के निशान छोड़ते हुए। टिप टिप खून रिस रहा था और एक नन्ही सी जान को कलेजे से लगाये बस भागे ही जा रही थी वो परछाई।
तभी एक झोपड़ी दिखी अब भागने की लेस मात्र भी हिम्मत नहीं बची थी। पलट के देखा तो कुछ दूर से आवाज़े आ रही थी। घबरा कर दरवाजा पीटने लगी वो परछाई। थोड़ी देर बाद एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला और अपने सामने खड़ी परछाई की हालत को देख दंग रह गई। आवाज़े पास और पास आती ही जा रही थी।
हाथ पकड़ खींच लिया उस बूढ़ी औरत ने परछाई को उस झोपड़ी के अंदर और कहा, “मेरे घर के अंदर तुम सुरक्षित हो बेटी डरो मत।” बूढ़ी औरत की बात सुनते ही उस परछाई ने अपने तन पे लिपटे फटे दुप्पटे को चेहरे से हटाया और निढाल हो गिर पड़ी वहीं जमीन पर।
जल्दी से बच्चे को गोद में ले लिया बूढ़ी माई ने थोड़ा पानी पी वो लड़की शांत हुई। शरीर बयां कर रही थी दरिन्दगी की दास्तां, फटे कपड़े, खून रिसता बदन और बदहवासी से भरा चेहरा!
“क्या हुआ है तुम्हारे साथ बताओ?” जब बूढ़ी माई ने पूछा तो रोते हुए वो लड़की कहने लगी, “मेरा नाम शांति है ये मेरा बच्चा है। मेरा पति रोज़ पी कर आता और मुझे मारता। आज फिर नशे में धुत्त आया तो मैं मार खाने के डर से घर से निकल गई, सोचा थोड़े समय बाद जब नशा उतरेगा तो वापस चली जाऊंगी, लेकिन कुछ गुंडे मेरे पीछे पड़ गए। बहुत मारा मुझे, मेरी आबरू पे टूट पड़े और जब मेरा बच्चा रोने लगा तो इससे फैंकने लगे तभी ना जाने कहाँ से हिम्मत मिली मुझे और मैं किसी तरह अपनी इज़्ज़त और अपने बच्चे को ले भागी। माई मुझे बचा लो माई”, रोती हुई लड़की ने कहा।
तभी दरवाजे पे आवाज़े आने लगी। जल्दी से लड़की और बच्चे को छुपा माई ने दरवाजा खोला देखा तो कुछ लड़के खड़े थे।
“ए बुढ़िया किसी को देखा ईधर आते?”
“नहीं तो मैंने नहीं देखा”, झूठ बोल दिया माई ने और जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया।
कुछ कपड़े दिये बदलने को, घाव पर मलहम लगाया और थोड़ा खाना खिला सुला दिया लड़की और बच्चे को। और सोचने लगी वो बूढ़ी औरत, ‘काश मेरी सलमा को भी किसी ने पनाह दी होती उस दिन तो आज मेरी बेटी भी जिन्दा होती। मेरी नन्ही सी जान कितनी तड़पी होगी, कितनी आवाज़े लगाई होंगी मुझे और मैं यहाँ इंतजार कर रही थी कि कब मेरी बच्ची स्कूल से आयेगी।’ ये सोच सोच आँसुओं में डूब गया उस बूढ़ी माई का चेहरा।
‘सलमा की इज़्ज़त ताड़ ताड़ करने वालो का तो मैं कुछ ना बिगाड़ ना पाई। किसी ने भी इस बेबस माँ का साथ नहीं दिया। उनके पैसों और रुतबे ने तो उन दरिंदो को सजा नहीं होने दी लेकिन इस बच्ची को मैं कुछ ना होने दूंगी। शांति को सलमा नहीं बनने दे सकती मैं। इसके आबरू को किसी को हाथ ना लगाने दूंगी।’
ये सोच अपने आंसुओ को पोछ दृढ़ निश्चय सा कर लिया बूढ़ी माई ने।
मूल चित्र : Vesnaandjic from Getty Images Signature via Canva Pro
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